दिल्ली में प्रदूषण के बहाने फिर से पटाखों को लेकर राजनीति जारी है। ऐसा नहीं है कि पटाखों के साथ केवल दिल्ली में ही राजनीतिक खेल हो रहा है, बल्कि कथित प्रदूषण के नाम पर वोक प्रदूषण अब हमारे बच्चों के दिमाग में पुस्तकों के माध्यम से डाला जाने लगा है। हाल ही में एक कविता को लेकर बहुत शोर मचा था और इसमें कितना जहर भरा है, यह देखा जा सकता है:
इसमें लिखा है कि
बजे पटाखे धायँ-धायँ-धाँ
या गोले हैं तोप के,
काँप रहीं घर की दीवारें
यह कैसी दीवाली है!
ठायँ-ठायँ-ठाँ, ठायँ-ठायँ-ठुस
जेसे दो फौजें लड़ती हैं,
ऐसे युद्ध ठना है भाई-
यह कैसी दीवाली है!
आसमान सब धुआँ-धुआँ-सा
धरती पर गंधक के भभके,
कानों के परदे फटते हैं-
यह कैसी दीवाली है!
और यह कविता किसी पाठ्यक्रम का भी या तो हिस्सा है, या फिर हिस्सा रही थी! प्रकाश मनु को एक प्रख्यात बाल साहित्यकार माना जाता है, और यह कविता किस हद तक बच्चों को उनके प्रिय पर्व के प्रति विष से भर रही है, यह देखा जा सकता है।
बच्चों को उनके पर्व के प्रति बचपन से प्रदूषित किया जा रहा है। बच्चों का मस्तिष्क ही सबसे अधिक कोमल होता है। उन्हें उनके पर्वों के प्रति संदेह एवं विरोध से भरा जा रहा है। और इसमें साहित्य से लेकर मीडिया तथा विज्ञापन तक सब सम्मिलित हैं। जैसा हमने सर्फ़ एक्सेल का भी विज्ञापन देखा था, जिसमें एक बच्ची अपने मुस्लिम दोस्त को रंगों से बचाती हुई नमाज के लिए ले जाती है।
यह किस हद तक बच्चों को निशाना बना रहे हैं, यह कल्पना ही घातक है। रंगों के प्रति विष भरा, पटाखे तो इस षड्यंत्र का सबसे बड़ा उदाहरण हैं। यदि पटाखा प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण हैं तो पटाखा पर पूरी तरह प्रतिबन्ध लगाकर उद्योगों को किसी और कार्य में स्थानांतरित कर दिया जाए। परन्तु यह समझ से परे है कि वह कैसा प्रदूषण है कि केवल दीपावली के पटाखों से उत्पन्न होता है, वह न ही किसी राजनीतिक दल की जीत के समय पटाखों से उत्पन्न होता है, न ही वह लोगों के विवाह आदि के समय पर की गयी आतिशबाजी से उत्पन्न होता है, न ही वह किसी रिलिजन या मजहब के त्योहारों पर चलाने से प्रदूषण उत्पन्न करते हैं, मात्र दीपावली ही एक ऐसा पर्व है, जब पटाखे चलाने से प्रदूषण होता है!
हिन्दुओं का ऐसा पर्व, जो वह अपने प्रभु श्री राम के आगमन के प्रतीक के रूप में मनाता है, उसकी एक परम्परा को लेकर उसे एक ऐसी समस्या का कारक बताया जाता है, जिसमें उस पर्व का कोई हाथ है ही नहीं! परन्तु एक षड्यंत्र के चलते कि बच्चों को पर्वों की आत्मा से ही अलग कर दिया जाए, इसलिए दीपावली पर पटाखे तो होली पर रंग एवं रक्षाबंधन पर राखी इसका शिकार होती है।
बच्चे अपने पर्वों के प्रति इस हद तक नकारात्मक भाव से भर जाएँ कि वह उस पर्व को मनाना ही बंद कर दें और फिर जैसे ही बच्चा अपने पर्व से दूर होता है, उसे दूसरे सम्प्रदाय के पर्वों में उत्सवधर्मिता दिखाई देने लगती है, और वह वहीं खिंचा चला जाता है। और यह हमने क्रिसमस एवं हैलोवीन के प्रति बच्चों के आकर्षण के चलते देखा है!
