मुस्लिम नेता ओवैशी ने बहुत ही कड़ी और विचारणीय बात बोली है जो मुस्लिम राजनीति पर सटीक बैठती है, भारतीय राजनीति का भी यही यथार्थ है। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि ओवैशी ने ऐसी कौन सी बात बोली है जिसकी गूंज बिहार विधान सभा चुनाव के दौरान हुई है और विधाान सभा चुनाव को प्रभावित करने की उम्मीद हो रही है। कांग्रेस और राजद गठबंधन की मुस्लिम राजनीति और दृष्टिकोण को लेकर ओवैशी ने अपना गुस्सा जाहिर किया है। कांगेस और राजद ने मिलकर तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर दिया, प्रगतिशील इंसान पार्टी के मुकेश निसाद को उपमुख्यमंत्री घोषित कर दिया गया। इस पर ओवेशी ने बयान जारी कर कहा कि दो प्रतिशत वोट वाले मुकेश निसाद को उप मुख्यमंत्री घोषित कर दिया गया जबकि 20 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले मुसलमानों में किसी को भी मुख्यमंत्री घोषित नहीं किया गया, जबकि किसी मुस्लिम नेता को उप मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया होता तो पहाड नहीं टूट पडता? इसमें राजद और कांग्रेसी की क्या परेशानी है? मुसलमान सिर्फ दरी बिछाने और माइक लगाने के लिए, भीड जुटाने के लिए वस्तु बन गये हैं, इनकी कोई राजनीतिक जरूरत इन्हें नहीं होती है, उपयोग करो और इन्हें उठा कर फेक दो, वास्तव में मुसलमान कांग्रेस और अन्य दलों के लिए निरोध ही बन गये हैं। ओवेशी के इस बयान और विरोध पर कांग्रेस और राजद के अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है और इस पर दोनों दलों ने जवाब देना उचित नहीं समझा है। पर भाजपा और जद यू की बाहंे खिल गयी है, उन्हें लगता है कि ओवैशी के इस विरोध का फायदा उन्हें मिल सकता है, मुस्लिम बहूल सीटों पर राजद और कांग्रेस की परेशानी हो सकती है, मुस्लिम इस उपेक्षा के खिलाफ वोट कर सकते हैं और राजद -कांग्रेस को आईना दिखा सकते हैं? ओवैशी एक फिर बिहार विधान सभा चुनावों में आश्चर्यचकित करने वाली सफलताएं हासिल कर सकते हैं।
प्रगतिशील इंसान पार्टी के मुकेश निसाद को उप मुख्यमंत्री का उम्मीदवार क्यों घोषित कर दिया गया और किसी मुस्लिम को उप मुख्यमंत्री का उम्मीदवार क्यो नहीं घोषित किया गया? इस पर विहार ही नहीं बल्कि पूरे देश मे चर्चा हो रही है। खासकर मुस्लिम संगठनों में रोष है और व्यापक चर्चा हो रही है। जहा तक मुकश निसाद को उप मुख्यमंत्री घोषित करने की बात है तो यह आश्चर्य चकित भी है और समझ से परे भी है। क्योकि मुकेश निसाद का बिहार में न तो कोई बडा जनाधार है और न ही वह संघर्षशील है, उसकी बिहार की राजनीति की समझ भी बहुत ज्यादा और सटीक नहीं है। लालू यादव के यादववाद की तरह वह सिर्फ निसादवाद की राजनीति की बात करता है जबकि बिहार में निसाद की जनसंख्या यादव और मुस्लिम जैसा है नहीं। दो प्रतिशत के आसपास इनकी जनसंख्या है। सबसे बडी बात यह है कि मुकेश निसाद खुद पिछला विधान सभा चुनाव हार गये, वे नीतीश कुमार की मेहरबानी पर मंत्री बने थे फिर इन्होंने मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब देखा था और बेऔकात की राजनीति शुरू कर दी थी, जद यू और भाजपा को ही आंख दिखाना शुरू कर कर दिया था। दुष्परिणाम यह हुआ कि मंत्री पद से हटाये गये और इनके विधायक जद यू-भाजपा में शामिल हो गये। मंत्री पद जाते ही ये भाग कर मुबंई चले गये और राजनीतिक तौर पर खामोश हो गये। फिर इस चुनाव में वे मुंबई से लौट कर पैंतरेबाजी दिखा रहे हैं। मुकेश निसाद को लेकर ओवैशी का आक्रोश के कारण के पीछे यही अवधारणा है।
