अरब-मुस्लिम नाटो गठन का सपना अधूरा रह गया। पाकिस्तान, तुर्की और हमास का प्रयास विफल हो गया। कतर खुद पीछे हट गया। इस्लामिक सहयोग संगठन की गोलबंदी भी कोई काम नहीं आयी।
अरब लीग और इस्लामिक सहयोग संगठन क्या सिर्फ हाथी के दांत है, गुब्बारे की हवा हैं, मंच पर सिर्फ बैठ कर शैखी बघारने वाले संगठन हैं, इनमेें शक्ति नहीं हैं, इनमें निर्णय लेने की क्षमता नहीं हैं? क्या ये यूरोपीय देशों की तरह मुस्लिम देशों का अपना कोई सैनिक शक्ति का निर्माण नहीं कर सकते हैं? क्या ये नाटो का विकल्प नहीं बना सकते हैं?
इनके पास संगठन हैं, इनके पास दुनिया की सबसे बडी आबादी यानी मुस्लिमों का समर्थन हैं, ये सिर्फ भीखमंगे नहीं हैं, ये सिर्फ गरीब नहीं हैं, ये सिर्फ अर्थव्यवस्थाहीन नहीं हैं, ये सिर्फ अनिर्यातक नहीं हैं, बल्कि ये अमीर हैं, ये शक्तिशाली भी हैं, ये समर्थ भी हैं, इनके पास धन की कोई कमी नहीं है, इनके पास खनिज संपदाओं की कोई कमी नहीं हैं, ये तेल और गैस के निर्यातक भी हैं, संयुक्त राष्ट्रसंघ की भूमिकाओं के नियंत्रक भी हैं, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि दुनिया के सभी लोकतांत्रिक नियामकों में इनकी संख्या और सक्रियता भी हैं शक्तिशाली हैं। फिर ये मुस्लिम अधिकारों को लेकर एकजुटता दिखाने में कमजोर क्यों और कैसे साबित हो जाते हैं?
इस्राइल के खिलाफ इनकी एकजुटता क्यों नहीं पनप पाती हैं, अमेरिका के खिलाफ इनकी बोलती क्यों बंद रहती हैं, यूरोपीय देशों के खिलाफ भी ये अपनी भूमिका सर्वश्रेष्ठ और निर्णायक क्यों नहीं बना पाते हैं? क्या अरब लीग और इस्लामिक सहयोग संगठन भविष्य मे मुस्लिमों के अधिकार और भलाई के लिए मजबूत होने के लिए तैयार हैं? ख्याल यह रखना चाहिए कि दुनिया उसी की बात सुनती है, उसी के सामने सिर झुकाती है, उसी की अस्मिता और संप्रभुत्ता का सम्मान करती है जिसके पास शक्ति होती है, जिसके पास मजबूत संगठन होते हैं, जिसकी आबादी अपने अधिकारों के प्रति सक्रिय होती हैं और शक्ति का प्रयोग करती है।
अमेरिका इसी कसौटी को आधार बना कर दुनिया पर राज करता है, इस्राइल इसी कसौटी को अधार बना कर गाजा पट्टी में मुस्लिम आबादी का संहार करता है, मुस्लिम आबादी को गाजर मूली की तरह काट रहा है, रूस इसी कसौटी पर यूक्रेन की संप्रभुता को रौंद रहा है।
संदर्भ इस्राइल बनाम अरब लीग और इस्लामिक सहयोग संगठन है। इस्राइल ने छह मुस्लिम देशों पर मिसाइले दांगी थी और लड़ाकू विमानों से हमले किये थे। खासकर कतर पर उसने बम बरसाये थे। इस्राइल का आरोप है कि कतर सहित अन्य मुस्लिम देश हमास के नेताओं का संरक्षन देते हैं, पोषक की भूमिका निभाते हैं और संहारक भी बनाते हैं। जहां तक कतर की इस कसौटी पर संलिप्तता की बात है तो इसमें अनिवार्य तौर पर तथ्य शामिल हैं। कतर सभी मुस्लिम आतंकवादी संगठनों का संरक्षणकर्ता है और पालनहार है। आपको याद होना चाहिए कि हमास ही नहीं बल्कि तालिबान और अलकायदा का भी कतर संरक्षणकर्ता रहा है।
