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Wednesday, September 24, 2025

वोट बैंक की राजनीति में उलझे स्टालिन, हिन्दू समाज पर खतरे की तरह नज़र

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन इन दिनों फिर चर्चा में हैं। वजह है उनका हालिया बयान, जिसमें उन्होंने मुसलमानों के वोट बैंक को साधने के लिए पैगंबर मोहम्मद की शिक्षाओं को राज्य के स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल करने का ऐलान किया। यह कदम सीधा-सीधा appeasement यानी तुष्टिकरण की राजनीति को दर्शाता है।

चौंकाने वाली बात यह है कि यह निर्णय एसडीपीआई नेता नल्लई मुबारक की मांग पर लिया गया। एसडीपीआई, प्रतिबंधित इस्लामिक संगठन पीएफआई का राजनीतिक विंग है। स्टालिन ने गर्व से कहा कि “एसडीपीआई नेता ने पाठ्यक्रम में पैगंबर मोहम्मद को शामिल करने की मांग की थी, और अब इसे लागू कर दिया गया है।” सवाल उठता है कि क्या किसी धर्म विशेष की विचारधारा को सरकारी स्कूलों में पढ़ाना उचित है?

स्टालिन ने खुद को मुसलमानों का सबसे बड़ा हमदर्द दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने कहा कि डीएमके ने सीएए का विरोध किया, वक्फ एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और हमेशा मुसलमानों के हक में खड़ी रही। उन्होंने एआईएडीएमके को मुस्लिम समुदाय के मुद्दों पर समर्थन न देने के लिए कोसा।

इतना ही नहीं, स्टालिन ने डीएमके सरकार की तथाकथित “उपलब्धियां” गिनाईं – मुसलमानों को 3.5 फीसदी आंतरिक आरक्षण, उर्दू भाषी मुसलमानों को पिछड़ा वर्ग सूची में शामिल करना, अल्पसंख्यक कल्याण बोर्ड बनाना, उर्दू अकादमी की स्थापना और चेन्नई में हज हाउस का निर्माण।

हैरानी की बात यह है कि स्टालिन, जो हिन्दी को लेकर “भाषाई युद्ध” छेड़ने की धमकी देते हैं, वे तमिल पहचान को लेकर इतने संवेदनशील तो हैं, लेकिन जब स्कूलों में इस्लामिक शिक्षा थोपने की बात आती है तो उन्हें तमिल अस्मिता पर कोई खतरा नहीं दिखता। क्या यह दोहरा रवैया नहीं है?

हिन्दू त्योहारों और परम्पराओं पर सवाल उठाने वाले स्टालिन को कभी हिन्दू समाज के अधिकारों की चिंता करते नहीं देखा गया। बल्कि उनके बयान यह संकेत देते हैं कि वे हिन्दू समाज को अपने राजनीतिक करियर के लिए बाधा मानते हैं।

स्टालिन ने 1969 में करुणानिधि द्वारा मिलाद-उन-नबी को सरकारी अवकाश घोषित करने और 2006 में उसे बहाल करने की बात भी याद दिलाई। यह साफ है कि डीएमके लंबे समय से मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करती आई है। अब जब चुनाव करीब हैं, तो एक बार फिर वही पुराना एजेंडा दोहराया जा रहा है।

भाजपा ने स्टालिन पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि डीएमके का यह कदम साम्प्रदायिक एजेंडा है। भाजपा प्रवक्ता नारायण तिरुपति ने कहा कि डीएमके हमेशा से मुस्लिम वोट बैंक के लिए काम करती है और अब यह कदम उसी की ताज़ा मिसाल है।

सवाल यह है कि क्या किसी धर्म विशेष की शिक्षाओं को सरकारी स्कूलों में पढ़ाना लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष भारत की भावना के अनुरूप है? क्या यह कदम आने वाली पीढ़ियों पर धर्म आधारित राजनीति थोपने की कोशिश नहीं है?

हकीकत यही है कि स्टालिन का यह फैसला विकास, शिक्षा और प्रशासनिक सुधारों से ध्यान हटाकर वोट बैंक की राजनीति को साधने की कोशिश है। और यह भी साफ हो रहा है कि हिन्दू समाज को वे अपने राजनीतिक भविष्य के लिए एक खतरे की तरह देखते हैं।

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Shomen Chandra
Shomen Chandrahttps://news4fact.com/
Shomen Chandra is the editor of News4Fact, where he writes and edits news articles. He also contributes as a columnist to various media organisations. He is currently pursuing a postgraduate degree in Journalism and Mass Communication.

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