“रांची में चल रहा है धर्मांतरण का खेल! आदिवासी संगठनों में आक्रोश, रैली का किया आह्वान”, ईटीवी भारत, अक्टूबर 11, 2025
“झारखंड में धर्मांतरण का मामला गहराता जा रहा है. आदिवासी समाज से जुड़े कई संगठन अब इसके विरोध में मुखर होने लगे हैं. आदिवासी संगठनों ने इसके विरोध में 23 नवंबर 2025 को रैली निकालने की घोषणा की है. संगठनों की ओर से कई तरह की दलीलें पेश की जा रहीं हैं. खास बात है कि झारखंड में धर्मांतरण रोकने के लिए तत्कालीन रघुवर सरकार ने झारखंड धर्म स्वातंत्र्य विधेयक, 2017 पारित कराया था. अब सवाल है कि कानून के होने के बावजूद अवैध तरीके से धर्मांतरण कैसे हो सकता है.
कैसे हो रहा है धर्मांतरण?
जनजातीय सुरक्षा मंच की महिला प्रमुख अंजलि लकड़ा और झारखंड आदिवासी सरना विकास समिति के अध्यक्ष मेघा उरांव ने धर्मांतरण के मसले को उठाते हुए कई गंभीर आरोप लगाए हैं. उनका आरोप है कि झारखंड में जोरशोर से गरीबों को बहला फुसलाकर धर्मांतरण कराया जा रहा है. इसके लिए आदिवासी महिलाओं को टारगेट किया जाता है. उनकी बीमारी को ठीक करने के नाम पर बरगलाया जा रहा है. इसी वजह से रांची के नामकुम क्षेत्र के चांद गांव की डेमोग्राफी बदल गई है. कहा जाता है कि धर्मांतरण करने वाले लोग धर्म परिवर्तन नहीं बल्कि मन परिवर्तन करते हैं.
महुआडांड़ में बमुश्किल एक-दो आदिवासी परिवार बचे
अंजलि लकड़ा और मेघा उरांव का कहना है कि आदिवासियों की बीमारी और गरीबी की आड़ में धर्म परिवर्तन कराकर लोग आरक्षण का दोहरा लाभ ले रहे हैं. पहले लोहरदगा, गुमला, सिमडेगा, पलामू, गढ़वा, लातेहार में साल में एक या दो बार एक सभा होती थी. लेकिन अब अलग-अलग इलाकों में सप्ताह में दो-दो बार सभा किया जा रहा है. महुआडांड़ में तो सिर्फ एक-दो आदिवासी परिवार बच गये हैं. ज्यादातर ने धर्म परिवर्तन कर लिया है. इसमें प्रशासन से लेकर राजनीतिक क्षेत्र के लोग शामिल हैं. इसकी वजह से इनका मनोबल बढ़ा हुआ है. धर्मांतरण के सभा के नाम जरिए पांचवी अनुसूची के नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है……..”
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