भारत एक विविधताओं का देश है, यहाँ कई धर्म, कई संस्कृति, कई भाषाएं, खानपान और परिधानों का समावेश है। यूं तो यह अपने आप में एक बड़ी ही महान विशेषता है, जिस पर हर भारतीय को गर्व होना चाहिए, लेकिन हमारे देश की इसी विशेषता का दुरूपयोग हमारे राजनीतिक दल और तथाकथित सामाजिक न्याय दिलाने वाली संस्थाएं करती हैं, और हमारे देश और समाज को तोड़ने का प्रयास करती हैं।
यह लोग कभी धर्म पर प्रश्न करते हैं, कभी भाषा पर, कभी आपकी पहचान पर प्रश्न उठाते हैं, और कभी कभी अंधविरोध में देश के विरुद्ध ही चले जाते हैं। हम बात कर रहे हैं दक्षिण भारत की कुछ राजनीतिक दलों की, जो कुर्सी की लड़ाई में इतना गिर गए हैं, कि अब समाज को तोड़ने लगे हैं, उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीयों के बीच मतभेद पैदा कर रहे हैं, और यह सब भी पर्याप्त नहीं था तो अब देश के टुकड़े करने को तैयार हो गए हैं।
स्वतंत्रता के पश्चात दक्षिण में पेरियावाद के नाम पर एक ऐसा आंदोलन चलाया गया, जिसका एक ही उद्देश्य था, उत्तर और दक्षिण भारतीयों में तनाव पैदा करना। इसी आंदोलन से ही एक और विचारधारा निकली, जो ब्राह्मणवाद के विरोध के नाम पर हिन्दुओं के बीच एक बड़ी खाई पैदा कर चुकी है, जिसका फायदा मिला है धर्मांतरण करने वाली मिशनरीज और मजहबी तत्वों को। जिन्होंने पूरे दक्षिण भारत में जनसांख्यिकी बदलाव लाने का बड़ा अभियान छेड़ रखा है।
उत्तर भारतीय व्यापारियों को बताया कर-चोर
ऐसे ही एक मामले में तमिलनाडु के राजस्व मंत्री ने उत्तर भारतीय व्यापारियों के प्रति द्वेष प्रकट करते हुए तमिल व्यापारियों को राज्य से “उत्तर भारतीय व्यापारियों को दूर करने” की सलाह दी है। उन्होंने आरोप लगाया कि उत्तर भारतीय राज्यों के व्यापारी कर की धोखाधड़ी करते हैं। वहीं दूसरी ओर, लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) मंत्री ने तमिलनाडु के भवन निर्माण ठेकेदारों को सलाह दी है कि वे उत्तरी राज्यों के प्रवासी श्रमिकों को श्रम बाजार पर हावी नहीं होने दें।
फेडरेशन ऑफ तमिलनाडु ट्रेडर्स एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए, राजस्व मंत्री मूर्ति ने कहा कि राज्य में 3 लाख व्यापारियों ने करों का भुगतान नहीं किया है, इनमे से अधीकांड उत्तर भारतीय हैं, जो कर धोखाधड़ी कर रहे हैं। इससे तमिलनाडु के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। डीएमके सरकार हमेशा तमिल व्यापारियों के साथ खड़ी रहेगी, और स्थानीय व्यापारियों को यहां से उत्तर भारतीय व्यापारियों को हटाने के लिए आगे आना चाहिए। उनके अनुसार केवल तमिल व्यापारियों को ही तमिलनाडु में व्यापार करने का अधिकार है।
मुख्यमंत्री के सामने द्रमुक के मंच पर तमिलनाडु को भारत से अलग करने का आह्वान
पिछले ही दिनों डीएमके के नेता ए राजा ने एक भड़काऊ वक्तव्य देते हुए कहा था, “मैं केंद्र से हमें स्वायत्तता प्रदान करने का आग्रह करता हूं। हम तब तक अपनी लड़ाई नहीं रोकेंगे जब तक तमिलनाडु को राज्य की स्वायत्तता नहीं मिल जाती। उन्होंने कहा कि भारत से अलग तमिलनाडु की वकालत उनके वैचारिक नेता पेरियार ने की थी। हालांकि, हमने लोकतंत्र और भारत की एकता के लिए उस मांग को अब तक अलग रखा है। मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से आग्रह करता हूं कि हमें मांग को पुनर्जीवित करने के लिए मजबूर न करें। कृपया हमें राज्य की स्वायत्तता दें।”
यहाँ आश्चर्य की बात यह है कि जब राजा ने यह बात कही थी तब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन मंच पर ही बैठे थे। किसी भी मंत्री या स्वयं राज्य के मुख्यमंत्री ने ए राजा के इस बयान को न तो रोका और न ही इसका विरोध किया। इससे तो यही लगता है जैसे राजा ने द्रमुक पार्ट के मन की ही बात कही थी।
हिंदी को बताया अविकसित राज्यों की भाषा
द्रमुक के वरिष्ठ सांसद, एलंगोवन ने भाषा को लेकर एक अवांछनीय टिप्पणी करते हुए कहा कि हिंदी अविकसित राज्यों की भाषा है। एलंगोवन ने भी अभद्र टिप्पणी करते हुए कहा था कि हिंदी बोलने से हम शूद्र बन जाएंगे। पेरियार की उत्तर भारतीय और ब्राह्मण विरोधो परिपाटी पर ही चलते हुए एलंगोवन ने हिंदी भाषा पर ही हमला कर दिया, बिना यह सोचे कि यह भारत में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा है।