यादव या निसाद अपने बल पर चुनाव जीतने और नीतीश कुमार-भाजपा का सामना अरने और अपनी सरकार बनाने में अक्षम हैं, इनका जातिवाद निरर्थक है। इन्हें अपनी सरकार बनाने और नीतीश कुमार-भाजपा की सरकार बनाने से रोकने के लिए अनिवार्य तौर पर मुसलमानों का सहारा चाहिए और मुसलमानों की वैशाखी चाहिए। मुस्लिम समर्थन से ही लालू प्रसाद यादव अपनी सरकार बनाते थे। राजद की आज जो शक्ति है, हनक है वह भी मुसलमानों के समर्थन के कारण है। अगर मुसलमान राजद और कांग्रेस का समर्थन देना बंद करे तो फिर इनका राजनीति ही जमींदोज हो जायेगी, ये भी सिर्फ वोट कटवा राजनीतिक पार्टी के रूप में कुख्यात हो जायेंगे। बिहार में मुसलमानों की आबादी 20 प्रतिशत से ज्यादा है। सिर्फ आबादी ही नहीं बल्कि इनके पास राजनीतिक हवा भी बनाने की शक्ति है, वोट को मतदान केन्द्रों तक पहुंचाने की भी इनकी शक्ति बहुत त्रीव है। 95 प्रतिशत मुसलमान वोट डालना नहीं भूलते हैं। सबसे बडी बात यह है कि कई ऐसे विधान सभा क्षेत्र है जहां पर निर्णायक वोट मुसलमानों का है। पिछले विधान सभा चुनावों में ओवैशी ने अपनी शक्ति दिखायी थी और राजनीतिक विश्लेषकों को आश्चर्य चकित कर दिया था। तब ओवैशी को पांच सीटें मिली थी। ओवौशी को पांच सीटें मिलना बहुत बडी बात थी। जबकि कई सीटो पर ओवैशी की पार्टी को चैंकाने वाले समर्थन मिले थे। ओवैशी की पार्टी को ठीक-ठाक वोट मिलने के कारण ही राजद और कांग्रेस की कई सीटों पर पराजय मिली थी और भाजपा-जद यू की जीत मिली थी। नीतीश कुमार-भाजपा की जीत में ओवैशी फैक्टर ज्यादा काम किया था।
समाजवादी चिंतक और मुस्लिम राजनीति के विशेषज्ञ रिजवान रजा कहते हैं कि भाजपा और नरेन्द्र मोदी को रोकने की जिम्मेदारी सिर्फ मुसलमानों के उपर ही क्यों होनी चाहिए? भाजपा और नरेन्द्र मोदी को रोकने की जिम्मेदारी सभी धर्मनिरपेक्ष दलो और धर्मो की होनी चाहिए। जहां तक मुस्लिम और यादव गठजोड यानी माई समीकरण की बात है तो इसमें झूठ, फेरब और पैंतरेबाजी के अलावा कुछ भी नहीं है। माई समीकरण का सबसे बडा नुकसान मुसलमानों का हुआ है और मुसलमानो की राजनीतिक कब्र खोदी गयी है। यादव कभी भी मुसलमानों के पक्ष में ईमानदार नहीं रहे हैं। लोकसभा चुनाव में बिहार-उत्तर प्रदेश के यादव नरेन्द्र मोदी को वोट करते है जबकि राज्य चुनाव में बिहार और उत्तर प्रदेश में यादव जाति लालू और मुलायक के खानदान को वोट देते हैं। इसलिए बिहार में लालू के परिवार को मुसलमान का हितैषी मान लेना बहुत ज्यादा सटीक नहीं है। ओवैशी के कारण भाजपा लाभार्थी रहती है। लेकिन ओवैशी ने जो मुस्लिम उप मुख्यमंत्री का प्रश्न उठाया है वह सही है। आज मुसलमान इस प्रश्न पर गंभीर है और इसका राजनीतिक विश्लेषण कर रहे हैं। खासकर कांग्रेस को इस पर कदम उठाना चाहिए था। कांग्रेस को अपनी ओर से किसी मुस्लिम नेता को उप मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया जाना चाहिए था। देश की कसौटी पर मुस्लिम कांग्रेस के साथ खडे हैं। लेकिन कांग्रेस अपनी इस गलती को स्वीकार करने के लिए तैयार होगी और बिहार में अब भी किसी मुस्लिम नेता को उपमुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित करेगी?
