“विनती राय प्रवीण की, सुनिए साह सुजान,
झूठी पातर भखत हैं, बायस-बारी-स्वान”
यह सुनते ही दिल्ली में अकबर के दरबार में सन्नाटा छा गया। इतनी हिमाकत! इतनी हिमाकत, और वह भी एक औरत की? होगी बहुत सुन्दर या होगा अकबर साठ बरस का, इतनी हिम्मत एक नर्तकी की कि वह बादशाह को बायस माने कौवा, या स्वान (कुत्ता) जैसे शब्द बोले! अकबर का पारा उस सुन्दर नर्तकी को देख देखकर और चढ़ता जा रहा था। उसने एक उड़ती उड़ती नज़र उस पर डाली। बादशाह उस अलौकिक सौन्दर्य से एक बार पुन: चकित हो गया, वह उस सौन्दर्य से पराजित सा होने लगा।
और दूसरी तरफ वह अकेली खड़ी थी। दरबार में अकेली, जैसे द्रौपदी खड़ी हो कौरवों की सभा में। द्रौपदी को बचाने के लिए कृष्ण आए थे, यहाँ पर उसे बचाने कौन आएगा, जिसके प्रेमी पर इस अकबर ने एक करोड़ रूपए का दंड लगा दिया है, कि वह रायप्रवीण को अकबर के दरबार में भेज दे! रायप्रवीण, जिसपर न केवल सरस्वती की कृपा थी अपितु उसे रूप एवं सौन्दर्य भी विधाता ने खुले हाथों से प्रदान किया था। ओरछा के महाराजा इंद्रजीत की प्रेमिका थीं। कहा जाता है कि गन्धर्व विवाह भी कर लिया था उनसे इन्द्रजीत सिंह ने।
रायप्रवीण ने महाकवि केशव का शिष्यत्व ग्रहण कर स्वयं को काव्य सृजन में समर्पित कर दिया था। रूप था ही, कविता थी। और उस पर ओरछा के रामराजा मंदिर में राम भजन गाती तो पूरा शहर स्थिर हो जाता। पूरे ओरछा में रायप्रवीण के सौन्दर्य और कंठ की प्रशंसा फैलती चली गयी। उसके बाद उसने कुशल संगीतज्ञ हरिराम व्यास के चरणों में बैठकर संगीत और उसकी गहराइयों को समझा एवं उनके निर्देशन में दक्षता प्राप्त की।
कौन जानता था कि माधव लोहार की बेटी पूर्णिमा एक दिन वाकई पूर्णिमा का चाँद बन जाएगी। परन्तु यह तो दिल्ली के दरबार में चाँद जैसी चमक रही थी। उसके स्वरों में इन्द्रजीत को दिया गया आश्वासन भी झलक रहा था, जो अभी भी उसकी पसीजी हथेलियों में था। “चिंता न करें, महाराज! अकबर मुझे कभी प्राप्त नहीं कर पाएगा, उसे पराजित होना होगा! वह मेरी कविता से ही पराजित होगा। जब वह कविता से पराजित हो सकता है, उसके लिए तलवार क्या उठाना?”
दरबार में रायप्रवीण जिस प्रकार दृढता से खड़ी थी, उसकी दृढता ने अकबर को विचलित कर दिया। यह औरत? इतनी हिम्मत? भरे दरबार में मुझे क्या कह रही है?
“बादशाह, मैंने आपसे कुछ नहीं कहा! मैंने बस स्वयं के विषय में कहा है कि मैं अब और किसी की नहीं हो सकती, क्योंकि इन्द्रजीत सिंह मेरे हो चुके हैं और मैं उनकी हो चुकी हूँ! तो दूसरे की जूठन को कौन खाता है इस विषय में मैं आपसे क्या कहूं?”
युवावस्था होती तो उसका भरे दरबार में सिर भी कलम करा दिया जाता, परन्तु अकबर यहाँ पर लज्जित सा बैठा था, इस आयु में कामवासना और औरत के लालच ने कैसा काण्ड करा दिया था? वह न ही दरबार में सिर उठा पा रहा था और न ही अपनी गलती को स्वीकार कर पा रहा था। उसने स्वयं से ही जैसे पूछा “क्या करूँ?” फिर भीतर के काम को पराजित करते हुए केशवदास के अनुरोध पर रायप्रवीण को उपहार देकर विदा किया तथा इन्द्रजीत पर लगा हुआ एक करोड़ का अर्थदंड भी क्षमा कर दिया।
जिस रात रायप्रवीण ओरछा पहुँची प्रेम में पगे हुए इन्द्रजीत ने और पूरे ओरछा ने दीवाली मनाई!
प्रेम जीता था, कामुकता हारी थी, कामुक बादशाह हारा था, कवि ह्रदया रायप्रवीण जीती थी।
सनातन स्त्री जीतती है, हरम की प्यासी मुग़ल सत्ता हारती है।
जो लोग यह प्रपंच रचते हैं कि हिन्दू स्त्रियों को लिखना या पढ़ना नहीं आता था, उन्हें प्रवीण राय की यह कविता पढ़नी चाहिए, जो प्रेम की, प्रणय की और मिलन की कविता है:
वह लिखती हैं
कूर कुक्कुर कोटि कोठरी किवारी राखों,
चुनि वै चिरेयन को मूँदी राखौ जलियौ,
सारंग में सारंग सुनाई के प्रवीण बीना,
सारंग के सारंग की जीति करौ थलियौ
बैठी पर्यक पे निसंक हये के अंक भरो,
करौंगी अधर पान मैन मत्त मिलियो,
मोहिं मिले इन्द्रजीत धीरज नरिंदरराय,
एहों चंद आज नेकु मंद गति चलियौ!
अर्थात वह स्पष्ट कह रही है कि आज मिलन की रात कहीं बीत न जाए और रात लम्बी हो, और पिया से मिलन में व्यवधान न आए उसके लिए वह हर कदम उठाएगी, वह कुत्ते को कोठरी में बंद करेगी, वह चिड़ियों को जाली में बंद करके उनका कलरव बंद करेगी, वह वीणा से चन्द्रमा को प्रभावित करेगी और कहेगी कि आज की रात को और बढ़ा दे!
यह प्रेम की उन्मुक्तता है! यह देह की बात है, यह देह की पुकार है, वह चाहती है कि अपने प्रियतम की देह का सुख वह पूरी रात ले, और इसमें उसे कोई व्यवधान नहीं चाहिए!
स्त्री जब मिलन की कल्पना करती है तो वह प्रवीनराय हो जाती है। जो कामुक अकबर को पराजित करके आती है। वह ऐसी स्त्री है जो वाक्पटु है, सुन्दर है और सबसे बढ़कर स्वतंत्र निर्णय लेने वाली है।
*कई काव्य पुस्तकों एवं इतिहास के आधार पर यह लेख पाठकों के लिए प्रस्तुत है