spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
32.2 C
Sringeri
Tuesday, April 23, 2024

6 जून 1674: हिन्दू इतिहास का एक अविस्मरणीय दिवस: जब औरंगजेब के शासनकाल में ही लहराया था स्वतंत्र भगवा, हुआ था महानायक शिवाजी का राज्याभिषेक

भारत के इतिहास में 6 जून का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है। यही वह दिन था जब महाराष्ट्र से दिल्ली को चुनौती ऐसी मिली थी, जिससे तिलमिलाकर वह औरंगजेब ने यह निश्चित किया था कि वह हिन्दुओं को पूरी तरह से नष्ट करेगा। परन्तु वह अपने जीवन के अंतिम पच्चीस-छब्बीस वर्ष दक्कन में पड़ा रहा, और कुछ न कर सका! वह हिन्दुओं की शक्ति के सम्मुख विफल हुआ। उसने घुटने टेके!

परन्तु इतिहासकारों के लिए शिवाजी चूहा थे और औरंगजेब महानायक। जबकि यह पूरा उल्टा है, शिवाजी महानायक थे और औरंगजेब एक क्रूर हत्यारा! जिसके हाथों में हजारों हिन्दुओं का खून था, जिसके हाथों में देवस्थानों का विध्वंस था। जिसके हाथों में था हमारे देवताओं का अपमान!

औरंगजेब की इतनी बड़ी पराजय का उल्लेख कहीं नहीं मिलता है, जबकि 6 जून 1674 उसकी पराजय के रूप में दर्ज होना चाहिए! आज हम पढ़ते हैं, इस अवसर पर “महानायक शिवाजी” उपन्यास का वह अंश जो शिवाजी के राज्याभिषेक का वर्णन करता है:

एक रात शिवाजी के माथे पर हाथ फेरते हुए जीजाबाई ने कहा “मेरा स्वास्थ्य इन दिनों ठीक नहीं है शिवा। कभी भी यमराज मुझे अपने पास बुला सकते हैं।  जब से मेरे अन्दर कुछ सोचने समझने की शक्ति आई, तबसे मैंने बस एक ही स्वप्न देखा और वह स्वप्न था स्वराज्य का!” वह बोलते बोलते थक गईं! उन्हें लगा जैसे वह बहुत दूर से चलती आ रही हैं, और अब उन्हें विश्राम चाहिए

“माँ साहिब, यह क्या कह रही हैं आप!” शिवाजी ने जीजाबाई की गोद में सिर रखते हुए कहा। जीजाबाई की इस बात से शिवाजी को पुरंदर की संधि के उपरांत की गयी अपनी माँ की बाद याद आई और वह सिहर उठे। 

“मेरा स्वप्न पूर्ण हुआ और मैं उस परमपिता को धन्यवाद देना चाहती हूँ जिसने तुम जैसा पुत्र दिया। तुम जैसा पुत्र न केवल मेरा बल्कि पूरे भारत का सौभाग्य है। बस अब राज्याभिषेक करो पुत्र और मुझे जाने दो।” जीजाबाई यह कहते कहते उनके बालों में हाथ फेरती रहीं।

शिवाजी सिहर रहे थे। क्या शिवाजी के जीवन में सबसे बड़ी खुशी और सबसे बड़ा दुःख एक साथ ही आना था?

माँ की बात सुनकर शिवाजी की आँखें भर आईं। परन्तु यह बात सत्य थी कि उनके पास कोई उपाधि नहीं थी। वह भी मराठा सरदारों की ही भांति एक सरदार ही थे। जीजाबाई बोलती जा रही थीं

“मराठाओं को मैं कभी निजामशाही, कभी मुगलों के अधीन कार्य करते देखकर अपनी व्यथा नहीं रोक पाती थी। यह एक ऐसा दर्द था जिसे कोई सहज समझता नहीं था, परन्तु जब तुम मेरे जीवन में आए तो मुझे लगा कि मेरी पीड़ा का समाधान मात्र मेरा पुत्र ही करेगा। और वही हुआ, मेरी आँखों का स्वप्न आज यहाँ पर स्वतंत्र मराठा साम्राज्य के रूप में है। अब मुझे विश्राम चाहिए शिवा! अब तुम जाओ और अपने राज्याभिषेक की तैयारी करो। किसी योग्य ब्राह्मण को आमंत्रित करो और दुर्ग को विशेष सजाओ!” कहकर जीजाबाई ने अपने कक्ष की तरफ प्रस्थान किया।

परन्तु शिवाजी की आँखों में नींद नहीं थी। अब किस ब्राह्मण को बुलाएं वह, और मुहूर्त क्या होगा? यह भी बात सत्य थी कि यदि वह मराठा साम्राज्य के राजा बनेंगे तो किसी की हिम्मत नहीं होगी, मराठों की भूमि पर अपनी काली दृष्टि डालने की। परन्तु समस्या एक और थी कि वह क्षत्रिय नहीं थे, तो ऐसे में वह कैसे राजा बनेंगे! इस पर जीजाबाई ने पहले ही कह दिया था कि “ब्राह्मण और क्षत्रिय मात्र कर्म से होते हैं और कर्म से तुम किसी भी क्षत्रिय से बढ़कर हो।”

