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Saturday, June 28, 2025

लखीमपुर खीरी में दो दलित लड़कियों की हत्या को लेकर झूठी क्रान्ति करने ही जा रही थीं फेमिनिस्ट कि पता चल गया कि हत्यारे सुहैल, जुनैद, करीमुद्दीन आदि हैं

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में दो दलित बच्चियों के शव टंगे मिले थे और चूंकि बच्चियां दलित समुदाय की थीं, तो शोर मचना अधिक लाजिमी थी, चूंकि बच्चियां उस प्रदेश की थीं, जहाँ पर योगी जी का शासन है, तो शोर और मचना लाजिमी था। शोर इसलिए भी मचना लाजिमी था क्योंकि एक भगवाधारी मुख्यमंत्री था, जिस रंग से और जिस धर्म से “देह की आजादी का नारा लगाने वाली और वामपंथी आदमियों के इशारे पर जम्पिंग जैक करने वाली” फेमिनिस्ट समुदाय को घृणा है।

यह घटना अत्यंत दुखद थी एवं क्षोभ तथा क्रोध से भरने वाली थी कि कैसे दो बहनें, जिन्हें परिवार ने न जाने कितने अरमानों से पाला होगा, उनके शव लटकते हुए पाए गए। अब चूंकि वह लडकियां दलित थीं, तो जाहिर सी बात है कि दलितों के नाम पर अपनी राजनीति करने वाले भी तुरंत आ गए, जो हाथरस में पहुँच गए थे, जैसे चन्द्रशेखर आजाद, अखिलेश यादव आदि आदि!

चन्द्रशेखर आजाद ने लिखा कि

यूपी के लखीमपुर खीरी में दो दलित बहनों को दिनदहाड़े हत्या कर पेड़ से लटका दिया गया।

इन फंदों पर यूपी की दलित बेटियों की लाशें नही, यूपी की कानून व्यवस्था लटकी हैं।

आज ही के दिन 2 साल पहले हाथरस की घटना हुई थी। इस बार एक नही 2 बेटियों की लाशें। अभी तो पिछले जख्म भी नही सूखे।

https://twitter.com/BhimArmyChief/status/1570117607302500352

ऐसे ही अखिलेश यादव ने भी सरकार को घेरने के लिए जनता के आक्रोश का लाभ उठाते हुए लिखा कि

कई “बौद्ध” एवं दलित चिन्तक उठ खड़े हुए कि ऐसा हो रहा है, वैसा हो रहा है। पत्रकार रोहिणी सिंह भी जैसे इशारे की प्रतीक्षा में थीं, उन्होंने भी शासन द्वारा मार्ग खोलने का अनुरोध करने पर ही निशाना साधा

खैर, इन सबकी क्रांतियों को शीघ्र ही नजर लगने वाली थी। इधर हिन्दी की फेमिनिस्ट लेखिकाएं तो सोच ही नहीं पा रही थी कि क्या लिखें? कविता अभी उनकी कलम में उतरने ही वाली थी, उनकी फेक कहानियों का “ओर्गैज्म” अभी चरम पर पहुँचने ही वाला था, उनकी  “दलितों” पर “ब्राह्मणों” के अत्याचार की कहानियों का शोध होने ही वाला था कि अचानक से ही अपराधी पकड़े गए!

अचानक से ही यह पता चला कि जिन लड़कियों के अपहरण और हत्या को लेकर कल से वरिष्ठ पत्रकार आदि शोर मचा रहे थे, वह दरअसल “स्वेच्छा” से गयी थीं और पुलिस के अनुसार वह पूर्व परिचित थीं।

https://www.facebook.com/AnjumAjit

कहानी में और सारी क्रांतियों में अचानक से ही ट्विस्ट आ गया। अब चूंकि अपराधियों के नाम पुलिस के अनुसार हैं “छोटू जुनैद सुहैल हफीजुर करीमुद्दीन आरिफ” हैं, तो अब लोग समझ नहीं पा रहे हैं, कि क्या किया जाए?