कोविड-19 संक्रमण फैलने के लिए उत्तर भारतीय दोषी
पिछले ही महीने तमिलनाडु के स्वास्थ्य मंत्री सुब्रमण्यम ने कहा था कि राज्य में कोविड-19 संक्रमण फैलने के लिए ‘उत्तर भारतीय’ छात्र दोषी हैं। डीएमके सरकार के एक अन्य मंत्री केएन नेहरू ने कहा था कि बिहारियों के पास दिमाग नहीं होता है। उन्होंने कहा था कि, ‘बिहारियों के पास हमसे ज्यादा दिमाग नहीं है, लेकिन फिर भी 4000 से ज्यादा बिहारी पोनमलाई, त्रिची रेलवे कार्यशाला में काम करते हैं। पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने इन लोगो को रेलवे परीक्षाओं में नक़ल करने दी, इसी कारण इन्हे भारतीय रेलवे में नौकरी मिल पायी।
उत्तर भारतीयों के विरुद्ध नस्लवादी टिप्पणियां हैं आम
डीएमके के जाने-माने वक्ता नानजिल संपत ने उत्तरप्रदेश के लोगो को “बदबूदार” कह कर उनका नस्लवादी मजाक उड़ाया। उन्होंने कहा, “बकरी इतनी बदबूदार होती है कि दक्षिणी राज्यों का कोई व्यक्ति 1000 रुपये का भुगतान किए जाने पर भी उनके पास नहीं जाएगा। लेकिन उत्तर प्रदेश के लोग इतने बदबूदार होते हैं कि अगर वो बकरी के पास जाते हैं तो बकरी ही उनसे परेशान हो कर भाग जाती है।
उत्तर भारत के लोगों और हिन्दुओं के प्रति घृणा से भरे हैं डीएमके के नेता
डीएमके के नेताओं ने हमेशा से ही हिन्दू विरोधी, ब्राह्मण विरोध और उत्तर भारतीय विरोधी वक्तव्य दिए हैं। उनके इन्ही कथनों से उनकी घृणा भी साफ़ दिखती है। यह डीएमके ही है जिसके शासन काल में तमिलनाडु के कई मंदिरों को तोडा गया और हिन्दू विचारधारा वाले लोगों को प्रताड़ित किया गया लेकिन सरकार ने इस विषय में कोई कार्यवाही नहीं की। जब गोपीनाथ नाम के एक यूट्यूबर ने टूटे मंदिरों और खंडित देवमूर्तियों को फिर से सही करवाने का प्रयास किया तो उसे स्टालिन की पार्टी ने जेल भिजवा दिया।
डीएमके के नेताओं के वक्तव्य से बढ़ रही हैं नस्लवादी घटनाएं
इस तरह के निरंतर द्वेष युक्त वक्तव्यों के परिणामस्वरूप उत्तर भारतीयों के विरुद्ध नस्लवादी अपराधों की संख्या में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। हाल ही में कोयंबटूर की सड़कों पर कॉटन कैंडी बेचने वाले एक युवक के साथ जनता ने मारपीट की और पुलिस के हवाले कर दिया। उसे एक ‘बच्चा चोर’ समझ लिया गया, जबकि वह एक छोटी लड़की को सड़क पार करने में मदद कर रहा था।
ऐसे ही 2021 में, कट्टर इस्लामवादियों ने मारवाड़ी समुदाय और अन्य “उत्तर भारतीयों” को तमिलनाडु छोड़ने की धमकी दी थी और उन्हें अपनी दुकानें बंद करने के लिए मजबूर किया था। ऐसे तत्व डीएमके मंत्रियों और सरकार के उत्तर भारतीय और हिन्दू विरोधी अभियान से उत्साहित ही होते हैं, और अपने जिहाद या धर्मांतरण के अभियान को जोर शोर से आगे बढ़ाते हैं।
अब तमिलनाडु और डीएमके की स्थिति देखकर केवल एक ही प्रश्न उठता है कि यह राजनीतिक दल जो अब तक मात्र उत्तर भारतीयों, ब्राह्मणों,हिंदी भाषा का विरोध करता था, अब धीरे धीरे देश विरोध में परिवर्तित हो गया है? डीएमके जिसका विरोध पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा से है क्या उसके अंदर का यह विष इतना बढ़ गया है कि अब वे देश के ही टुकड़े करने को आतुर हो गए हैं? क्या एक स्वायत्त तमिलनाडु की बचकानी और विवादित मांग करने वाली इस पार्टी का अंतिम लक्ष्य पार्टी की विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए भारत को तोड़ने और बांटने का है?
या फिर ये लोग यह समझने में असमर्थ हैं कि जब उनके दल के नेता ऐसे भड़काऊ वक्तव्य देंगे तो उनके शब्द लोगों पर कैसा नकारात्मक प्रभाव डालेंगे। क्या ऐसे आपत्तिजनक वक्तव्यों सी जनता के मन मस्तिष्क में विभाजन का विष पैदा नहीं होगा? या फिर अपनी वोट बैंक को बचाए रखने और सत्ता पर बने रहने के लिए इन लोगो ने देश,धर्म, और समाज की तिलांजलि देने का निर्णय कर लिया है? उत्तर जो भी हो, यह स्थिति काफी विस्फोटक हो चुकी है, और अगर इस पर कोई लगाम नहीं लगाई गयी तो परिणाम भयावह होंगे।
मोदी है तो सबकुछ मुमकिन है।