जब से कोरोना की दूसरी लहर का कहर शुरू हुआ और अस्पतालों में बेड, ऑक्सीजन आदि की कालाबाजारी शुरू हुई, वैसे ही वामपंथियों और कट्टर इस्लामियों का मंदिरों के विरुद्ध प्रोपोगैंडा आरम्भ हो गया और यह कहा जाने लगा कि “हम लड़े ही कब थे अस्पतालों के लिए, हम लड़े ही कब थे ऑक्सीजन आदि के लिए, हम तो मंदिरों और मस्जिदों के लिए लड़े थे!” और यह स्पष्ट है कि इसमें मस्जिद केवल इसीलिए जोड़ा गया जिससे राजनीतिक रूप से सही रह सकें। नहीं तो यह प्रहार केवल और केवल मंदिर पर था।
मंदिर के प्रति और वह भी राम मंदिर के प्रति इनकी घृणा बार बार बाहर निकलने लगी क्योंकि वह हिन्दुओं की पहचान और हिन्दुओं के आत्मगौरव से जुड़ा हुआ है। कोई भी भारतीय कथित वामपंथी यह नहीं चाहेगा कि हिन्दुओं में आत्मगौरव और आत्म चेतना का विस्तार हो। चूंकि 2014 के बाद हिन्दुओं की पहचान की चेतना उत्पन्न हो रही है तो बार बार यही कहा जा रहा है कि हम लड़े ही कब अस्पतालों के लिए थे।
या फिर राम मंदिर के स्थान पर बार बार फिर से अस्पताल बनाने की बात आने लगी। राम मंदिर ट्रस्ट ने जो ऑक्सीजन संयंत्र लगाया है, उसमें से स्पष्ट है कि ऑक्सीजन सभी के लिए होगी, तो फिर समस्या क्या है? समस्या हिंदुत्व की प्रखर पहचान से है। समस्या उस चेतना से है जो अब जाग रही है, समस्या उन प्रश्नों से है जो एजेंडे में नहीं फंस रहे है।
मगर इन सभी ढोंगी एवं दोहरे मापदंड रखने वालों की मानसिकता तब सामने खुलकर आती है जब मस्जिद की बात आती है। दो दिनों से इजरायल और फिलिस्तीन के बीच जो चल रहा है, उसे पूरा विश्व देख रहा है। परन्तु उसके इतिहास में न जाते हुए केवल इस पर चर्चा की जानी चाहिए कि जिन कथित वामपन्थियों को मंदिर नज़र आ रहा है, वह एक मस्जिद के कारण होने वाले झगड़े में उस देश के मुस्लिमों के साथ जाकर खड़े हो रहे हैं, जिस देश से उन्हें कुछ लेना देना ही नहीं है।
हिन्दुओं को मंदिर के नाम पर उपदेश देने वाले सुदूर इजरायल में अल-अक्सा मस्जिद में नमाज पढने को लेकर हुए विवाद पर इजरायल को कोस रहे हैं। जैसे वह बार बार हिन्दुओं से कहते हैं कि हिन्दुओं को राम मंदिर के स्थान पर, चूंकि वह विवादित स्थल है, वहां अस्पताल बनवा देना चाहिए, सारा विवाद ही समाप्त हो जाए, और वहीं वह अपने दल बदल सहित सुदूर देश की अल-अक्सा मस्जिद को लेकर उनके सुर बदल जाते हैं। उस अल-अक्सा मस्जिद को लेकर ही तो विवाद है जिसके कारण इजरायल पर इस बार हमास ने आक्रमण किया था। तो हमारे कट्टर वामपंथी यह क्यों नहीं कहते हैं कि छोड़ दो वह मस्जिद?
मगर वह ऐसा नहीं कहते! इतना ही नहीं फिलिस्तीन के प्रति इन प्रगतिशील वामपंथियों का समर्थन इतना है कि अपने प्रिय राज्य के प्रिय पेशे की स्त्री के मरने पर शोक भी नहीं व्यक्त कर सकते। जी, हाँ! वामपंथी इस हद तक कट्टर इस्लाम के गुलाम हैं कि वह कट्टर इस्लाम के एजेंडे को एक प्रतिशत नुकसान पहुंचाने वाली बात को स्वीकार नहीं करते।
परसों समाचार आया कि इजरायल में एक भारतीय नर्स और जाहिर है कि वह केरल की ही होगी, वह हमास द्वारा किये गए राकेट हमले में मारी गयी। जैसे ही यह खबर फ़ैली वैसे ही भारतीयों ने इसे लेकर शोक पूर्ण सन्देश पोस्ट किये। मगर आपको हैरानी होगी यह जानकर कि जो प्रदेश इस बात पर गौरव का अनुभव करता है कि वहां पर शत प्रतिशत साक्षरता है और वहां से सबसे ज्यादा नर्स विश्व में सेवा देने जाती हैं, उस प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्थात पिनरई विजयन ने अब तक उस मलयाली नर्स की मृत्यु पर यह कहते हुए शोक प्रकट नहीं किया है, कि सौम्या की मृत्यु इजरायल में गाजा से फिलिस्तीन आतंकवादियों द्वारा एक राकेट हमले में हुई है।
इस मामले को लेकर जनपक्षम पार्टी के नेता और पूंजार के पूर्व विधायक पी सी जॉर्ज ने अपनी फेसबुक पोस्ट पर इस विषय पर प्रश्न पूछा कि आखिर विजयन ने अब तक निंदा क्यों नहीं की है? क्या वोटों के लिए? और उन्होंने पूछा कि आपको किससे डर है, फिलिस्तीन से या हमास से? या फिर केरल में हमास से? यह प्रश्न केवल केरल के मुख्यमंत्री से हों ऐसा नहीं है, यह प्रश्न तो वामपंथी लेखिकाओं से भी हैं?
