अमेरिका में मुस्लिम राजनीति का नया दौर शुरू हुआ है, यह मुस्लिम राजनीति का नया दौर जोहरान ममदानी के नाम से शुरू हुआ है। जोहरान ममदानी ने अमेरिका के न्यूयार्क शहर का मेयर चुनाव जीत कर तहलका मचा दिया है। ऐसे देखा जाये तो मेयर का चुनाव जीतना कोई बड़ी राजनीतिक घटना नहीं है, क्योंकि अमेरिका की केन्द्रीकृत राजनीति में मेयर का पद प्रभुत्व वाला स्थान ही नहीं है। पर जोहरान ममदानी की जीत से अमेरिका की राजनीति जरूर प्रभावित हुई है, क्योंकि जोहरान ममदानी डेमोक्रेट पार्टी के उम्मीदवार थे। डेमोक्रेट पार्टी को पिछले राष्ट्रपति चुनावों में हार का सामना करना पड था।राष्ट्रपति चुनावों में हार का सामना करने के बाद डेमोक्रेट पार्टी हताशा और निराशा के चपेट में आ गयी थी। डोनाल्ड ट्रम्प के आक्रमक और अस्थिर रणनीतियों के सामने भी डेमोक्रेट पाटी एक तरह से असमर्थ साबित हो रही थी। अब डेमोक्रेटिक पार्टी जोहरान ममदानी की जीत से अपने आप को मजबूत मान रही है और डोनाल्ड ट्रम्प की राजनीतिक शक्तियों के हªास के तौर पर देख रही है। क्या सही में जोहरान ममदानी डेमोक्रेट पार्टी की खोयी हुई प्रतिष्ठा और जनाधार को स्थापित कर पायेंगे और डोनाल्ड ट्रम्प की अराजक-अस्थिर नीतियों के खिलाफ कोई बडा जनमत पैदा कर सकते हैं? वास्तव में अमेरिका की राजनीति अब त्रिकोणीय कसौटी पर खडी हो गयी है। एक कोण ईसाईयों का बन गया है, दूसरा कोण यहूदियों का बन गया है और तीसरा कोण मुस्लिमों का बन गया है। अब तक प्रचारित यह किया जाता रहा है कि अमेरिका की राजनीति को यहूदियों द्वारा नियंत्रित और गतिशील किया जाता है, यही कारण है कि अमेरिका की नीतियां इस्राइल और यहूदियों के पक्ष मे होती है, संरक्षक बन जाती है। एक गौर करने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि ममदानी की जीत पर अरब मुस्लिम दुनिया, आतंक की दुनिया बहुत ही खुश हैं, जमकर खुशियां भी मनायी है और अमेरिका में मुस्लिम राजनीति की महान जीत बतायी है। जोहरान ममदानी की जीत पर मुस्लिम दुनिया और आतंक की दुनिया जितना उछलेगी-कूदेगी उतना ही मुस्लिम और अन्य प्रवासियों की अमेरिका के अंदर संकट बढेगा।
जोहरान ममदानी की मेयर पद पर जीत ही क्यों मिली? इसके पीछे गणित क्या है? मुस्लिम आतंकी दुनिया इस जीत को अपनी जीत क्यों बता रही है? अरब का मीडिया इस जीत को लेकर पागल क्यों है? क्या सही में जायनिस्टों की यह हार है, अमेरिका के अंदर ईसाइयों की शक्ति और प्रभुत्व की उल्टी गिनती है? क्या इससे डोनाल्ड ट्रम्प की अराजक और अस्थिर नीतियों पर अंकुश लग जायेगा? क्या मुस्लिम और ईसाइयों की जंग शुरू होगी? ऐसे ढेर सारे प्रश्न हैं जिन पर विचार करने की जरूरत है। जोहरान ममदानी की पहचान क्या है? उसकी अमेरिकी