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Saturday, June 28, 2025

झूठ और दुष्प्रचार करने के लिए कुख्यात ‘द वायर’ पर दिल्ली पुलिस का छापा, सेक्युलर-लिबरल गिरोह ने अलापा असहिष्णुता का राग

भाजपा आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय की शिकायत पर दिल्ली पुलिस ने कथित समाचार समूह ‘द वायर’ और उसके संपादकों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया है। अमित मालवीय ने दिल्ली पुलिस के विशेष आयुक्त (अपराध) को अपनी शिकायत में बताया था कि ‘द वायर’ ने उनकी छवि खराब करने के उद्देश्य से दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ की थी। इस शिकायत में उन्होंने ‘द वायर’, उसके संस्थापक संपादकों सिद्धार्थ वरदराजन, सिद्धार्थ भाटिया और एम. के. वेणु, डिप्टी एडिटर और एग्जीक्यूटिव न्यूज़ प्रोड्यूसर जाह्नवी सेन, फाउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिज्म और अन्य अज्ञात लोगों पर आरोप लगाया है।

दिल्ली पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धाराओं 420 (धोखाधड़ी), 468, 469 (फर्जीवाड़ा), 471 (ठगी), 500 (मानहानि), 120बी (आपराधिक साजिश) और 34 (आपराधिक गतिविधि) के अंतर्गत यह मुकदमा दर्ज किया है। इस मामले में एक आश्चर्यजनक बात यह उभर कर आयी है कि ‘द वायर’ ने अपने ही शोधकर्ता देवेश कुमार के विरुद्ध पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है। वह देवेश ही थे जिन्होंने ‘द वायर’ के लिए यह लेख लिखे थे और अब उन्हें ही मनगढ़ंत तथ्य लिखने का आरोपी बना दिया गया है। हालांकि दिल्ली पुलिस ने अभी तक देवेश के विरुद्ध कोई मुकदमा या शिकायत दर्ज नहीं की है।

सिद्धार्थ वरदराजन ने बताया इस कार्यवाही को मीडिया के लिए चेतावनी

जैसी की आशा की गयी थी, ‘द वायर’ के प्रबंधन ने इस कार्यवाही को गलत बताया है । सिद्धार्थ वरदराजन ने कहा कि, “पत्रकारिता में एक प्रकाशन संस्था से कोई गलती हुई जिसे उसने स्वीकारा है, वापस लिया है और उसके लिए क्षमा भी मांगी है। अब उसे अपराध में बदलने का प्रयास पूरे भारतीय मीडिया के लिए एक चेतावनी होनी चाहिए।”

वरदराजन ने चिंता जताते हुए कहा कि जब्त इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की हैश वैल्यू को उनके साथ साझा नहीं किया गया। उन्होंने कहा, “हमने पुलिस से इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के हैश वैल्यू को साझा करने के लिए कहा है, लेकिन उन्होंने अभी तक हमें हैश वैल्यू नहीं दी है। जबकि पुलिस ने कहा कि वह बाद में देंगे, हमारे उपकरण वापस करने के बारे में भी अभी तक कुछ नहीं बताया गया है।”

वरदराजन ने चिंता प्रकट करते हुए कहा कि देवेश के विरुद्ध पुलिस में शिकायत देने के बाद भी अभी तक एफआईआर दर्ज नहीं हुई है। जबकि मालवीय की शिकायत पर एक दिन में ही एफआईआर दर्ज हो गई।” सिद्धार्थ ने कहा कि ‘द वायर’ ने अपने लेखों में गलत जानकारी दी, जिसके पश्चात हमने अपने पाठकों से क्षमा भी मांग ली थी। लेकिन अमित मालवीय से क्षमा मांगने के प्रश्न पर वह बोले “हम इसे न्यायालय में देखेंगे।”

क्या थी टेक फॉग स्टोरी, जिसने ‘द वायर’ को क्षमा मांगने पर विवश किया?

‘द वायर’ पिछले कुछ महीनों से एक झूठी खबर चला रहा था, जिसमे वह भाजपा के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय पर आरोप लगा रहा था कि वह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अपने प्रभाव का उपयोग कर विपक्षियों और विरोध करने वाले लोगों की पोस्ट्स को हटवा देते थे, और उनके एकाउंट्स को भी प्रतिबंधित कर देते थे। ‘द वायर’ ने अपनी कहानी को सच बताने के लिए मेटा कंपनी के आतंरिक संचार के बारे में झूठी जानकारियां दी, जिसे मेटा ने ना सिर्फ नकारा बल्कि वायर के विरुद्ध अकाट्य साक्ष्य भी दिए।

26 अक्टूबर को अंततः सब ओर से घिर जाने के पश्चात ‘द वायर’ ने मेटा के विरुद्ध की गई रिपोर्ट्स वापस ले ली हैं। ‘द वायर’ के प्रमुख सिद्धार्थ वरदराजन ने अपने कुकृत्य के लिए क्षमा भी मांगी। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा, “हमने बाहरी विशेषज्ञों की सहायता से उपयोग की जाने वाली तकनीकी स्रोत सामग्री की आंतरिक समीक्षा करने के बाद मेटा रिपोर्ट्स को हटाने का निर्णय लिया है।”

वरदराजन आगे कहते हैं कि, “इन खबरों के प्रकाशन से पहले, आंतरिक संपादकीय प्रक्रियाओं के जो मानक ‘द वायर’ ने अपने लिए निर्धारित किये हैं और जिनकी हमारे पाठक अपेक्षा रखते हैं, उनका पालन नहीं हुआ।” वरदराजन ने खेद प्रकट करते हुए कहा कि, “संपादकीय टीम चूक के लिए नैतिक जिम्मेदारी लेती है और यह सुनिश्चित करने का वचन देती है कि भविष्य में प्रकाशन से पहले स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा सभी तकनीकी साक्ष्य सत्यापित किए जाएंगे।”

