पंजाब कुछ वर्ष पूर्व तक खेतीबाड़ी और उद्योगों के लिए जाना जाता था। प्रदेश के लुधियाना, जालंधर, और पटियाला जैसे नगरों में ढेरों औद्योगिक इकाइयां हुआ करती थी। खालिस्तानी आतंकवाद को लगभग 2 दशकों तक झेलने के पश्चात पंजाब फिर उठ खड़ा हो गया था। राज्य में कपडा, फ़ूड प्रोसेसिंग, ट्रैक्टर्स और ऑटो उत्पाद, कृषि आधारित उत्पाद, साइकिल पार्ट्स, खेल उत्पाद, हलके इंजीनियरिंग सामान, रासायनिक उत्पाद, और दवाएं आदि बहुतायत में बना करती हैं।
लेकिन ऐसा लगता है कि पंजाब के भाग्य में शान्ति और समृद्धि है ही नहीं। किसान आंदोलन के समय प्रदेश भर में उद्योगपतियों के विरुद्ध कार्य किये गए, प्रदेश की सड़कें और रेल मार्ग कई कई महीनों तक अवरुद्ध की गयीं। इसके अतिरिक्त खालिस्तानी तत्वों ने राज्य में कानून व्यवस्था को नष्ट भ्रष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। आम आदमी पार्टी ने इसी वर्ष पंजाब में सत्ता पर कब्ज़ा किया था, और यह पहले ही दिन से तय था कि वह किसी भी रूप में अपने मुख्य समर्थकों यानी खालिस्तानियों पर किसी भी प्रकार की लगाम नहीं लगाने जा रही है, और यही हुआ भी।
पिछले कुछ महीनों में पंजाब की कानून व्यवस्था दिन प्रतिदिन बिगड़ती ही जा रही है। कई जानेमाने लोगों की हत्या हो चुकी हैं, प्रदेश में आतंकवादी हमले हो चुके हैं, खालिस्तानी तत्व खुलेआम हिंसा कर रहे हैं, वहीं किसान आंदोलन के नाम पर हर दूसरे दिन सड़कों पर धरने दिए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री भगवंत मान प्रदेश में निवेश लाने के लिए विदेश जाते हैं, लेकिन वहां भी उन्हें कोई सफलता नहीं मिलती, उल्टा झूठ बोलने पर उनकी बेइज्जती ही होती है। ऐसे में एक आम उद्योगपति करे तो क्या करे? साफ़ है, ऐसे में पलायन ही एकमात्र विकल्प बचता है।
पंजाब की कानून व्यवस्था से त्रस्त लगभग 50 उद्योगपतियों ने 19 दिसंबर को लखनऊ में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के साथ मंत्रणा की। इन उद्योगपतियों ने उत्तरप्रदेश में लगभग 5 लाख करोड़ रुपए के निवेश करने के समझौते कर लिए हैं, जो अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है । पंजाब डाइंग फेडरेशन के अध्यक्ष टीआर मिश्रा के अनुसार यह बैठक बीते 19 दिसंबर को हुई थी, और स्वयं मुख्यमंत्री ने सभी से बात की, उन्हें आश्वस्त किया कि उनके उद्योगों को सुचारु रूप से चलाने में राज्य सरकार पूरी सहायता करेगी।
यूँ तो यह समाचार पंजाब सरकार की छवि के लिया अच्छा नहीं था, एकाएक इतने उद्योगों का प्रदेश से बाहर जाना किसी भी राज्य सरकार के लिए अच्छा नहीं होता, इससे उस राज्य की नकारात्मक छवि बनती है।
उद्योगपतियों के बाहर जाने से नाराज़ पंजाब सरकार ने पत्रकार को ही निलंबित
जहां नव निर्वाचित पंजाब सरकार से यह आशा थी कि वह आलोचना को सकारात्मक लेते हुए कदम उठाएगी तो वहीं कथित कट्टर ईमानदार सरकार ने जो किया वह अप्रत्याशित था। पंजाब के उद्योगपतियों के योगी आदित्यनाथ जी से मिलने के समाचार को प्रकाशित करने वाले पत्रकार को ही पंजाब सरकार ने निलंबित कर दिया। यह बड़ा ही आश्चर्जनक समाचार है, लेकिन यह सत्य है।
इस पत्रकार का नाम है आकाशदीप थिंड, जो ‘ज़ी न्यूज़ पंजाब’ में कार्यरत थे। आकाशदीप ने पंजाब के उद्योगपतियों के उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री से मिलने के समाचार को ट्वीट किया था, इसमें उन्होंने यह भी लिखा था कि यह उद्योगपति पंजाब की बिगड़ती कानून व्यवस्था से चिंतित हो कर यह निर्णय ले रहे हैं। इस ट्वीट में कहीं भी प्रदेश सरकार की बुराई नहीं थी, और ना ही इसमें कोई राजनीतिक रंग दिया गया था।
लेकिन आकाशदीप के अनुसार उन्हें पंजाब सरकार के कहने पर ‘ज़ी न्यूज़ पंजाब’ ने नौकरी से निकाल दिया। आकाशदीप ने इस बारे में ट्वीट भी किया है और उन्हें उनके पत्रकार साथियों और विपक्ष के नेताओं का समर्थन भी मिला है। सभी लोग पंजाब सरकार के इस निर्णय की भर्तस्ना कर रहे हैं, और इसे एक बदले की कार्यवाही बताया जा रहा है।
आज़ादी के नारों से पैदा हुई पार्टी ने घोंटा आजादी का गला
‘हमे चाहिए आजादी’, ‘हमे चाहिए स्वराज’, जैसे नारों से उत्पन्न हुई आम आदमी पार्टी ने यह कार्यवाही कर अपने मूल सिद्धांतों को ही धत्ता बता दिया है। पार्टी प्रमुख अरविन्द केजरीवाल स्वयं एक आरटीआई कार्यकर्ता रहे हैं, वहीं मनीष सिसोदिया एक पत्रकार रह चुके हैं, दोनों ही सत्ता से प्रश्न पूछना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते थे। लेकिन आज कोई उनके शासन पर प्रश्नचिन्ह लगाए तो उसे नौकरी से ही निकलवा दे रहे हैं, यह कैसा स्वराज है? यह कैसी आम आदमी की सरकार है?
कुछ लोग इस निर्णय को ‘बदले की कार्यवाही’ भी बता रहे हैं, जो देखने में तो सत्य ही लग रहा है। लेकिन यहाँ प्रश्न उठता है कि एक युवा पत्रकार, जो अभी इस क्षेत्र में नया ही है, उसे एक छोटे से समाचार को ट्वीट करने भर पर नौकरी से निकलवा देना कहाँ तक उचित है? अगर कोई पत्रकार गलत समाचार दे, मजहबी उन्माद फैलाये, अवांछित जानकारी फैलाये, तो उसके विरुद्ध कार्यवाही होना उचित है। लेकिन इस मामले में तो उद्योगपतियों ने स्वयं पंजाब की लचर कानून व्यवस्था के बारे में कहा है, उन्ही के शब्दों को व्यक्त करने पर नौकरी से निकालना तो तानाशाही ही है।