जीजाबाई बहुधा कहा करती थीं “तुम्हारा राज्याभिषेक भारतीय इतिहास में एक ऐसी घटना होगी जो राजनीति की दिशा बदलेगी।  तुमने अभी तक हर प्रकार के उत्तम धार्मिक आचरण का पालन किया है, तुमने युद्ध में जीती गयी स्त्री को हाथ नहीं लगाया और न ही विधर्मियों के धर्म ग्रंथों का अपमान किया। तुम एक आदर्श भारतीय नायक हो शिवा, जो अपने विरुद्ध हुए हर षडयंत्र से जीतकर आया है। सदियों के उपरान्त ऐसे नायक जन्म लेते हैं शिवा!”

शिवा यह सुनकर अपनी माँ के चरणों में सिर रख दिया करते थे, “यह तन मिट्टी का है, मैं जो भी हूँ आपके कारण हूँ!”

जीजाबाई अपने शिवा को कसकर गले लगा लेतीं। 

अपने कक्ष की तरफ जाती जीजाबाई की आँखों से अश्रु बह रहे हैं। “मेरा शिवा, स्वतंत्र राज्य का स्वामी! पराधीन युग में मैंने जन्म तो लिया परन्तु अपने पुत्र के कारण मैं एक स्वतंत्र राज्य में प्राण त्यागूंगी! समय आ गया है! बस शिवा को सिंहासन पर देख लूं! ओ माँ, तुमने मुझे यह दिन दिखाया! आज गर्व हो रहा है कि मैंने अपनी भूमि की सेवा की। मैं अपना जीवन सार्थक कर जा रही हूँ!”

किन्तु शिवाजी के राज्याभिषेक को लेकर ब्राह्मण एकमत नहीं थे। “क्या शिवा का राज्याभिषेक? यह कैसे हो सकता है? यह संभव ही नहीं है! वीरता अदि की बातें अलग हैं, परन्तु ब्राहमण कभी भी शिवा के राज्याभिषेक को उचित नहीं ठहराएंगे” जहां जहां शिवाजी के राज्याभिषेक की बातें चलतीं, ब्राहमण विरोध में उतर आते!

“तो क्या शिवा का राज्याभिषेक नहीं होगा!” जीजाबाई का ह्रदय निराश हुआ

“क्यों नहीं होगा! रामदास ने आशीर्वाद दिया है छत्रपति की उपाधि  धारण करने का! अपना शिवा शीघ्र ही छत्रपति बनेगा!”

शिवाजी के प्रतिनिधिमंडल ने राज्याभिषेक के लिए काशी में महान धर्मशास्त्री गागाभट्ट को खोज निकाला।  शिवाजी ने गागाभट्ट को आदरसहित राजगढ़ बुलवाया। गागाभट्ट ने शिवाजी के अभिषेक से पूर्व इस विषय में विभिन्न विचार रखने वाले प्रमुख व्यक्तियों से विचार विमर्श किया तथा शिवाजी की वंशावली तैयार कर उनका संबंध उदयपुर के महाराणा क्षत्रिय सिसोदिया राजवंश से स्थापित किया। हालांकि इससे पूर्व वह अपने अकाट्य तर्कों से  शिवाजी को क्षत्रिय साबित कर चुके थे।

अंतत: 6 जून 1674 को वह शुभ दिन आया जब रायगढ़ के दुर्ग पर मराठों का स्वतंत्र भगवा लहराया और शिवाजी का राज्याभिषेक हुआ। उस दिन भारत का भाग्य नई अंगड़ाई ले रहा था।  दुर्ग दुल्हन की तरह सज गया था और जीजाबाई आकाश की तरफ देखकर अपने भाग्य को धन्य पा रहीं थीं। भगवान के सामने जो प्रतिज्ञा ली थी कि मैं स्वतंत्र राज्य में ही अपनी आँखें मूंदूंगी।

राजभवन में अतिसुन्दर मंडप के नीचे महाराज शिवाजी का राज्याभिषेक देखकर जीजाबाई गदगद हैं! अग्नि के सम्मुख जैसे ही शिवाजी ने प्रतिज्ञा ली “मैं राम राज्य स्थापित करूंगा” वैसे ही चारों ओर से शंख ध्वनि होने लगीं! जीजाबाई राम राम रटने लगीं!