सेक्युलर-लिबरल खेमे में मची खलबली

जैसा कि आशा थी, हमारे सेक्युलर-लिबरल खेमे में इस समाचार के बाद से खलबली मच गयी है। वैसे यह मामला धोखाधड़ी, फर्जी साक्ष्य बनाने, और मानहानि का है, और इसमें विधिक कार्यवाही होना एक सामान्य सी बात है। लेकिन सेक्युलर लिबरल धड़े ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पत्रकारिता पर आक्रमण बता दिया है, और यह लोग तो जनता से सरकार के विरुद्ध खड़े होने का आह्वान भी कर रहे हैं।

यहाँ आप सिद्धार्थ के भाई टुंकु वरदराजन का ट्वीट देख सकते हैं, वह कैसे अपना दुःख व्यक्त कर रहा है, वहीं लोगों से इस घटना का विरोध करने का आह्वान भी कर रहा है।

वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने इस घटना के लिए केंद्र सरकार को ही कोसा है। उन्होंने कहा कि इस तरह की कार्यवाही द्वेषपूर्ण है, और इससे विदेशों में भारत की छवि को हानि पहुंचेगी।

वहीं ‘द हिन्दू’ समाचार पत्र के प्रमुख एन राम ने तो इस मामले में ‘द वायर’ को ही पीड़ित बता दिया है। उन्होंने कहा कि द वायर के प्रति एक षड्यंत्र रचा गया और उनके साथ ही यह धोखाधड़ी की गयी। अब सरकार इस प्रकार की विधिक कार्यवाही कर के पीड़ित को ही परेशान कर रही है।

मुंबई प्रेस क्लब, एडिटर्स गिल्ड और प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया ‘द वायर’ के समर्थन में खड़े हुए

भारत में मीडिया के कई संगठन हैं, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर मीडिया के कुकर्मों का समर्थन करते हैं। ऐसे ही संगठन हैं ‘मुंबई प्रेस क्लब’, ‘एडिटर्स गिल्ड’ और ‘प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया’ जो समय समय पर अपने वक्तव्यों द्वारा यह बता देते हैं कि मीडिया सर्वोपरि है, और उन पर कानूनी कार्यवाही होना गलत है।

इस मामले में भी इन सगठनों ने ‘द वायर’ पर की गयी कार्यवाही को अतिश्योक्ति बताया है, प्रेस की स्वतंत्रता पर कुठाराघात बताया है। मुंबई प्रेस क्लब ने तो इस कार्यवाही को समाचार पात्र के प्रबंधन और सम्पादकों का शोषण ही बता दिया है।

वहीं अपने दोमुहे आचरण के लिए कुख्यात एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने तो पुलिस पर ही दोषारोपण कर दिया है। उन्होंने दिल्ली पुलिस को विधिक प्रक्रिया का पालन करने और पत्रकारिता की शुचिता को बनाये रखने का निर्देश दिया है। हालांकि यह संस्था पत्रकारों पर हो रहे अत्याचारों पर हमेशा चुप रहती है, अगर पत्रकार इनकी मानसिकता और एजेंडा से विपरीत हो।

यह सेक्युलर लिबरल और मीडिया समूह अपने दोहरे मापदंडों के कुख्यात है, आज यह लोग द वायर और वरदराजन के साथ सहानुभूति रख रहे हैं, लेकिन यही लोग तब चुप थे जब अन्य पत्रकार अर्नब गोस्वामी और अमन चोपड़ा के प्रति राज्य सरकारों ने खुल कर द्वेषपूर्ण कार्यवाही की थी। तब इन लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में नहीं पड़ी थी? तब इन्होने पीड़ित पक्ष के साथ किसी भी प्रकार की सहानुभूति प्रकट नहीं की, क्यों?

क्या मीडिया को किसी प्रकार का विशेषाधिकार प्राप्त है?

यहाँ कुछ महत्वपपूर्ण प्रश्न उठते हैं, भारत के लोकतंत्र के चार स्तम्भ हैं, लेकिन उनमे से मीडिया ही ऐसा है जिसे अनावश्यक विशेषाधिकार मिला हुआ है। और वह भी एजेंडा चलाने वाले पोर्टल्स को क्यों इतने विशेषाधिकार मिले हुए हैं? एनडीटीवी गलत समाचार छापता है, सरकार उस पर कुछ घंटो का प्रतिबन्ध लगाती है, तो दुनिया भर में हल्ला मच जाता है। एक कथित फैक्ट चेकर लोगों को भड़काता है, एक धर्म पर आक्रमण करता है, उसे जब गिरफ्तार किया जाता है तब पूरा वामपंथी संचारतंत्र उसके समर्थन में खड़ा हो जाता है।

ऐसा ही कुछ ‘द वायर’ के मामले में होता दिख रहा है, जबकि यह ज्ञात है कि यहाँ इस समाचार समूह ने तथ्यों को तोडा मरोड़ा, फर्जी साक्ष्य बनाये, किसी के प्रति मानहानि का प्रयास किया। और अंततः यह सब स्वीकार भी किया, उसके पश्चात अगर इस समाचार समूह के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही होती है तो इसमें गलत क्या है? क्या समाचार समूह भारतीय कानून व्यवस्था और संविधान से ऊपर हैं? क्या इन्हे कोई विशेषाधिकार प्राप्त है?

इन प्रश्नों के उत्तर नहीं में हैं, तो फिर इतनी चीख चिल्लाहट क्यों?

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