“उर्दू चलेगी, पर हिंदी नहीं… सुप्रीम कोर्ट वाले मी लॉर्ड हम क्या कहें आप खुद बुधियार हैं, फिर भारत की भाषाओं को स्वीकार करने में परेशानी क्या”, ऑपइंडिया, अप्रैल 16, 2025
“सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (15 अप्रैल 2025) को महाराष्ट्र में एक नगरपालिका के साइनबोर्ड में उर्दू के इस्तेमाल को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। उर्दू को गंगा-जमुनी या हिंदुस्तानी तहजीब का सबसे अच्छा नमूना बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भाषा एक संस्कृति है और इसे लोगों को विभाजित करने का कारण नहीं बनना चाहिए। वहीं, शीर्ष न्यायालय ने अदालती कार्यवाही में अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा बताया है।
महाराष्ट्र के मामले में दरअसल बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने अकोला जिले के पातुर स्थित नगर परिषद की नई इमारत के साइनबोर्ड पर उर्दू के इस्तेमाल की अनुमति दी थी। इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने खारिज कर दिया।
बेंच ने कहा कि किसी अतिरिक्त भाषा का प्रदर्शन महाराष्ट्र स्थानीय प्राधिकरण (राजभाषा) अधिनियम 2022 का उल्लंघन नहीं है। इस अधिनियम में उर्दू के उपयोग पर भी कोई प्रतिबंध नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि साइनबोर्ड पर उर्दू के प्रयोग का उद्देश्य सिर्फ ‘प्रभावी संचार’ है। इसलिए भाषा की विविधता का सम्मान किया जाना चाहिए।
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The judges are Ok with giving equal importance to Urdu along with Marathi which people are opposing.
It is not binding on the municipality.
Your original writer of opindia is supporting Hindi is Supreme court instead of English and local language in local court.
English is an official language and he the original writer is against it.
As for Urdu in municipality this kind of appeasement and Urdu favouritism should not be tolerated.