यदि यह कहा जाए कि स्टैंड अप कॉमेडियंस की हिन्दू घृणा से भरी गतिविधयां भारत तक ही सीमित हैं, तो हम गलत होंगे। या फिर कहा जाए कि नाम के लिए ही हिन्दू लेफ्ट लिब्रल्स जो अपनी अंग्रेजी पहचान को साबित करने के लिए या फिर कहें खुद को हिन्दू न समझे जाने को लेकर पश्चिम का प्रमाणपत्र लेने के लिए हिन्दुओं और भारत की बुराई विदेशों में करने लगे हैं।
ऐसा ही एक हैरान करने वाला उदाहरण सामने आया है, जिसमें स्वघोषित स्टैंडअप कॉमेडियन वीर दास, ने अमेरिका जाकर भारत को बदनाम करने वाली “कविता” पढ़ी है। जो लोग ऐसी कविता पढ़ते हैं, उन्हें यह भी नहीं पता होता है कि आखिर कविता होती क्या है? कविता का अर्थ क्या होता है? कविता कैसे लिखी जाती है और क्यों लिखी जाती है?
जो वीरदास ने किया उसे कुंठा और आत्महीनता कहते हैं। इस आत्महीनता का शिकार जड़ से कटे हुए हिन्दू होते हैं क्योंकि उन्हें पश्चिम के उस वर्ग का प्रमाणपत्र चाहिए होता है, जो हिन्दुओं को नीचा समझते हैं। और जो भारत को अभी तक सांप और सपेरे का देश मानते हैं। जिस अमेरिका में अभी तक बालविवाह होते हैं और साथ ही वर्ष 2017 की रिपोर्ट तक सभी 50 राज्यों में बालविवाह वैध थे और अभी भी संभवतया 44 राज्यों में यह वैध है और बहुत ही अधिक हो रही है। वर्ष 2000 से 2018 के बीच अमेरिका में लगभग दस साल तक की तीन लाख बच्चियों की शादी हो गयी थी और अधिकतर की शादी व्यस्क पुरुषों से हुई थी।
और जब वीर कहते हैं कि
“मैं उस भारत से आता हूं, जहां हम दिन में औरतों की पूजा करते हैं और रात में गैंगरेप करते हैं।”
उस समय वह हिन्दुओं को ही दोषी ठहरा रहे हैं और हिन्दुओं के साथ मुस्लिमों द्वारा किए जा रहे हर अत्याचार को धो देते हैं।
यह बात सभी को पता है कि भारत में केवल हिन्दू ही हैं, जो स्त्री रूप की पूजा करते हैं। जहाँ पर जगत जननी की अवधारणा है, जहाँ पर माँ लक्ष्मी की अवधारणा है। और जहाँ पर माँ सरस्वती की पूजा हिन्दू विद्या के लिए करते हैं। वीरदास यह सब उस पश्चिम में खड़े होकर बोल रहे थे जहाँ पर रिलिजन के आधार पर चर्च में कुछ दशकों से बच्चों के साथ हुए यौन उत्पीड़न से लोग दहले हुए हैं।
5 अक्टूबर को बीबीसी में चर्च हुए सेक्सुअल स्कैंडल की विस्तृत रिपोर्ट थी। मगर वीरदास ने ऐसा उल्लेख नहीं किया कि मैं उस देश में हूँ, जहाँ पर चर्च में ही यौन स्कैंडल होता है।
वीरदास यह भूल गए कि भारत में मात्र स्त्रियों की पूजा ही नहीं होती है, बल्कि उन्हें अधिकार भी प्राप्त है। और जिस अमेरिका में खड़े होकर वह बोल रहे थे, वहां पर स्त्री राष्ट्रपति नहीं हुई है, जबकि भारत में स्त्री प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति भी बन चुकी हैं और इस समय अधिकतर महत्वपूर्ण मंत्रालयों में महिला मंत्री हैं।
इतना ही नहीं, उनकी नजर जब हिन्दू देवियों पर थीं, उस समय उनके दिमाग में यह नहीं था कि भारत में केरल में चर्च में यौन शोषण ही नहीं हो रहा है, बल्कि सिस्टर अभया जैसे मामले दबाए भी जा रहे हैं, वेटिकन ने बिशप फ्रैंको मुलक्कल द्वारा किए गए ननों के यौन शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाने वाली सिस्टर लूसी के साथ क्या किया है, यह शायद वीरदास ने नहीं देखा होगा?