क्या वह अपने ही प्रदेश की ऐसी स्त्री की असामयिक मृत्यु पर शोक भी व्यक्त नहीं करेंगी जो उस संस्था द्वारा मारी गयी है जिसका वह वैचारिक समर्थन करती हैं? पर वैचारिक समर्थन अपने अपनों की कीमत पर? हमास उनके लिए इतना विराट है कि अपनी ही एक नर्स, जो उनकी बहन, या बेटी के समान हो सकती है, या साथी हो सकती है, उसके लिए मुंह नहीं खोलेंगी? यह इनका बहनापा है!
हां, जिस इजरायल से यह इतनी घृणा करती हैं और जिस भारत सरकार से यह हृदय से घृणा करती हैं, उन दोनों ने ही आधिकारिक स्तर पर सबसे पहले ट्वीट करके पीड़ित परिवार के प्रति सांत्वना प्रकट की थी
I just spoke to the family of Ms. Soumya Santosh, the victim of the Hamas terrorist strike. I expressed my sorrow for their unfortunate loss & extended my condolences on behalf of the state of Israel. The whole country is mourning her loss & we are here for them. pic.twitter.com/btmoewYMSS
— Ron Malka 🇮🇱 (@DrRonMalka) May 12, 2021
इतना ही नहीं कांग्रेस की एक नेता वीणा एस नायर ने हमास के आतंकवादियों की निंदा करते हुए सौम्या संतोष नामक नर्स की मृत्यु का एक फेसबुक पोस्ट शेयर किया था। जल्दी ही उनपर हरे हरे हमले शुरू हो गए और उन्होंने वह तस्वीर डिलीट करके माफी माँगी कि उनसे गलती से फेसबुक पोस्ट हो गया था।
हालांकि बाद में आलोचनाओं के उपरान्त केरल के मुख्यमंत्री द्वारा संवेदना अवश्य व्यक्त गयी परन्तु उसमें कहीं भी इस कारण का उल्लेख नहीं था।
मीडिया की रिपोर्ट्स के अनुसार सौम्या हिन्दू थीं और उन्होंने एक ईसाई से विवाह किया था, परन्तु इस विवाह में घर वालों की सहमति थी। सौम्या संतोष की हमास द्वारा हत्या पर एक ऐसा दोहरा रवैया दिखाई देता है, जो मीडिया के इस्लाम प्रेम की कलई खोलता है। वह यह बताता है कि कैसे राजनीति और मीडिया का एक बड़ा वर्ग हिन्दुओं की जान को एकदम हल्के में लेता है, फिर चाहे वह ईसाई ही क्यों न हो गयी हों। उनके लिए उस जान का कोई मोल ही नहीं है! क्योंकि सौम्या को उस पहचान ने मारा है, जिस पहचान से वह बार बार प्रमाणपत्र लेने की फिराक में रहते हैं।
इतना ही नहीं, केरल के एक पोर्टल matrubhumi.com पर ही रिपोर्टिंग के दो मापदंड दिखाई देते हैं. जहाँ एक फिलीस्तीन नर्स के लिए वह फ़रिश्ते का प्रयोग करते हैं, तो वहीं एक भारतीय और वह भी हिन्दू नर्स की हमास अर्थात फिलिस्तीनियों द्वारा की गयी हत्या के लिए “राकेट हमले के पीड़ित का शव” प्रयोग करती है. इससे भी यह समझ में आ जाना चाहिए कि वामपंथी मीडिया द्वारा निष्पक्षता, वामपंथी लेखिकाओं द्वारा बहनापा और कांग्रेसियों द्वारा आतंक के विरोध में आवाज़ उठाना एक ऐसा दिवा स्वप्न है, जो कभी पूरा नहीं होगा.
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