इन दिनों कश्मीर फाइल्स फिल्म एक बार फिर से चर्चा में हैं। पहले तो एक ऐसी फिल्म को फिल्मफेयर अवार्ड्स में नहीं बुलाया जाना ही अपने आप में अत्यंत अपमानित कृत्य है, जिस फिल्म ने इंडस्ट्री का सूखा समाप्त किया था और साथ ही वह ऐसी ब्लॉकबस्टर साबित हुई थी, जिसकी कल्पना ही किसी ने नहीं की थी। कश्मीर फाइल्स लोग देखने गए तो ऐसा लगा कि किसी ने उनकी आवाज़ सुनी, किसी ने उनके दर्द को आवाज दी। मगर ऐसा हुआ क्या था कि इस फिल्म को देखने के लिए लोग पागल हो गए।
जिसने भी इस फिल्म को देखा वही इस फिल्म को देख कर आंसू नहीं रोक पाए? क्या था विशेष? आज फिर से उन सभी प्रश्नों पर चर्चा की आवश्यकता इसलिए आन पड़ी है क्योंकि रणबीर कपूर के बीफ खाने वाले बयान को लेकर जो राष्ट्रवादी फिल्म का विरोध कर रहे थे, उनके लिए या कहें उनकी काट के लिए कश्मीर फाइल्स के विवेक अग्निहोत्री के पुराने ट्वीट्स के स्क्रीन शॉट वायरल होने लगे और यह कहा जाने लगा कि विवेक अग्निहोत्री भी तो बीफ खाते थे?
हालांकि इस पर विवेक अग्निहोत्री अपना रुख स्पष्ट कर चुके हैं:
मगर यह स्क्रीन शॉट कबके थे? क्या यह उस समय के थे जब विवेक अग्निहोत्री कश्मीर फाइल्स बना रहे थे? या फिर विवेक भी उसी जाल में फंसे थे, जिसमें फ़िल्मी दुनिया में आने वाले लोग फंसे ही रहते हैं? आखिर यह ट्वीट्स कब के थे? क्या लोग विवेक के अतीत को नहीं जानते थे? क्या लोग नहीं जानते थे कि विवेक चॉकलेट एवं हेटस्टोरी जैसी फ़िल्में निर्देशित कर चुके थे? लोग जानते थे, मगर लोग जिस विवेक अग्निहोत्री से जुड़े वह, वह विवेक अग्निहोत्री थे, जिन्होनें बुद्धा इन अ ट्रैफिक जाम बनाकर नक्सलियों का विमर्श ही एक दूसरी ओर मोड़ दिया।
अभी तक जिन नक्सलियों का महिमामंडन किया जाता रहा था, विवेक ने उन्हें दरअसल बताया कि वह लोग क्या हैं? और आम लोग कैसे प्रगति कर सकते हैं और हमारे आपके बीच से ही कोई शहरी नक्सली हमारा विमर्श मार सकता है!
अनुपम खेर ने उस फिल्म में जान डाल दी थी और एक ऐसे प्रोफ़ेसर की भूमिका को जीवंत कर दिया था जिसने अपना काइयांपन अपनी उस मीठी आवाज में दबा लिया था, जिसमें आज तक वामपंथी प्रोफ़ेसर दबाते आए थे। अर्बन नक्सल्स में विवेक अग्निहोत्री ने लिखा है कि कैसे इस फिल्म को रिलीज नहीं होने दिया गया और कैसे डब्बे में चली गयी थी, क्योंकि यह विमर्श के स्तर पर वह विमर्श प्रस्तुत करती थी, जो आज से पहले दिखाया ही नहीं गया था। इस फिल्म को पांच साल तक बंद रहना पड़ा था! क्यों? कभी सोचा है?
इसीलिए क्योंकि हमें यह पता ही नहीं है कि विमर्श क्या होता है? नैरेटिव क्या होता है?
उस फिल्म के कारण भी विवेक अग्निहोत्री एवं पल्लवी जोशी के साथ अलग व्यवहार किया गया था। मगर कश्मीर फाइल्स ने फिल्म उद्योग के उस झूठ को ही उधेड़ कर रख दिया, जो वह अभी तक परोसता आया था। कश्मीर पर बनी फ़िल्में कभी याद करने का प्रयास कीजिये, आपके मस्तिष्क में क्या छवि उभरती है? इसे भी स्मरण करना होगा कि फ़िल्में सॉफ्ट पावर होती हैं। यह डिजिटल डॉक्यूमेंटेशन होती हैं, आज तक डिजिटली क्या डॉक्यूमेंटेड होता रहा था कश्मीर के विषय में?
