पाकिस्तान में बार-बार यह गाया जाता है कि भारत में इस्लाम खतरे में है, भारत में मुसलमानों पर हमले हो रहे हैं, मगर पाकिस्तान में क्या हो रहा है, उस ओर न ही वह ध्यान देता है और न ही वह मुस्लिम देश, जो भारत में iमुसलमानों के खतरे में होने का रोना रोते हैं। वह दिन भर चीत्कार करते हैं कि भारत में हिन्दू समुदाय मुस्लिमों को सही से नहीं रहने देता है और वह यही कहते हैं कि भारत में हिन्दू जो हैं, वह मस्जिदों को तोड़ते हैं।
जबकि पकिस्तान से आए दिन हिन्दुओं के मंदिरों को तोड़े जाने के समाचार आते रहते हैं। हाल ही में पेशावर में एक मस्जिद में धमाका हुआ था। उसमें सौ के करीब लोगों की जान गयी थी। हालांकि कुछ लोगों का कहना था कि वह शिया मस्जिद है तो वहीं कई लोगों ने यह स्पष्ट किया कि वह सुन्नी मस्जिद ही है। हिन्दुओं में तमाम तरीके के भेदभाव की बात करने वाले पाकिस्तान में शिया और सुन्नियों के लिए मस्जिद तक अलग अलग हैं। खैर! यह तो बम धमाका था, परन्तु कराची में जो हुआ वह और भी अधिक हैरान करने वाला था।
कराची में अहमदिया समुदाय की ही मस्जिद पर हमला किया गया। और उसे तोड़ दिया गया। यह भी देखना बहुत हैरान करने वाला है कि पाकिस्तान के निर्माण में अहमदिया समुदाय ही सबसे आगे था। और उन्होंने ही पाकिस्तान के लिए प्रस्ताव को अंतिम रूप दिया था तो वहीं अहमदिया समुदाय कश्मीर को भारत से अलग कराने के लिए भी सबसे आगे था, आज उसी अहमदिया समुदाय को पाकिस्तान में काफिर समझा जाता है और उन्हें मुस्लिम नहीं माना जाता है, उनकी मस्जिदों को उसी तरह तोड़ा जाता है, जैसे वह हिन्दुओं के मंदिर तोड़ते हैं
कराची में जब यह मस्जिद तोड़ी जा रही थी, उससे एक दो दिन पहले 15-20 आतंकियों ने पंजाब प्रांत के मियांवाली जिले में एक पुलिस थाने पर हमला कर दिया था।
हालांकि हमला अधिक बड़ी बात नहीं है, काफ़िर के नाम पर अहमदिया समुदाय की मस्जिद का तोड़ा जाना ज्यादा बड़ी बात है क्योंकि इसी पाकिस्तान में अब तक बाबरी मस्जिद के चलते यह विमर्श चलाया जाता है कि भारत में मस्जिदें तोड़ी जाती हैं, और वही पाकिस्तान, अपने ही यहाँ पर मस्जिदों का टूटा जाना बर्दाश्त कर रहा है और बात भी नहीं कर रहा!
फिर ध्यान आता है कि पाकिस्तान में सुन्नी मुस्लिमों में इतनी “सहिष्णुता” है कि वह अहमदिया को मुस्लिम ही नहीं मानते हैं और सबसे मजे की बात यही है कि उन्हें वह मुसलमान मानने से इन्कार करते हैं, जिन्होनें पाकिस्तान के बनने में सहायता की थी। और मुसलमानों के लिए पाकिस्तान बनाने वाले अहमदिया समुदाय को इतना भी मुसलमान नहीं माना जाता है कि वह हज के लिए जाएं!