राजनीति में पैठ क्यों और कैसे बनी है? वास्तव में जोहरान ममदानी प्रवासी है और अफ्रीकी देश से संबंध रखता है। उसकी माता भारतीय जरूर है। अमेरिका अपने यहां प्रवासियों को कभी आमंत्रित करता था और अपने देश में प्रोत्साहन देकर भस्मासुर बनने के लिए प्रेरित भी करता था। इसी रणनीति के तहत ममदानी का परिवार भी अमेरिका में स्थापित हुआ था। जोहरान ममदाई हिन्दू मां और मुस्लिम पिता का संतान है फिर भी वह अपने आप को मुस्लिम घोषित कर लिया। उसे अपनी मुस्लिम पहचान पर गर्व है। वह खुद कहता है कि मुस्लिम होना बहुत ही कठिन काम है और शर्म और अपमान के दौर से गुजरना पडता है। लेकिन उसने यह नहीं बताया कि हर मुसलमान को शर्म और अपमान के दौर से क्यों और कैसे गुजरना पडता है? उसकी यह अवधारणा अमेरिका की राजनीति को प्रभावित करता है और लांक्षित करता है, इसकी अमेरिकी राजनीति में भी जमकर व्याख्या हुई है और प्रवासी अधिकारों को लेकर कुछ नकरात्मक अवधारणाएं भी बनी हुई हैं? अगर अमेरिका के अंदर मुसलमानों को लेकर अपमान और शर्मसार करने की भावना होती तो निश्चित मानिये कि जोहरान ममदानी एक अफ्रीकी मूल के प्रवासी होने के बाद भी उसे अमेरिकी नागरिकता मिलती क्या ? अमेरिका के अंदर फलने-फूलने का अवसर मिलता? अमेरिका की राजनीति में उसे विजयी होने के अवसर मिलता? कदापि नहीं। डोनाल्ड ट्रम्प के अस्थिर विचारों से पहले तक मुसलमानों की अमेरिका के अंदर पौबारह थी और मुस्लिम आबादी यहूदियों को टक्क्र देती थी। आपने बराक ओबामा का नाम सुना होगा। बराक ओबामा भी अफ्रीकी मूल के प्रवासी थे, उन्हें अमेरिका के अंदर बढने और स्थापित होने का अवसर मिला था। राष्ट्रपति भी बराक ओबामा चुने गये थे। आठ साल तक बराक ओबामा ने अमेरिका पर राज किया। पर बराक ओबामा ने अपनी मुस्लिम पहचान पर शर्मसार होने या फिर अपमान सहने की बात कभी भी नहीं की थी। इसी कसौटी पर ममदानी की मुस्लिम पहचान और उसकी शर्मसार और अपमान की अवधारणा की चर्चा और व्याख्या हो रही है।
ममदानी की दो दृष्टिकोण बहुत ही खतरनाक है जिसकी कीमत अमेरिका चुका सकता है और भयानक संकट में फंस सकता है? अब यह प्रश्न उठता है कि उसका वह दो दृष्टिकोण है क्या? उसका पहला दृष्टिकोण आतंकी दुनिया के प्रति उदासीनता और उसका अप्रत्यक्ष समर्थन करना, हमास और हिजबुल्लाह जैसे आतंकवादी संगठनों के लिए हमदर्दी रखना। उसका दूसरा दृष्टिकोण यहूदियों के प्रति घृणा प्रकट करना। ममदानी की जीत को मुस्लिम जीत के रूप में देखा गया है और जायनिस्टों की हार के रूप में देखा गया है। खासकर मुस्लिम आतंकवादी संगठनों की खुशी संज्ञान लेने जैसी है। दुनिया के सभी मुस्लिम आतंकी संगठनों ने खुशी मनायी है। अलकायदा, बोकोहरम जैसे मुस्लिम आतंकवादी संगठनों