आज उनके जीवन का सबसे बड़ा सपना साकार हो रहा है! उनके शिवा पर गंगा, यमुना, नर्मदा सहित सात नदियों का जल छिड़का जा रहा है। आज से उनका शिवा छत्रपति  शिवाजी कहलाएगा! कितने उलाहनों, कितने संघर्षों के उपरांत यह दिन आया है! ओह, आँचल में छुपा लूं अपने शिवा का यह रूप! यह राजा राम के राज्याभिषेक से कम दृष्य है क्या? इतना पावन, इतना पवित्र! पूरी जनता आज शिवा के कारण नए वस्त्र धारण किए हुए है! राजतिलक हुआ और जैसे ही अग्नि और भगवती के सम्मुख रखा हुआ मुकुट उठाकर गाग भट्ट ने शिवाजी के माथे पर रखा वैसे ही एक क्षण के लिए समय ठहर गया!  इतिहास में यह दिन स्वतंत्रता के प्रथम पड़ाव के नाम पर दर्ज हो गया! “बोलो छत्रपति शिवाजी की जय! छत्रपति शिवाजी की जय!”

बाहर जितने लोग एकत्र हैं उन सभी को फल एवं मिष्ठान वितरण हो रहा है! परन्तु सभी उस छत्रपति की एक झलक देखना चाहते हैं  जो उनका प्रिय है, जो उनके लिए अपने प्राणोत्सर्ग करने के लिए तत्पर रहता है। बाहर उत्सव मन रहा है! नृत्यों का प्रदर्शन हो रहा है! योद्धा अपने करतब दिखा रहे हैं! भाट भजन गा रहे हैं! बच्चे शिवा की तरह वस्त्र धारण करे हुए हैं! यह दुर्ग शिवामय हो गया है! नहीं नहीं यह युग ही शिवामय हो गया है! कोई नहीं कह सकता था कि आज से कुछ वर्ष पूर्व एक स्त्री द्वारा देखा गया स्वप्न इस भव्य रूप में साकार होकर आएगा!

“शिवा, सब आपकी प्रतीक्षा बाहर कर रहे हैं! छत्रपति के रूप में आप आज अपनी जागीर की सड़कों पर जाएंगे! आप हाथी पर सवार होंगे”!

“मैं आज तक अपनी प्रजा के मध्य रहा हूँ, आप मुझे हाथी पर बैठाकर उनसे दूर न करिए!” शिवा अचकचा गए

“हा हा! अब आप छत्रपति हैं! आप महाराज हैं! अपने महाराज को देखने के लिए जनता व्याकुल है! और यदि आप अश्व पर सवार होंगे तो वह अपने सजीले नायक को कैसे देख पाएगी? इसलिए संकोच न करें और जाइये मंत्रोच्चार के मध्य जो छत्रपति की उपाधि धारण की है उसके संग क्षेत्र में जाइए! जनता को अपना दर्शन दीजिए और यह सन्देश शत्रुओं को कि जिसे आप पहाड़ी चूहा समझते थे वह अब एक स्वतंत्र राज्य का स्वामी है। स्त्रियाँ आपकी आरती उतारने के लिए व्याकुल हैं! अब आपका कर्तव्य उनके प्रति है पहले उनके पास जाइए फिर जीजाबाई के पास! क्योंकि यह स्वप्न उन्हीं का है! आप इस शताब्दी के ही नहीं शिवा,बल्कि  हर कालखंड के नायक रहेंगे! और युगों युगों उपरान्त भी आपकी ख्याति विश्व के हर कोने में बिखरेगी” गागभट्ट गदगद बोलते जा रहे थे

भगवा ध्वजों से सजा दुर्ग अपने भाग्य पर इठला रहा था । शिवाजी अब छत्रपति शिवाजी हो गये थे।

शिवाजी जब इस नए रूप में जीजाबाई के सम्मुख गए तो माँ की आँखों से गर्व के अश्रु बह निकले।

रुंधे गले से बोलीं जीजाबाई “तुम जैसा पुत्र सदियों में एक बार जन्म लेता है। एक हुए थे राम जो अपने पिता की आज्ञा की पूर्ति के लिए वन चले गए थे और एक हो तुम, जिसने स्वतंत्रता के मेरे स्वप्न को अपना ध्येय बनाया। आज इस माँ का यह आशीर्वाद है शिवा, कि तुम इतिहास के अमिट हस्ताक्षर रहोगे। भारत के वीरों का इतिहास तुम्हारे बिना पूर्ण न होगा। अब मैं शांति से आँखें मूँद सकती हूँ!” 

दुर्ग में नारे लग रहे थे

छत्रपति शिवाजी की जय और शिवाजी नए कर्तव्य पथ पर बढ़ रहे थे। पराधीनता के युग में स्वतंत्र हिन्दू साम्राज्य की नींव रखी जा चुकी थी। दिल्ली की सत्ता तक संदेशा चला गया था! एक साया जो अँधेरे में था, उसकी आँखों से भी खुशी के आंसू बह निकले! “खुदा, शुक्रिया तुम्हारा! अब पूरी ज़िन्दगी इसी खुशी में काट लूंगी!” औरंगजेब यह देखकर कुपित तो था, परन्तु अब कुछ करने की स्थिति में नहीं था! बस उत्तर में बैठकर दक्कन में लहराते स्वतंत्र भगवा को देख सकता था!

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.