बिहार में राजद और कांग्रेस ने मुसलमानों को उपयोग खूब किया है, उपयोग कर इन्हें हाशिये पर फेंका है। लालू यादव के पन्द्रह साल की सरकार के दौरान किसी मुस्लिम नेता को उप मुख्यमंत्री का पद नहीं दिया गया था। जबकि लालू को मुस्लिम समर्थक माना जाता है। बिहार में सिर्फ एक बार एक मुस्लिम नेता को मुख्यमंत्री पद मिला था। इन्दिरा गांधी ने अब्दुल गफूर को मुख्यमंत्री बनवायी थी। अब्दुल गफूर का कार्यकाल थोडे समय का था और आपातकाल के दौरान उनकी सरकार थी। अब्दुल गफूर के बाद अन्य किसी मुस्लिम नेता को मुख्यमंत्री या किसी अन्य महत्वपूर्ण पद पर हिस्सेदारी नहीं मिली। कांगेस हो या फिर राजद, ये सभी भाजपा के नाम पर मुस्लिम समर्थन हासिल करते हैं, भाजपा का डर दिखाते हैं। सबसे बडी बात यह है कि राजद अभी भी मुस्लिम राजनीति की छवि बदलने के लिए तैयार नहीं है। अच्छे मुस्लिम को राजनीति में आगे बढाने की चिंता किसी में नहीं है। बिहार के अंदर एक से बढकर एक मुस्लिम नेता हैं जो उदार होने के साथ ही साथ सदभाव भी उनका सर्वश्रेष्ठ है लेकिन उन्हें राजनीतिक पार्टियों से उम्मीदवारी मिलती ही नहीं है। राजद ने अपराधी शहाबुउ्ीन के बेटे ओसामा को टिकट दिया है? ओसामा नाम तो आतंक का प्रतीक बन गया है। ओसमा को राजद के टिकट मिलने से न केवल राष्ट्रवादियों में आक्रोश है बल्कि कम्युनिस्ट राजनीति में भी इसको लेकर चिंता है। जेएनयू छात्र के अध्यक्ष रहे और सीपीआई माले के नेता चन्द्रशेखर की हत्या शहाबुउ्ीन ने करायी थी। ओसामा के कारण राजद ही नहीं बल्कि मुस्लिम राजनीति को प्रभावित होने की उम्मीद है। सीमांत क्षेत्रों में भाजपा को लाभ होने की उम्मीद है। पिछले विधान सभा चुनाव में भाजपा को सीमांत क्षेत्र में आश्चर्चचकित करने वाला जनादेश मिला था।
मुस्लिम नेताओं और मुस्लिम जनता को भी अब समझ मंें आना शुरू हो गया है कि नरेन्द्र मोदी , भाजपा और संघ का डर दिखा कर उनका दोहन किया जा रहा है और उनके राजनीतिक अधिकार पर कुठारा घात किया जा रहा है। अगर यह बात बिहार विधान सभा चुनावों में बैठ गयी तो फिर राजद और कांग्रेस को नुकासन भी हो सकता है और एक बार फिर बिहार की सत्ता इनसे दूर भाग जायेगी?
— आचार्य श्रीहरि