ने कहा है कि दुनिया मुस्लिम शक्ति और इस्लाम के इकबाल को समझे और स्वीकार कर ले नही ंतो हम जोहरान ममदानी के रूप में विजैता पैदा कर इस्लाम का झंठा बुलंद करते रहेंगे। हमास और हिजबुल्लाह ने खासतौर पर खुशियां मनायी है और सोशल मीडिया पर इस जीत को यहूदियों की हार और इस्राइल के पतन के तौर देखा है, इनकी बयानबाजी है कि अमेरिका को खुद आतंरिक तौर पर इस्राइल विरोध का सामना करना पडेगा और इस्राइल की सहायता करने के पहले सौ बार सोचना पडेगा, इस्राइल की सहायता करने वाला अमेरिकी शासक को मुस्लिम राजनीति पराजित कर देगी। जबकि अरब मीडिया ने भी अमेरिका के अंदर मुस्लिम राजनीति की विजयी छवि से बहुत ही खुश है, सभी अरबी मीडिया ने अपनी टिप्पणियों में कहा है कि अब डोनाल्ड ट्रम्प को मुस्लिम शक्ति के सामने झुकना ही होगा और इस्राइल समर्थक नीतियों को छोडना ही होगा। जानना यह भी जरूरी है कि खुद जोहरान ममदाई फिलिस्तीन का समर्थक है और इस्राइल का विरोधी है। वह अमेरिका की मुस्लिम नीति का आलोचक तो जरूर है पर मुस्लिम देशों में अल्पसंख्यकों के संहार पर कोई चुप्पी नहीं तोडता है, कोई अवधारणा नहीं रखता है। मुस्लिम देशों में इस्लामिक शासन होता है जहां पर इस्लामिक अवधारणा को मानना अल्पसंख्यकों के लिए अनिवार्य होता है। इस्लाम के विस्तार के दौरान फिलिस्तीन में यहूदियों के नरसंहार पर भी उसकी कोई अवधारणा नहीं है। इस्लाम के उदभव के पूर्व फिलिस्तीन में यहूदियों की समृद्धि थी और उनका आधिपत्य था। इस्लाम ने फिलिस्तीन पर कब्जा कर यहूदियों को खदडने जैसा कार्य किया था। फिलिस्तीन सिर्फ इस्लाम की समृद्धि रही है, यह अवधारणा पूरी तरह से गलत है और प्रत्यारोपित है।
अमेरिका का दक्षिण पंथ गुस्से में है। उनका गुस्सा और घृणा और तेज होने की उम्मीद है। अगर ऐसा हुआ तो फिर मुस्लिम राजनीति को भी लेने की जगह देने पड जायेंगे, खुशी की जगह उन्हें मातम मिलेगी, लाभ की जगह हानि होगी। दखिण पंथ में जागरूकता तो फैली ही है और एकजुटता भी बढ रही है। ईसाइयों का वैसा वर्ग भी अब अपने आप को बदलने के लिए सोच रहा है जो प्रवासी समर्थक थे और गरीबी, बेरोजगारी के आधार पर प्रवासियों को जगह और अवसर देने के पक्षधर हैं। जोहरान ममदानी अपनी मुस्लिम पहचान को लेकर जितना उछलेंगे-कूदंगे उतना ही नुकसान मुस्लिम प्रवासियों के साथ ही साथ अन्य प्रवासियों को भी परेशानी होगी। डोनाल्ड ट्रम्प जैसे दक्षिण पंथी शासक जो अपने अस्थिर और नापसंद नीतियों के लिए कुख्यात हो गये हैं, उन्हें मजबूरी में दक्षिण पंथ समर्थन देने के लिए तैयार रहेगा। जिस ममदानी का समर्थन मुस्लिम और आतंकी दुनिया करेगा उस ममदानी का समर्थन मानवाधिकारी और निष्पक्ष दुनिया क्यों और कैसे करेगा?
— आचार्य श्रीहरि