तालिबान के बडे नेता कतर में ही रहते थे और वहीं से अमेरिका के खिलाफ हिंसा की नीति को आगे बढाते थे। अमेरिका और तालिबान की बीच में शांति समझौते को लेकर हुई बातचीत भी कतर में हुई थी। हमास के बड़े नेता कतर में संरक्षण पाये हुए हैं और कतर से ही इस्राइल के खिलाफ अभियान जारी रखें हुए हैं। इस्राइल का एक्शन हमास को समाप्त करने को लेकर जारी है। इस्राइल कहता है कि जब तक हमास का अस्तित्व नहीं मिटता है, उसका संहार नहीं होता है तब तक उनकी मिसाइलें और लडाकू विमानें उडती रहेंगी और हमास का संहार करती रहेंगी। हमारी मिसाइलें वहीं गिरेगी जहां पर हमास के हिंसक आतंकवादी संरक्षण पाये हुए हैं। इसी दृष्टिकोण से इस्राइल ने छह मुस्लिम देशों के स्थित हमास के ठिकानो पर हमला किया था। इसके पूर्व इस्राइल ने ईरान पर हमला कर अपना इरादा मजबूत किया था और ईरान का संहार-विनाश किया था। ईरान तो अब चुप हो गया है और ईरान की हमास के पक्ष में भडकाउ बयानबाजी थम गयी। ईरान को मालूम है कि हमास के पक्ष मे जितना ज्यादा बोलेगा उतना ही उस पर इस्राइल की मिसाइलें गिरेगी।
इस्राइल के हमले के बाद मुस्लिम देश नाटो की तरह एक सुरक्षा कवज बनाना चाहते थे। इसी दृष्टिकोण से जुटे हुए थे। इस्लामिक सहयोग संगठन मुस्लिम देशों की एक साक्षा सुरक्षा कवच बनाने के लिए प्रतिबद्ध था और अपना इरादा भी जाहिर किया था। खासकर पाकिस्तान और तुर्की बहुत ज्यादा उत्साहित थे और उतावले भी थे। पाकिस्तान इस मामले में बहुत ही उतावला था और आगे बढकर हिंसक रूप से समर्थन कर रहा था। पाकिस्तान की जल्दीबाजी इतनी थी कि तुुरत ही नाटो की तरह हमारा रक्षा संगठन खडा होना चाहिए। इस प्रसंग में पाकिस्तान अपना हित देख रहा था और अपने हित की कसौटी पर मुस्लिम देशों को उकसा रहा था। पाकिस्तान भविष्य की दृष्टि से अपने आप को देख रहा था। हाल ही मे पाकिस्तान पर भारत का हमला हुआ था और भारत ने उसकी संप्रभुत्ता को रौंदा था। पाकिस्तान अपने बल पर भारत का सामना नहीं कर पाया था। पाकिस्तान की दूरदृष्टि थी कि भारत के साथ संघर्ष में अरब-मुस्लिम नाटो उसका साथ देगा और भारत का संहार करेगा। तुर्की भी अरब मुस्लिम दुनिया का चैधरी बनने के लिए तत्पर था।
लेकिन अन्य मुस्लिम देश भविष्य के खतरे और संकट को भांप गये। पाकिस्तान खुद कंगाल है, कटौरे लेकर भीख मांगता है और आतंकवाद की फैक्टरी लगा कर दुनिया को संकट में डालता है। पाकिस्तान के लोग मुस्लिम देश में जाते हैं तो फिर वहां पर विखंडन और मजहबी कूरीतियों की आग लगा देते हैं, इस कारण अरब के कई मुस्लिम देशों में पाकिस्तानी मुसलमानों को नापसंद किया जा रहा है। अरब-मुस्लिम नाटो संगठन खडा करने के पीछे नेतृत्व की समस्या थी, पैसे की समस्या थी। अरब-मुस्लिम नाटों का केन्द्रीय कार्यालय कहां बनेगा, किस देश में बनेगा और उसका प्रमुख कौन होगा? अरब मुस्लिम नाटो संगठन के गठन पर अरबो-खरबों डाॅलर खर्च होगा, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि हर साल इसकी सक्रियता पर करोड़ों और अरबों डाॅलर खर्च होंगे। सबसे बडी बात यह है कि ऐसी सैनिक फोर्स किसके प्रति जिम्मेदार होगी, इस्लाम के प्रति जिम्मेदार होगी तो फिर किसी देश का नियंत्रण ऐसी फौज स्वीकार ही नहीं करेगी। इस कसौटी पर ऐसी कोई सेना खुद भस्मासुर की प्रतीक बन जायेगी।