यदि कोई अहमदिया मुसलमान सऊदी में पकड़ा जाता है तो उसे तुरंत ही डिपोर्ट अर्थात वापस कर दिया जाता है। दरअसल इस समुदाय के लोग यह मानते हैं कि उनके संस्थापक मिर्जा गुलाम अहमद खुद नबी का ही एक रूप हैं। उनका कहना है कि मिर्जा गुलाम अहमद अलग से कोई शरियत नहीं लाए, बल्कि वह तो पैगम्बर मोहम्मद की ही शरियत का पालन करते हैं, मगर वह मिर्जा को भी नबी मानते हैं, और यही बात उन्हें काफ़िर बनाती है। क्योंकि मुस्लिमों के सभी फिरके इस बात पर सहमत हैं कि मोहम्मद ही उनके पैगम्बर थे और उसके बाद यह सिलसिला समाप्त हो गया।
यही कारण है कि अहमदिया समुदाय को मुसलमान नहीं माना जाता है और जिस पाकिस्तान को उन्होंने मुस्लिमों के लिए अलग देश बनाने के लिए अपना योगदान दिया, उसी पाकिस्तान में उन्हें लगातार अपमानित किया जाता है और उन्हें न ही मुसलमान माना जाता है और न ही उन्हें अल्पसंख्यकों में रखा गया है, जिन्हें कुछ कानूनों के अंतर्गत संरक्षण प्रदान किया गया है।
पकिस्तान के संविधान के अनुसार अहमदिया स्वयं को मुसलमान नहीं कह सकते हैं और वह अपनी इबादत की जगहों को मस्जिद भी नहीं कह सकते हैं। अहमदिया अपनी इबादतगाहों पर कलीमा-ए-तकैय्या नहीं लिख सकते हैं। यही कारण है कि पाकिस्तान में बार-बार इन लोगों पर हमला होता है।
इस वीडियो में भी देखा जा सकता है कि कैसे मस्जिद को तोडा जा रहा है और पुलिस चुपचाप खड़ी देख रही है, जैसे वह मंदिरों के तोड़े जाने को देखती रहती है। खैर, हिन्दू तो बेचारे वह हैं, जिन्होनें पाकिस्तान की चाह नहीं की थी, फिर भी उनके हिस्से में पाकिस्तान आ गया। उनके भाग्य में वह विभाजन आ गया, जिसके चलते उनके मंदिर आज तोड़े जा रहे हैं।
परन्तु अहमदिया? इन्होनें तो पाकिस्तान के निर्माण में ही योगदान दिया था, फिर न ही वह मुसलमानों में हैं और न ही अल्पसंख्यकों में!
यही कारण है कि इसी ट्वीट के उत्तर में एक यूजर ने लिखा कि मस्जिद नहीं इबादतगाह!
इसी बात को और बेहतर तरीके से एक और यूजर ने लिखा कि
अहमदिया मस्जिद नाम की कोई चीज नहीं होती है, यह इबादत खाना है और वह मीनार और गुम्बद के साथ मस्जिद जैसे नहीं बना सकते हैं! हालांकि प्रशासन को ही क़ानून का पालन करवाना चाहिए, न कि भीड़ को!
पाकिस्तान के वह लोग जो अपने ही एक समुदाय को इसलिए स्वीकार नहीं करते हैं कि वह नबी के बाद अपने समुदाय के संस्थापक को नबी मानते हैं, वह हिन्दुओं पर और भारत पर यह आक्षेप लगाते हैं कि भारत में इस्लाम और मस्जिदें खतरे में हैं!
पहले वह अपने घर को देखें जहाँ पर न ही हिन्दुओं के मंदिर और न ही अहमदिया समुदाय की इबादतगाह सुरक्षित है! दुनिया भर के मुस्लिम देश अपने मजहब का ही पालन करने वालों में एक भिन्न मत नहीं स्वीकारते हैं और हिन्दुओं को असहिष्णु ठहराते उनकी जीभ नहीं थकती है, यह कैसी उनकी कट्टरता और विरोधाभास है, उन्हें हिन्दुओं पर कुछ बोलने से पहले अब पाकिस्तान में इन हथौड़ों को ध्यान रखना होगा!