झारखण्ड के बोकारो में पचास वर्षीय असलम खान नाम बदल कर, अपनी मजहबी पहचान बदलकर एक हिन्दू लड़की से शादी कर रहा था। जयमाला (माला पहनाने की रस्म) के बाद उनकी असली पहचान सामने आई।
घटना स्थल पर मौजूद लोगों ने उसकी पिटाई की, लेकिन पुलिस को सौंपे जाने से पहले ही वह स्कॉर्पियो लेकर फरार हो गया। घटना बोकारो के सेक्टर-9 के हरला थाना क्षेत्र के कुम्हारटोली की है। आरोपी उम्र करीब 50 वर्ष धनबाद के वासेपुर का रहने वाला बताया जा रहा है।
लड़की के पिता ने पुलिस को बताया कि वह एक व्यापारी हैं और सात लोगों का परिवार चला रहे हैं। उन्होंने कहा कि आरोपी से उनकी मुलाक़ात देना बैंक में हुई थी, जहां वह ऋण लेने के लिए गए थे और वहीं पर आरोपी ने अपना परिचय संजय कसेरा के रूप में दिया और ऋण में मदद करने के बहाने नियमित रूप से उनके घर जाने लगा।
उन्होंने आरोप लगाया कि संजय लातेहार में तैनात एक पुलिस अधिकारी बनकर आया और फिर उन पर दबाव डालने लगा कि वह अपनी बेटी के बेहतर भविष्य के लिए उससे शादी कर दें। उन्होंने कहा कि वह अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति और आरोपियों की धमकियों के कारण उसकी शादी के लिए राजी हो गए।
बुधवार की रात शादी होनी थी जहां असलम उर्फ संजय कुछ लोगों के साथ पहुंचा। आयोजन के दौरान, शादी का पंडाल लगाने वाले एक मजदूर ने दावा किया कि दूल्हा दरअसल संजय नहीं था, बल्कि असलम खान था जिसे वह जेल से जानता था जहां वे एक साल पहले बंद थे।
इस खबर से लोग सन्न रह गए और तुरंत हरकत में आए। इसकी सूचना मिलने पर बजरंग दल के कार्यकर्ता मौके पर पहुंचे। पुलिस के मौके पर पहुंचने से पहले ही आरोपी और उसके साथ आए लोग भाग गए। पुलिस ने उसके पास से एक ऑल्टो कार, पुलिस की वर्दी और एक हथियार बरामद किया। लड़की के परिजनों की तहरीर पर आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर ली गयी है।
बजरंग दल के जिलाध्यक्ष अजीत पांडेय ने इसे लव जिहाद यानी ग्रूमिंग जिहाद का मामला बताते हुए आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
प्रारंभिक जांच से पता चला है कि खान का आपराधिक रिकॉर्ड था। मई, 2021 में चास पुलिस ने पैसे की हेराफेरी के आरोप में उसे जेल भेज दिया था। वह पहले कई अन्य मामलों में चतरा, रांची और जामताड़ा जेल में बंद था।
पुलिस के मुताबिक, आरोपी ने पहले एक आदिवासी महिला को शादी का झांसा दिया था।
ऐसी घटनाएं बहुत आम हो चली हैं, जिनमें कट्टरपंथी मुस्लिम सोच वाले लोग हिन्दू लड़कियों के साथ ऐसा कर रहे हैं, झूठ बोलकर फंसा रहे हैं। उनके साथ दुष्कर्म कर रहे हैं, परिवार से झूठ बोल रहे हैं। रोज ही ऐसी घटनाएं अख़बारों में प्रकाशित होती रहती हैं। फिर भी कहीं न कहीं ऐसा लगता है कि न ही मीडिया और न ही तंत्र ही इस समस्या को समझ पा रहे हैं।
हाल ही में ऐसे कई निर्णय आए हैं, जिनके चलते लोगों को लगता है कि कहीं न कहीं ऐसे अपराधियों में क़ानून का भय कम हो रहा है जैसे एकता देशवाल जैसी हिंदू लड़कियों को जिहाद और हत्या के चौंकाने वाले मामलों में भी, अभियुक्तों को मामूली आधार पर जमानत दे दी गयी और साथ ही और बाल बलात्कारियों और हत्यारों की सजा भी कुछ मामलों में कम कर दी गई है।
इसके साथ ही एक और बड़ा कारण है कि लोगों को लगता है कि यदि अधिक इनका नाम लेकर बात की जाएगी तो इन पर इस्लामोफोबिया का आरोप आएगा जैसा कि हमने हाल फिलहाल में श्रद्धा और आफताब वाले मामले में देखा था। जब भी कोई ऐसी घटना सामने आती है जिसमें योजनाबद्ध तरीके से हिन्दू धर्म की लड़कियों के साथ इस प्रकार के अपराध जिहादी कट्टरपंथी मानसिकता वाले करते हैं, तो यह कहा जाने लगता है कि अपराधी का नाम लेने से बचना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से इस्लामोफोबिया फैल रहा है।
यह आरोप लगाया जाता है कि लव जिहाद जैसी बोगस थ्योरी लोग फैला रहे हैं, मगर जो भी लोग यह लिखते हैं या बोलते हैं, उनका पूरा ध्यान इस पर होता है कि कैसे इस युद्ध जो धार्मिक पहचान का युद्ध है उसे सामान्य अपराध तक सीमित कर दिया जाए कि वह लोगों की दृष्टि में जघन्य या एक समुदाय के प्रति अपराध न लगे?
तभी कभी वह पितृसत्तात्मक अपराध बनाकर प्रस्त्तुत करती हैं तो कभी पुरुषों के द्वारा स्त्री पर किए गए अपराध के रूप में, परन्तु यह एक पूरे समाज की सामूहिक पहचान के प्रति किया गया अपराध है, इस विषय में यह लोग मौन रहती हैं।
जबकि विमर्श में यही बात आनी चाहिए कि यह हिन्दू समाज की उस पहचान पर किया जा रहा एक सुनियोजित अपराध है जो धार्मिक है, सांस्कृतिक है और अपनी विरासत और विमर्श को लेकर आगे बढ़ रही है। परन्तु दुर्भाग्य की बात यही है कि इस पहलू पर ध्यान नहीं है