देखेंगे भी कैसे? क्योंकि उन्हें उसी रिलीजियस कट्टरता से प्रमाणपत्र चाहिए, जो अभी तक पोप का पद किसी महिला को देने के लिए तैयार नहीं हैं,
जबकि हिन्दुओं में महिलाओं का अपना एक अखाड़ा ही है। इतना ही नहीं वीरदास की दृष्टि भारत में उन क्षेत्रों में नहीं जा पाती है, जहां पर हिन्दू लडकियां मजहबी मानसिकता का शिकार हो रही हैं। निकिता तोमर को मारने वाला, दिन में लड़कियों को नहीं पूजता था, और उसने दिन दहाड़े केवल इसलिए मार दिया था क्योंकि निकिता तोमर ने इस्लाम अपनाने से इंकार कर दिया था।
कश्मीर में गिरिजा टिक्कू को जिन्होनें बलात्कार के बाद जिंदा आरी से काट दिया था, वह भी दिन में औरतों को पूजने वाले नहीं थे! वह दिन में हत्या करने वाले थे, मजहबी हत्या करने वाले। कश्मीर में यह नारा लिखने वाले कि कश्मीरी पंडित घाटी छोड़ जाएं, पर अपनी औरतें यहीं छोड़ जाएं” भी दिन में औरतों की पूजा करने वाले नहीं थे, बल्कि दिन दहाड़े बलात्कार करने वाले और हिन्दू औरतों को अपना माल मानने वाले थे।
वीरदास की जानकारी कम है और एकरंगी है तभी वह ब्लू और ग्रीन और औरेंज में अटक जाते हैं और कहते हैं “मैं उस भारत से आता हूं, जहां हम जब भी ‘ग्रीन’ के साथ खेलते हैं ब्लीड ब्लू का नारा देते हैं लेकिन ग्रीन से हारने पर हम अचानक से ऑरेंज हो जाते हैं.”
यदि वह खुलकर देखते तो पाते कि कितने ग्रीन ज़ोन हैं जहाँ पर खाकी ही नहीं जा पाती है, कितने ग्रीन ज़ोन हैं कश्मीर में, केरल में और बंगाल में जिन्होनें उनकी भाषा में औरेंज, परन्तु हिन्दुओं की भाषा में केसरिया ज़ोन अर्थात सैफ्रोन ज़ोन को पहले केसरिया रंग को मानने वालों के खून से लाल किया और फिर ग्रीन कर लिया और अब वहां पर पाकिस्तान की जीत पर या कहें पाकिस्तान की भारतीय क्रिकेट की टीम पर पटाखे चलते हैं।
वीरदास जिनसे प्रमाणपत्र मांग रहे हैं, विश्वास मानिए, वह उन पर हँस रहे होंगे क्योंकि हिंदी के कवि स्व. पंडित गयाप्रसाद शुक्ल ने लिखा है कि
जो भरा नहीं है भावों से
बहती जिसमें रसधार नहीं
वह हृदय नहीं है पत्थर है
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
और साथ ही मैथिली शरण गुप्त ने भी कहा है कि
जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है,
वह नर नहीं पशु है निरा और मृतक समान है’
वीरदास जैसे लोग अपने धर्म और अपने देश की बाहर बुराई करने को लेकर अपनी शान मानते हैं, पर विश्वास मानिए, जड़ विहीन लोग एक दिन लाफिंग स्टॉक बनते हैं।
परन्तु वीरदास जैसे लोगों का साहस इसलिए बढ़ता है क्योंकि हमने अपने धर्म को सार्वजनिक संपत्ति बना दिया है, हिन्दू धर्म को सेक्युलर बना दिया है, कि कोई भी कुछ भी बोलकर चला जाए! किसी की यह हिम्मत नहीं होती कि कैसे पाँचों वक्त नमाज पढने वाले और इस्लाम का नाम लेकर सत्ता में आए तालिबान कलाकारों की हत्या कर रहे हैं, औरतों की हत्या कर रहे हैं!
कोई नहीं कहता कि प्रेयर कराने वाले फादर या बिशप बच्चों का बलात्कार कर रहे हैं, कन्फेशन बॉक्स का फायदा उठा रहे हैं,
कोई नहीं कहने की हिम्मत कर सकता कि ग्रन्थ के नाम पर निहंग निर्दोषों के हाथ पैर काटकर लटका सकते हैं,
पर हाँ वीरदास जैसे जड़ विहीन हिन्नू यह अवश्य कह सकते हैं
“मैं उस भारत से आता हूं, जहां हम दिन में औरतों की पूजा करते हैं और रात में गैंगरेप करते हैं।”
आंकड़े उठाकर देखिये जड़ों से कटे वीरदास, तब पता चलेगा, और यह अब हिन्दुओं को समझना होगा कि धर्म का राष्ट्रीयकरण नहीं होता, कोई कुछ भी बोलकर निकल जाए, इतनी सहिष्णुता भी उचित नहीं और वह भी ऐसे लोग जो इस्लाम और चर्च द्वारा की जा रही हर प्रकार की हिंसा को अपना समर्थन देते हैं! जो किसान आन्दोलन के नाम पर हिंसा को समर्थन देते हैं, किसान आन्दोलन में हुए बलात्कार पर मुंह नहीं खोलते हैं!