सामाजिक समानता की दुहाई देने वाले वामपंथी अपने शासन में गरीब और आदिवासियों को न्याय देने के लिए कितने उत्सुक रहते हैं, यह उनकी सरकारों के कार्य देखकर पता चलता है। पाठकों को याद होगा कि वर्ष 2018 में केरल में एक आदिवासी व्यक्ति मधु की एक किलो चावल चोरी करने क यारोप में भीड़ ने पीट पीट कर हत्या कर दी थी।
और इतना ही नहीं उबैद नामक व्यक्ति ने तो इसे अपने फेसबुक पर भी अपलोड कर दिया था। इस घटना से पूरा देश स्तब्ध रह गया था। केरल ऐसा प्रदेश है जिसकी प्रशंसा में लिबरल समूह सबसे अधिक लीन रहता है, परन्तु वह केरल में होने वाले अपराधों पर ऐसे चुप्पी साधता है जैसे कुछ हुआ ही न हो। कथनी और करनी में जो अंतर होता है, वह वामपंथी केरल में सबसे अधिक परिलक्षित होता है।
जब इस मामले पर शोर मचा था तो आरोपियों की गिरफ्तारी हुईं थीं। परन्तु पाठकों को यह जानकर निराशा होगी कि सामाजिक न्याय, आदिवासियों के साथ न्याय की बात आती है तो वह कहीं न कहीं निराश करती है। मधु के मामले में भी यही हो रहा है। जहाँ नवम्बर 2021 में मधु की माँ ने यह कहते हुए निराशा व्यक्त की थी कि मामला आगे नहीं बढ़ रहा है, मातृभूमि वेबसाईट के अनुसर मधु की माँ ने यह कहा था कि उनके बेटे को न्याय मिलना चाहिए। मल्ली ने यह भी कहा था कि इतनी उनकी स्थिति नहीं है कि वह इस मामले को आगे ले कर जा सकें, और उनके परिवार में तीन महिलाओं के अतिरिक्त कोई नहीं है।
वहीं सरकार की ओर से नियुक्त किए गए वकील पर भी संशय है। अभी तक मधु का मुकदमा लड़ने के लिए सरकारी वकील भी सही से नियुक्त नहीं किया जा सका है। जबकि इस मामले को चार वर्ष होने वाले हैं। मीडिया के अनुसार जब 15 नवम्बर 2021 को मामले की सुनवाई हुई थी तो सरकारी वकील अनुपस्थित थे, जिसके बाद सुनवाई को 25 जनवरी तक स्थगित कर दिया था। परन्तु अब एक बार फिर से सरकारी वकील मंगलवार को उपस्थित नहीं हुए और अब न्यायालय ने इस सुनवाई को 26 जनवरी तक के लिए टाल दिया गया।
इस मामले में अगस्त 2019 में विशेष सरकारी वकील के रूप में वीटी रघुनाथ को नियुक्त किया गया था, परन्तु मंनार्क्कड़ न्यायालय में उपस्थित नहीं हुए थे। अभी तक उनके जूनियर वकील ही शामिल हुए थे और यह भी अनाधिकारिक रूप से वह बता चुके हैं कि वह इस मामले से त्यागपत्र दे चुके हैं। मीडिया के अनुसार उन्हें डीजीपी ऑफिस ने यह कहा है कि इस मामले में सरकारी वकील बने रहें।
हाल ही में कई मामलों में वामपंथी दोगलापन दिखाई दिया है
पूर्व स्वास्थ्य मंत्री और कोरोना घोटाला
यह हम सभी ने देखा है कि कैसे एक विशेष वर्ग ने केरल में कोरोना से जीत की कहानियाँ रच दी थीं। यह कहा गया था कि भारत सरकार को केरल सरकार से सीखना चाहिए। धीरे धीरे सच्चाई सामने आई और यह पता चला कि “रॉकस्टार” के के शैलजा, जिन्हें केरल में सरकार बनने के बाद उन्हें स्वास्थ्य मंत्री के पद पर नियुक्त नहीं किया गया था, उन पर घोटालों के आरोप लगे।
उन पर प्रश्न उठाए गे कि जो पीपीई किट्स निपाह संक्रमण के दौरान 550 रूपए की खरीदी गयी थीं, वह कोविड के दौरान 1550 रूपए की कीमत की कैसे हो गईं थीं? उन्होंने इस विषय में मुख्यमंत्री पिनराई विजयन पर उंगली उठाते हुए कहा कि यह उनके ही अनुरोध पर की गयी है। दिसंबर 2021 में मीडिया के अनुसार केरल मेडिकल सर्विसेज़ कारपोरेशन लिमिटेड ने माफिया द्वारा की गयी लूट को बताया था और यह भी कहा था कि भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को कोविड 19 के नियंत्रण के लिए उत्पादों एवं उपकरण की आपात खरीद के नाम पर सही ठहराया गया था।
इसके साथ ही यह भी कहा गया था कि इस विस्फोटक पत्र को सामने लाने वाले कुछ लोगों को पहले स्थानांतरित भी किया गया था।
केरल के मुख्यमंत्री और खेलमंत्री के उपचार के लिए अमेरिका जाने पर भी प्रश्न उठे थे
बार बार यह कहा जाता है कि केरल में स्वास्थ्य सेवाएं विश्वस्तरीय हैं एवं केरल से ही पूरे विश्व में नर्सिंग स्टाफ जाता है, अर्थात कहीं न कहीं पूरे देश को यह कहते हुए पिछड़ा दिखाने का प्रयास किया जाता है कि केरल से ही पूरे विश्व में स्वास्थ्य कर्मी जाते हैं। परन्तु पिछले दिनों केरल के खेल एवं वक्फ तथा हज यात्रा मंत्री वी अब्दुरहिमन के तो सरकारी खर्च पर उपचार के लिए अमेरिका जाने के समाचार आए ही थे, साथ ही 15 जनवरी को केरल के मुख्यमंत्री भी “फॉलो-अप” चेकअप के लिए अमेरिका गए थे और अभी तक वहीं पर हैं।
यद्यपि वह इतने स्वस्थ हैं कि वह अपना सारा काम ऑनलाइन देख रहे हैं तथा यही कारन हैं कि वह अपना कार्यभार किसी और को सौंप कर नहीं गए हैं।
यह कुछ मामले हैं जो केरल एवं वामपंथी सरकार के दोगले और दोहरे रवैये की पोल खोलते हैं, जिसमे वह बार बार सामजिक न्याय की बात तो करते हुए नजर आते हैं, परन्तु सामाजिक न्याय की परिभाषा से उनके कार्य कोसों दूर हैं।