कश्मीर में फिर से एक बार आतंकियों ने हत्या की है। पिछले 48 घंटों में पांच हत्याएं वहां पर हो चुकी हैं। परसों जहाँ एक ओर माखन लाल बिन्द्रू और भागलपुर के वीरेंद्र पासवान की हत्या की थी तो आज सुनियोजित तरीके से एक स्कूल में जाकर एक हिन्दू और एक सिख शिक्षक की हत्या कर दी।
कश्मीरियत की बात करने वाले लोग जैसे इन हत्याओं के लिए उन लोगों को दोषी ठहरा रहे हैं, जो देश की बात करते हैं, जो हिन्दुओं की बातें करते हैं और जो यह बताते हैं कि कैसे जनसांख्यकी में परिवर्तन किया जा रहा है, और हिन्दुओं के अनसुने दर्द को बताने की कोशिश करते हैं। जम्मू कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस के साथ जुडी इरफा जान ने एक ट्वीट करते हुए लिखा कि
“जब धारा 370 को हटाया गया था, तो कुछ बेवक़ूफ़, ज्यादा उत्साही दक्षिणपंथी सोशल मीडिया इन्फ्युएंसर विदेशों में इस बात की शिकायत करने गए कि इसका परिणाम भारत में आकर क्या होगा? और इन हत्याओं का खून उन्हीं के हाथों में है!”
हालांकि बाद में उन्होंने वह ट्वीट डिलीट कर दिया, क्योंकि उस पर बहुत विवाद हुआ और उन्होंने बाद में कहा कि उनके पूरे थ्रेड को नहीं पढ़ा गया और केवल एक ही ट्वीट पर विवाद हो गया। पर यह मानसिकता खुद में यह बताने के लिए पर्याप्त है कि उनके दिल में उन हिन्दुओं के लिए कितनी घृणा भरी हुई है, जो अपनी बात बाहर कहते हैं और इनके चेहरे से पीड़ित का नकाब उतारते हैं। पर जिस कथित कश्मीरियत की यह बात करते हैं वह कहाँ है?
क्या यह लोग खुश हैं? कश्मीरी पंडितों की हत्याएं अभी यह देश भूला नहीं है और अब पूरा देश ही वही पैटर्न देख रहा है। हिन्दुओं को मारा जा रहा है, पश्चिम बंगाल में देखा और इस कथित किसान आन्दोलन की आड़ में भी हिन्दुओं के विरुद्ध माहौल बनाया जा रहा है।
ट्विटर पर एक यूजर ने क्लब हाउस का एक चैट वीडियो साझा किया है, जो एक मुस्लिम समुदाय के लोगों का है और जो कह रहे हैं कि ब्राह्मणों को टार्गेट करना चाहिए!
कश्मीर में एक सिख की भी हत्या इन कट्टरपंथी आतंकवादियों ने की है। जिहाद की जिद्द लिए यह आतंकवादी हिन्दू और सिख में अंतर नहीं समझते।
आज कश्मीर में श्रीनगर में ईदगाह संगम इलाके में आतंकवादियों ने स्कूल में घुसकर प्रिंसिपल सतिंदर कौर और टीचर दीपक चंद को गोलियों का निशाना बना लिया।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यह दोनों अपने शेष स्टाफ के साथ बैठकर बातें कर रहे थे, कि तभी आतंकवादी आए और उन्होंने टीचर्स से नाम पूछे। और बाहर ले जाकर इन दोनों को अलग कर इन दोनों को मार दिया। इस हमले की जिम्मेदारी The Resistance Front नामक संगठन ने ली है।
जब से अफगानिस्तान में तालिबानियों ने सत्ता संभाली है, तब से इस्लामी कट्टरपंथी संगठनों के हौसले बुलंद हैं और वह हर कीमत पर आतंक का वही साम्राज्य वापस लाना चाहते हैं, जो 90 के दशक में भारत झेल चुका है। आखिर ऐसा क्यों?
वहीं सरकार के इस दावे पर इन आतंकी घटनाओं से प्रश्न उठ रहे हैं कि अब कश्मीर में कश्मीरी पंडित वापस जा सकते हैं?
पर जो सबसे आवश्यक बिंदु है, वह है जिहाद की मूल समझ का न होना। हिन्दुओं को अभी भी यह समझ नहीं आ पा रहा है कि वह निरंतर जिहाद में हैं। अंग्रेजों के जाने के बाद कश्मीर संयोग नहीं था, बल्कि प्रयोग था, और वह प्रयोग सफल हुआ। प्रयोग था जिहाद करने के बाद भी विक्टिम कार्ड खेलकर हिन्दुओं को ही अपराधी घोषित कर देना। जिनके खिलाफ यह विक्टिम कार्ड खेला जाता है, उन्हें ही यह नहीं पता होता है कि उनके विरुद्ध कितना बड़ा षड्यंत्र खेला जा रहा है।
कश्मीर से हिन्दुओं को मार मार कर भगा दिया गया, ऐसा नैरेटिव रचा गया जैसे वह ही दोषी थे।
हिंसा करने के लिए और क़त्ल करने के लिए एक बहाना चाहिए होता है, और तब तक कुछ जुल्म और जालिम जैसी थ्योरी गढ़ी जाती हैं। और उन के विरोध असंतोष भरा जाता है। ऐसा ही कुछ कश्मीरी हिन्दुओं के साथ किया गया और अब इस जघन्य हत्याकांड के लिए, उन हिन्दुओं को दोषी ठहराया जा रहा है, जिन्होंने अपना दर्द बताने की कोशिश की, और जिन्होनें उनके षड्यंत्र को दुनिया के सामने बताने की कोशिश की, उन्हें ही दोषी ठहरा दिया गया।
जैसा दिल्ली दंगे में देखा, जैसा नागरिकता विरोधी अधिनियम में देखा और जैसा कधर्वा में देखा! हर बार ऐसा ही हो रहा है, सदियों से यही होता आ रहा है, परन्तु दुःख की बात यह है कि समझा न तब गया था और न ही अब समझा जा रहा है
समस्या कट्टर इस्लामिक जिहाद है और हल कहीं और खोजा जा रहा है,
हल क़ानून व्यवस्था में नहीं है क्योंकि समस्या क़ानून व्यवस्था की है ही नहीं, समस्या कट्टर इस्लामिक जिहाद है, और हल भी उसी के अनुसार निकाला जाना चाहिए!