हिंदुओं पर किस तरह जिहादी लोगों द्वारा अत्याचार किए जा रहे इसके कई उदाहरण हम देख चुके हैं ,जैसे लव जिहाद, हिंदू धर्मस्थलों पर विध्वंस करना, उनको नष्ट कर के दूषित करना, हिंदू धार्मिक रैलियों पर पथराव करना आदि, परन्तु यह सब सामूहिक या कहे समूह पर होते थे, परन्तु अभी जो मामला पिछले दिनों सामने आया है, वह दिल दहला देने वाला इसलिए है क्योंकि इसमें अजीब तरीके से ही बच्चे को ही शिकार बनाया है! यह समाचार मध्यप्रदेश जबलपुर जिले से है।
क्या है पूरा मामला ?
मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले से एक ६ वर्षीय हिंदू लड़के का उसके मुस्लिम पड़ोसी द्वारा जबरन खतना कर दिया गया था । पीड़ित के माता पिता ने उसके पड़ोसी मंसूर खान के खिलाफ थाने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी ,जिसने उनके छोटे लड़के का जबरन खतना किया था, ताकि उसे इस्लाम में परिवर्तित किया जा सके।
कैसे हुआ यह सब ?
घटना 22 मार्च की है उस दिन पीड़ित लड़के का पिता पापुन सुबह करीब 10:00 बजे अपने घर के पास काम के लिए निकल गए थे।
उसकी पत्नी बंगले जाने की तैयारी कर रही थी क्योंकि वह वहां पर काम करती है, जब लड़के का पिता घर आया तो उसने पाया कि उसका बेटा लापता है, वह उसकी तलाश करने लगा ।
पिता ने देखा कि बच्चा घर के पीछे छुपा हुआ है बच्चा काफी डरा हुआ नजर आ रहा था। पिता के बार-बार अनुरोध करने के बावजूद वह कुछ भी बोलने से डर रहा था। और उसके बाद बार बार कहे जाने पर उसने अपने पिता को अपना गुप्तांग दिखाया और फिर परिवार में सभी को पता चला कि उसे उसके दोस्त फैजू ने ब्लेड से मारा है।
पिता पापुन उसे पुलिस स्टेशन और फिर वहां से अस्पताल लेकर गया, और फैजू के खिलाफ बाद में एफआईआर दर्ज कराई!
कौन है मंसूर अली खान ?
स्वराज्य की रिपोर्ट के अनुसार मंसूर खान पापुन के पड़ोस में रहता है और उस पर आरोप है कि उसी ने पापुन उनके बेटे का खतना जबरदस्ती करवाया था।
यह सूचना मिलने पर पापुन तुरंत मंसूर खान के पास गया और उसके द्वारा अपने बेटे को इस्लाम में परिवर्तित करने के लिए फटकार लगाई ।
मंसूर खान ने अपशब्दों का प्रयोग किया ,उसे जातिसूचक गालियां देनी शुरू कर दी, मंसूर खान ने पापुन को धमकाया कि उसके बेटे खतना कर दिया गया है और पापुन जो चाहे वह कर सकता है।
पीड़ित पिता जल्दी थाने पहुंचाया वहां पर अधिकारियों को इसके बारे में सूचित किया तो पुलिस ने केवल मंसूर खान के बेटे को आरोपी के रूप में नामित किया है ।
लेकिन पीड़ित पिता के बार-बार विनती करने के बावजूद भी पुलिस ने मंसूर खान को हिरासत में नहीं लिया। पीड़ित की मां दीपा ने बताया कि किस तरह उनके पति द्वारा मंसूर खान के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत करने के बाद कंपनी ने उन्हें काम से निकाल दिया और उन्हें नौकर क्वार्टर खाली करने के लिए कहा गया है।
दीपा ने कहा कि प्रबंधक की पत्नी ने मुझे बताया कि वह नहीं चाहती कि पुलिस उसके घर आए उन्हें सर्वेंट क्वार्टर खाली करने का नोटिस दिया गया है।
स्वराज मीडिया के अनुसार पीड़ित लड़की के पिता पापुन मजदूरी करते हैं और आवश्यकता के अनुसार नौकरी करते हैं कभी उस चित्रकार के रूप में काम करते हैं, तो कभी निर्माण मजदूर के रुप में ,कई बार वह हाउसहेल्प का काम भी करते है।
दीपा ने बताया कि फिलहाल पापुन बेरोजगार है ,इसके अलावा घटना के कारण पीड़ित लड़के को अपना स्कूल बदलना पड़ा। दीपा ने शोक व्यक्त किया और कहा कि हालांकि वे गरीब है पर वे चुपचाप अपने बच्चे के अपमान और अन्याय को सहन नहीं करेंगे ।
दीपा ने बताया कि हम हिंदू मुसलमान के बारे में कुछ नहीं जानते थे। हमने कभी उसके साथ अलग व्यवहार नहीं किया मैं मंसूर के लड़के को अपना बच्चा मानती थी ।
लेकिन देखो उन्होंने हमारे बेटे के साथ किस तरह का धोखा किया, हम हिंदू हैं और मरते दम तक हिंदू ही रहेंगे। किसी को भी हम पर अपना धर्म थोपने का अधिकार नहीं है।
दीपा ने बताया कि मंसूर खान की पत्नी ने उससे कहा था कि वह भी शादी से पहले हिंदू थी और उससे शादी करने बाद उसने इस्लाम धर्म अपना लिया।
मंसूर एक बहुत ही मजहबी आदमी है और उसने कभी भी अपनी बीवी को अपने पुराने धर्म का पालन करने की अनुमति नहीं दी थी, उसकी बीवी ने दीपा को बताया कि एक बार उसकी मां ने हिंदू देवता कुछ तस्वीरें दी थी, लेकिन मंसूर ने उसे घर के बाहर फेंक दिया।
दीपा ने बताया कि मंसूर की पत्नी का उससे तलाक होने वाला है ।स्वराज पत्रकार के अनुसार दीपा ने कहा कि उनके पति ने मुख्यमंत्री हेल्पलाइन पर फोन किया था। फोन करने के बाद टाउन इंस्पेक्टर ने उन्हें थाने बुलाया और कहा अब आप जब आपने सीएम तक पहुंचने की कोशिश की है तो वहीं से इंसाफ लीजिए।
देखना होगा कि इस मामले में क्या कदम उठाए जाते हैं, क्योंकि यह ऐसा मामला है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है!
और सबसे हैरान करने वाली बात यह भी है कि जब पीड़ित बार-बार जातिसूचक अपमान की बात कर रहा है, तो ऐसे में प्रश्न यही उठता है कि तमाम जातिगत संगठन कहाँ चले जाते हैं?