जैसे हिन्दुओं के पितृपक्ष को निशाना बनाने वाले लोग कभी भी दूसरे मतों के ऐसे पर्वों पर न ही कोई प्रश्न उठाते हैं, जिनमें मृत पूर्वजों के प्रति आदर व्यक्त किया जाता है या फिर उन्हें स्मरण किया जाता है। मुस्लिमों में शब-ए-बारात एवं ईसाइयों में हैलोवीन ऐसे पर्व हैं जिनमें वह लोग अपने पूर्वजों के लिए मनाते हैं। परन्तु हिन्दू यदि अपने पुरखों की स्मृति में पितृ पक्ष मनाता है तो लिबरल समाज द्वारा उसका उपहास उड़ाया जाता है? इतनी घृणा एवं दुराग्रह हिन्दुओं के प्रति क्यों है?
आखिर हिन्दुओं के लिए अपने पर्वों को मनाना एक अपराध क्यों बनाया जा रहा है? और वह भी हर पर्व का विमर्श विकृत करके? बच्चों के मन में अपनी परम्पराओं के प्रति विष घोलकर? यह एक बहुत बड़ी समस्या है? एवं अब यह एक गंभीर विमर्श ही नहीं बल्कि सामूहिक चर्चा की मांग करती है कि क्यों हर हिन्दू पर्व के आते ही उसके प्रति विषवमन आरम्भ हो जाता है?
क्यों हिन्दुओं को उनके पर्वों को मनाने का अधिकार नहीं मिल पाता? जब वह अपने आराध्यों को लेकर शोभायात्रा निकालते हैं तो “मुस्लिम एरिया” में न घुसने को लेकर उन पर हमला किया जाता है!
दीपावली पर एक ओर जहां कथित साहित्य एवं मीडिया पटाखों को लेकर निशाना साध रही है तो वहीं दिल्ली में तो अरविन्द केजरीवाल की सरकार ने हर सीमा पार करते हुए पटाखा फोड़ने पर 6 महीने तक की जेल और 200 रूपए का दंड घोषित कर दिया है
लोगों में इस बात को लेकर बहुत क्रोध है, क्योंकि समस्या पराली का जलना, वाहनों एवं औद्योगिक प्रदूषण है, जिन पर काम नहीं किया जाता है, बस दीपावली पर पटाखों को प्रतिबंधित कर दिया जाता है!
यह भी ध्यान न रखते हुए कि कैसे शिवकाशी में पटाखा उद्योग से जुड़े लोग प्रभावित हो रहे हैं?
तमिलनाडु के शिवकाशी में पटाखा उद्योग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 8 लाख लोगों को रोजगार देता है। दिल्ली में 3 नवजातों द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों के निर्माण में कुछ सामग्रियों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसके कारण शुरू में देश भर में प्रतिबंध लगा दिया गया था। लेकिन सार्वजनिक प्रयासों के कारण कुछ राज्य सरकारों ने पूर्ण प्रतिबंध को उलट दिया था एवं दीपावली के दिन “कृपा” करते हुए पटाखे चलाने के लिए कुछ घंटे दे दिए थे!
यह खेल आज का नहीं है, इसे यहाँ तक आने में वर्षों लगे हैं। बच्चों एवं पर्वों के साथ होने वाले इस खेल का विरोध हर संभव तरीके से किया जाना चाहिए क्योंकि यदि ऐसा न किया तो हर विपदा, आपदा एवं कुरीतियों के लिए हिन्दू धर्म को ही दोषी ठहराया जाता रहेगा, एवं बच्चों को पर्वों तथा तदोपरांत धर्म से विमुख किया जाता रहेगा!