मिशन कश्मीर, फिज़ा, फ़िदा, आदि यहाँ तक कि दिलजले में तो हिन्दू आतंकवादी दिखा दिया था! यह विमर्श था, इसमें कश्मीरी पंडित कहाँ थे? कहाँ था कश्मीर का विमर्श? कहाँ थे वह खलनायक जो जिहाद कर रहे थे? कहाँ थे वह सिस्टम में बैठे जिहादी, जो हिन्दुओं को बहुत ही सुनियोजित तरीके से मार रहे थे? लोग मर थे थे, परन्तु न ही वह कविताओं में थे, गिरिजा टिक्कू को जिंदा मारा जाता है, जिसे सुनकर आज तक आत्मा कांप जाती है, परन्तु गिरिजा टिक्कू पर किसने कविताएँ लिखी थीं? क्या किसी प्रगतिशील लेखक या बॉलीवुड लेखक ने गिरिजा टिक्कू पर फिल्म बनाई?
खून से सने चावल खिलाना? यह क्रूरता की पराकाष्ठा थी, यही तो जीनोसाइड था, जो चुन चुन कर कश्मीरी पंडितों के साथ हो रहा था, जो उनके बहाने पूरे देश के हिन्दुओं के साथ किए जाने की योजना बनाई जा रही थी, परन्तु वह विमर्श में नहीं था! कश्मीर तो विमर्श में था, परन्तु वह कश्मीर जिसमें कश्मीरियत थी, जिसमें यह था कि मुस्लिम कश्मीर पर “हिन्दू भारत की हिन्दू सेना” अत्याचार कर रही है, और वहां के लोग विवश होकर ही बन्दूक उठा रहे हैं! फिर कश्मीरी पंडित कहाँ गए? कहाँ गए मंदिर? और हैदर फिल्म में तो हिन्दुओं की आस्था के केंद्र को शैतान का घर दिखा दिया था!
सब कुछ हमारी ही आँखों के सामने हो रहा था, हम विरोध कर रहे थे, और यह कह रहे थे कि यूएन क्यों बात नहीं सुनता? क्यों नहीं देखता, परन्तु उसके लिए भी क्या हमारा विमर्श तैयार था? जहां एक ओर यह दिखाने के लिए कि भारत में मुस्लिमों के साथ कश्मीर से लेकर गुजरात तक “संहार” हो रहा है, पूरी की पूरी लेखकों, चित्रकारों आदि की फ़ौज थी, तो वहीं हिन्दुओं के साथ जो जिहाद छिड़ा है, वह दिखाने के लिए क्या माध्यम था?
कल्पना करके देखिये? सोचिये! कैसे हाल में थे! फिर जैसी तैसी ही सही, एक फिल्म आती है कश्मीर फाइल्स! और वह बताती है कि सुनियोजित जिहाद क्या होता है? जीनोसाइड क्या होता है और कैसे यह कश्मीरी पंडितों का हुआ, वह फिल्म एक पूरे नैरेटिव को पलट कर रख देती है और पूरे विश्व को फिल्म के माध्यम से दिखाती है कि देखो, यह हुआ था!
देखो, कश्मीर में वह विमर्श ही विमर्श नहीं है, जो आप इतने वर्षों से देख रहे थे, और यूएन में चर्चा कर रहे थे, अपनी अपनी संसदों में चर्चा कर रहे थे, सच्चाई यह है!
यूके की संसद में पहली बार कश्मीरी हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों और जीनोसाइड को मान्यता देने पर चर्चा हुई
बाहर की बात क्या की जाए, अभी तक भारत में ही लोग एकमत नहीं हैं कि कश्मीरी हिन्दुओं का जीनोसाइड हुआ था क्योंकि उन्होंने कई कॉपी पेस्ट इतिहासकारों की किताबों पर विश्वास करके ऐसा धुंआ बना दिया है जिसमें जगमोहन को खलनायक बना दिया है। और ऐसा करने में हिन्दू ही आगे रहे हैं। कभी कश्मीरी हिन्दुओं पर वह दोष डाल देते हैं तो कभी कुछ!