कल जब यह घटना सामने आई थी तो एजेंडा पत्रकार “सबा नकवी” ने ट्वीट किया था कि लड़कियों की जाति को नोट करना अधिक महत्वपूर्ण है। अब जब यह पता चल रहा है कि हत्या किन लोगों ने की है,तो क्या मजहब भी नहीं बताया जाना चाहिए?

पुलिस के अनुसार छोटू ने इन लड़कियों का परिचय उन लड़कों से कराया था। उन लड़कियों ने दोस्ती कर ली थी। और कल वह तीन लड़के आए और लड़कियों को बहला फुसला कर ले गए। वह उन्हें खेतों में ले गए और फिर वहां पर ले जाकर उनके साथ उनकी इच्छा के बिना शारीरिक सम्बन्ध बनाए और जब लड़कियों ने शादी की बात की तो उनका गला दबाकर उन्हें मार डाला। फिर आरिफ और करीमुद्दीन को बुलाया एवं इस प्रकार उन्हें टांगा!

पोस्ट मार्टम को लेकर भी झूठ फैलाया गया और कहीं न कहीं एक प्रकार का कृत्रिम असंतोष उत्पन्न करने का प्रयास किया गया। अब जब धीरे धीरे बातें निकलकर आ रही हैं, तो फेमिनिस्ट की कविता और कहानियाँ वापस जा रही हैं, क्योंकि वह कभी भी जुनैद, सोहैल, आरिफ़,हफ़ीज़, करीमुद्दीन के खिलाफ नहीं लिख सकती हैं। वह तो उनके लिए भटके हुए युवा हैं, जिनका दिल आ गया होगा उन लड़कियों पर, और फिर भेंट तो छोटू ने कराई थी, मुलाक़ात न!

जब कोई दोस्ती कराएगा तो लड़के बेचारे तो दोस्ती कर ही लेंगे और वैसे भी शाहरुख खान और करण जौहर ने तो फिल्म “कुछ कुछ होता है” में कहा ही था कि “प्यार दोस्ती है!” तो फिर दोस्ती हो गयी तो प्यार तो होना ही है, मगर जिससे प्यार हो गया, जिसके साथ सो लिए, उससे शादी करनी है, ऐसा तो जरूरी नहीं है न! जबरन सम्बन्ध बनाया जा सकता है, पर जबरन शादी तो नहीं की जा सकती न!

फेमिनिस्ट लोगों के लिए शादी वैसे ही बेकार की बात है, तो शादी की जिद्द करने वाली लडकियों के साथ ऐसा हो गया तो क्या हुआ? वह गयी तो “स्वेच्छा” से ही थीं न, कोई जबरन तो नहीं ले गया था!

परन्तु मामला यहाँ पर समाज और परिवार का अधिक है कि कैसे कोई छोटू आपकी बेटियों की दोस्ती किसी जुनैद, सोहेल आदि से करा सकता है? सबसे बड़ा प्रश्न यही है और फेमिनिस्ट भी यही कहेंगी कि आपकी बेटियाँ जाती ही क्यों हैं उधर?

एवं यह सही प्रश्न भी है कि आखिर क्यों लड़कियों की दोस्ती कोई भी आकर किसी से करा सकता है? यह प्रश्न समाज से है, यही प्रश्न परिवार से है? जब तक इस प्रश्न का उत्तर खोजकर हल नहीं किया जाएगा, हिन्दू लड़कियों के जिहादियों के हाथों मारे जाने पर फेमिनिस्टों के बैग इसी प्रकार अनपैक ही रहेंगे!

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1 COMMENT

  1. डीडी लोगों के हांथ से एक नैरेटिव छूट गया ..वे गिद्धणीं बनने ही वाली थीं पर तब तक क़ातिलों अपराधियों के नाम प्रत्यक्ष हो गए ..

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