spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
19.8 C
Sringeri
Wednesday, September 24, 2025

सुरक्षा दबाव या वैचारिक हार? माओवादी संगठन में टूट की गूंज

छत्तीसगढ़ और आसपास के नक्सल प्रभावित इलाकों में माओवादी संगठन की अंदरूनी फूट एक बार फिर खुलकर सामने आई है। पोलित ब्यूरो सदस्य सोनू उर्फ वेणुगोपाल ने हाल ही में एक बयान जारी कर हथियार छोड़कर शांति वार्ता की ओर बढ़ने की बात कही थी। लेकिन माओवादी केंद्रीय कमेटी और दंडकारण्य विशेष जोनल कमेटी ने इसे पूरी तरह खारिज करते हुए कड़ी निंदा की है।

सोनू की “मुख्यधारा” वाली अपील

सोनू ने अभय के नाम से जारी प्रेस नोट में कहा था कि बदली परिस्थितियों में अब हथियार छोड़कर मुख्यधारा में आना और शांति वार्ता करना ही सही रास्ता है। उन्होंने जनता से माफी मांगते हुए स्वीकार किया था कि नक्सली संगठन अपने असली उद्देश्यों को पूरा करने में विफल रहा है। सोनू ने यहां तक कहा कि यदि सरकार और संगठन के बीच संवाद हो तो बंदूक छोड़कर जनहित के लिए वैकल्पिक रास्ते तलाशे जा सकते हैं।

माओवादियों की भड़ास

सोनू की इस अपील पर केंद्रीय कमेटी का जवाब बेहद तीखा आया है। संगठन ने इसे व्यक्तिगत राय बताते हुए कहा कि यह पार्टी की आधिकारिक लाइन नहीं है। प्रेस विज्ञप्ति में साफ लिखा गया कि सोनू का यह बयान धोखाधड़ी है और इससे कार्यकर्ताओं और ग्रामीण समर्थकों में भ्रम फैलाने की कोशिश की जा रही है। कमेटी ने सोनू पर “विश्वासघात” का आरोप लगाते हुए यहां तक कहा कि अगर वह आत्मसमर्पण करना चाहते हैं तो कर सकते हैं, लेकिन संगठन के हथियार सरकार को सौंपने का अधिकार उन्हें नहीं है।

फूट से टूटी “एकजुटता” की छवि

माओवादी लंबे समय से खुद को “जनयुद्ध” का वाहक बताते आए हैं। लेकिन अब खुद उन्हीं की कतारों से यह स्वीकारोक्ति सामने आ रही है कि उनका तथाकथित आंदोलन अब पूरी तरह दिशाहीन हो चुका है। एक ओर सोनू जैसे वरिष्ठ नेता मान रहे हैं कि सशस्त्र संघर्ष ने उद्देश्य पूरे नहीं किए और हिंसा से संगठन कमजोर हुआ है, वहीं दूसरी ओर बाकी नेतृत्व अभी भी बंदूक के सहारे सत्ता हथियाने की पुरानी सोच में जकड़ा हुआ है। यह फूट इस बात का प्रमाण है कि माओवादियों की कथित “एकजुटता” अब खोखली हो चुकी है।

जनता पर बोझ बना माओवादी आंदोलन

संगठन के भीतर की यह खींचतान साफ करती है कि उनके पास कोई ठोस वैचारिक आधार नहीं बचा। वे “जनता की लड़ाई” के नाम पर केवल हिंसा, वसूली और निर्दोषों की हत्या कर रहे हैं। सोनू ने अप्रत्यक्ष रूप से यह स्वीकार किया कि जनता अब इस तथाकथित जनयुद्ध से थक चुकी है। जिन ग्रामीणों को माओवादी अपने समर्थन का आधार बताते हैं, उन्हीं पर वे “तथाकथित जनन्याय” के नाम पर मौत और आतंक थोपते हैं।

सुरक्षा बलों का दबाव और संगठन की कमजोरी

हाल के वर्षों में लगातार सफल अभियानों ने माओवादी ढांचे को तोड़कर रख दिया है। शीर्ष नेता मारे जा रहे हैं, बड़ी संख्या में कैडर आत्मसमर्पण कर रहे हैं और अब नेतृत्व स्तर पर ही दरारें साफ दिख रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सोनू का बयान दरअसल संगठन की हताशा का प्रतीक है, जबकि बाकी नेतृत्व का प्रतिरोध यह दिखाता है कि वे अपने पतन को स्वीकार नहीं करना चाहते।

अंत की ओर बढ़ता नक्सलवाद

नक्सलियों के बीच यह फूट बताती है कि उनकी विचारधारा बिखर चुकी है। अगर एक ओर से बातचीत और शांति वार्ता की आवाज उठ रही है तो दूसरी ओर उसी संगठन से इसे गद्दारी कहकर खारिज किया जा रहा है। यह स्थिति इस बात का सबूत है कि माओवादी आंदोलन अब अपने अंत की ओर बढ़ चुका है। जनता और सरकार दोनों के सामने उनकी सच्चाई बेनकाब हो चुकी है।

Subscribe to our channels on WhatsAppTelegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

Shomen Chandra
Shomen Chandrahttps://news4fact.com/
Shomen Chandra is the editor of News4Fact, where he writes and edits news articles. He also contributes as a columnist to various media organisations. He is currently pursuing a postgraduate degree in Journalism and Mass Communication.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.