मगर इस फिल्म के आने के बाद, क्योंकि यह डिजिटली डॉक्यूमेंटेड है, विदेशों में बातें आरम्भ हुईं। यूके की संसद में 18 मार्च 2022 को बिल प्रस्तुत किया गया और जिसका नाम था, “The Kashmir Files and recognition of genocide of Hindu Kashmiris and Indian legislation on genocide and atrocities prevention of genocide of Hindu Kashmiri Pandits in Jammu and Kashmir”
इसमें क्या लिखा है उसे गौर से पढ़ा जाना चाहिए कि
“यह सदन कश्मीरी हिन्दुओं की दुखद एवं रोंगटे खड़े करने देने वाली कहानी की पुष्टि करता है, जिसे पहली बार कश्मीर फाइल्स फिल्म के माध्यम से एक सेल्युलोइड सिनेमा स्क्रीन पर दिखाया गया था। हम फिल्म निर्माता विवेक अग्निहोत्री एवं पल्लवी जोशी को बधाई देते हैं और 700 कश्मीरी हिन्दू परिवारों का साक्षात्कार लेने का भी आभार, जिनमें से कई लोग यूके में भी रह रहे हैं, कि उन्होंने उनके अनुभवो और पीडाओं को बड़े परदे पर प्रस्तुत किया।” इसमें यह भी लिखा है कि सदन उन कश्मीरी हिन्दू परिवारों के साहस को सलाम करता है जिन्होंने इतने अत्याचार सहे परन्तु हथियार न उठाकर शिक्षा का मर्ग चुना!
अमेरिका में भी एक स्टेट ने आधिकारिक रूप से इस फिल्म के बाद कश्मीरी हिन्दुओं के जीनोसाइड को मान्यता दी गयी। 14 मार्च 2022 को विवेक अग्निहोत्री ने अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर एक तस्वीर साझा करते हुए लिखा था कि 32 वर्षों में पहली बार दुनिया में किसी स्टेट ने कश्मीर के जीनोसाइड को मान्यता दी और वह भी rhode island – अमेरिका ने, और वह भी एक छोटी सी फिल्म द्वारा!”
पूरे विश्व को पता है कि गुजरात में मुस्लिम मारे गए, परन्तु उन दंगों में हिन्दू भी मारे गए थे और गोधरा में जलकर भी हिन्दू मरे थे, उनका विमर्श कहाँ है? अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बार बार यह कहा जा रहा है कि भारत में मुस्लिमों का जीनोसाइड हो रहा है, परन्तु हिन्दू? पाकिस्तान और बांग्लादेश से गायब हो रहे हैं, उनकी बेटियों की रक्षा की कोई गारंटी नहीं है, उनका विमर्श? कहाँ है उनके जीनोसाइड का विमर्श?
विवेक अग्निहोत्री की अपनी रचनात्मक एवं बौद्धिक सीमाएं हो सकती हैं और हर किसी की होती हैं, परन्तु उन्होंने जिस तरीके से इस कहानी को गुंथा और जिस प्रकार से उन्होंने एक नया विमर्श दिया कि देखो, यह होता था, यह हुआ था, और जिस प्रकार से दुनिया को कागजों से अलग दृश्य रूप में उस जीनोसाइड का रूप दिखा, जिसे वह नकारते हुए आ रहे थे, उसने उन बॉलीवुड के कलाकारों को भी कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया, जो अब तक “भारत में मुस्लिमों का जीनोसाइड” हो रहा है, का राग अलापते हुए विमर्श रच रहे थे!
इसलिए बौखला रहे हैं क्योंकि उनकी कलई उतर चुकी है, उनका असली रूप केवल छोटे बजट की फिल्म ने सामने ला दिया है, इसलिए अब उनका पीआर गैंग विवेक अग्निहोत्री को निशाना बना रहा है क्योंकि उन्होंने ही बड़े स्टार किड्स का खेल बिगाड़ दिया है। विवेक अग्निहोत्री ने भी निशाना साधते हुए लिखा कि कॉफ़ी क्लब के लोगों को अपनी फिल्म पर ध्यान देना चाहिए, न कि मुझसे झगड़ा करने पर!
परन्तु वह झगड़ा कर रहे हैं, वह विवेक अग्निहोत्री के विरुद्ध नहीं हैं, बल्कि वह उस विमर्श के खिलाफ खुलकर खड़े हो गए हैं, जो हिन्दुओं की पीड़ा का विमर्श है, जो हिन्दू जीनोसाइड का विमर्श है!