हमास को लेकर खुद मुस्लिम देश एकमत नहीं है। हमास एक आतंकवादी संगठन है और उसकी हिंसक करतूतों ने मानवता के प्रति घिनौना उदाहरण प्रस्तुत किया है। इसनें मानवता का खून किया है, इसने अपनी हिंसा और विभत्स करतूतों से दुनिया के जनमत को भी अपने विरोधी बना डाला है। सबसे बडी बात यह है कि मुस्लिम देश भ्रम फैलाते हैं कि फिलिस्तीन मुसलमानों का है और मुस्लिमों की वह पवित्र जगह है। इस्लाम के अस्तित्व में आने से पहले ही यहूदियों की यह जगह पवित्र रही है। यह जगह ईसाइयों की भी पवित्र जगह है। यहूदियों के आबाद रहने के पूर्व इस्लाम का कोई नामोनिशान तक नहीं था तो फिर फिलिस्तीन सिर्फ इस्लाम की जगह कैसे हो सकती है? इस्लाम के पैंगेम्बर हजरत मोहम्मद और उनके शिष्यों ने तलवार और युद्ध की शक्ति के बल पर फिलिस्तीन पर कब्जा किया था और यहूदियों को पराजित कर उनका दमन किया था। इस्राइल को भी अपनी सुरक्षा का अधिकार है और इस प्रसंग पर उसकी संप्रभुत्ता भी सुरक्षित रहनी चाहिए।
अभी-अभी यूएनओ में इंडोनेशिया ने इस्राइल का समर्थन किया है। इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्राबोवो सुबिआंतों ने इस्राइल का समर्थन करते हुए कहा कि इस्राइल के सुरक्षित जीवन जीने के अधिकार का सम्मान करना चाहिए। उन्होंने हमास को लेकर भी चिंताएं जताई है और कहा कि जो लोग भी इसके समर्थक हैं वे लोग अपने यहां हमास की उपस्थिति चाहेगे क्या? प्राबोवो सुब्रिआंतों ने मुस्लिम देशों को आईना दिखाया है। हमास सिर्फ इस्राइल ही नहीं बल्कि अन्य मुस्लिम देशों के लिए भी भस्मासुर और हिंसक है। कतर खुद अपने यहां हमास जैसी विनाशक और संहार संगठन की सक्रियता नहीं चाहेगा। सउदी अरब जैसा मुस्लिम देश भी अपने यहां हिंसक इस्लामिक आतंकवादियों को फांसी पर चढाने में देरी नहीं करते हैं। फिर हमास का समर्थन और सहयोग क्यों?
नाटो जैसा कोई भी अरब-मुस्लिम नाटो सैनिक फोर्स का खडा होना मुश्किल है। हथियार कहां से आयेगा? तकनीक कहां से मिलेगी? तकनीक और हथियार तो अमेरिका और यूरोप से मिलेंगे। चीन और रूस हथियार भी देंगे तो उसकी कीमत खूब वसूलेंगे। फिर इस्राइल के पक्ष में सैनिक गठबंधन बनेगा, फिर भारत, दक्षिण कोरिया जैसे देश भी अपनी सुरक्षा के लिए इस्राइल के साथ सैनिक गठबंधन के लिए मजबूर होंगे। नाटो और अमेरिका भी ऐसी कोई सेना को अपने विरूद्ध मानेगा। फिर पाकिस्तान-तुर्की और हमास जैसी शक्तियां अरब-मुस्लिम नाटों का सपना देखते रहें, यह सपना सच होने वाला नहीं है।
–आचार्य श्रीहरि