एक साल से भी ज्यादा समय तक किसानो द्वारा बंधित बनाई गयी दिल्ली एक बार फिर से इस चंगुल में फंसने जा रही है। अपनी मांगों के पूरा ना होने से नाराज़ किसान संगठनों ने फिर से ताल ठोक दी है। किसानों ने अपनी मांगों को लेकर फिर से दिल्ली को घेरने का प्रयास शुरू कर दिया है। 22 अगस्त को जंतर मंतर पर किसान महापंचायत करने की घोषणा के बाद से पंजाब समेत कई इलाकों से किसान दिल्ली के लिए कूच कर चुके हैं।
किसानों की महापंचायत से होने वाली कानून व्यवस्था की समस्या से निबटने के लिए सरकार ने सिंघू और गाजीपुर सीमा पर भारी संख्या में पुलिस फोर्स तैनात कर दी है। दिल्ली-हरियाणा और दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर बैरीकेडिंग कर दी गई है, ताकि अनावश्यक भीड़ दिल्ली में प्रवह ना कर पाए। अब सभी के मन में एक ही प्रश्न गूंज रहा है कि क्या एक बार फिर से दिल्ली में किसान आंदोलन होने वाला है, और क्या फिर से दिल्ली को बंधक बनाने का रयास किया जा रहा है।
लोगो के मन में यह प्रश्न भी उठ रहा होगा कि जब केंद्र सरकार और किसानों के बीच विवादित तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेने और अन्य मुद्दों पर सहमति बन चुकी थी तो फिर किसान क्यों यह प्रदर्शन करना चाहते हैं। उनकी ऐसी कौन सी मांगे हैं जिसे अभी तक पूरा नहीं किया गया है।
क्या हैं किसानों की मांगे?
-स्वामीनाथन आयोग के सी2+50 प्रतिशत फॉर्मूले के अनुसार एमएसपी की गारंटी का कानून लागू करना
-देश के सभी किसानों को कर्जमुक्त करने का प्रयास करना
-लखीमपुर खीरी नरसंहार के पीड़ित किसान परिवारों को इंसाफ, जेलों में बंद किसानों की रिहाई और केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी की गिरफ्तारी
-गन्ने का समर्थन मूल्य बढ़ाने और बकाया राशि का तत्काल भुगतान
-बिजली बिल 2022 के प्रावधानों को रद्द करना
-विश्व व्यापार संगठन से बाहर आए और सभी मुक्त व्यापार समझौते रद्द करने
-किसान आंदोलन के दौरान दर्ज सभी मुकदमे वापस लिए जाएं
-प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों के बकाया मुआवजे का तत्काल भुगतान
-सेना में भर्ती की अग्निपथ योजना को वापस लिया जाए
इन मांगों को देख कर कोई भी यह समझ सकता है कि कुछ मांगे तो मानी जा सकती हैं, लेकिन अधिकांश मांगें मानना सरकार के लिए संभव नहीं है। वहीं किसानों का कहना है कि वह पंचायत के समापन के बाद राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपेंगे। संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनैतिक) का कहना है कि यदि सरकार किसी भी तरह का व्यवधान डालने का प्रयास करेगी तो उसके लिए सरकार स्वयं जिम्मेदार होगी। ऐसे में किसान संगठनो और सरकार के बीच तनातनी होना अवश्यम्भावी है, जिसके दुष्परिणाम दिल्ली को भगतने पड़ सकते हैं।
संयुक्त किसान मोर्चा ने खुद को महापंचायत से किया अलग
पिछले किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा ने अपने आपको इस महापंचायत से अलग कर लिया है। उन्होंने स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि जंतर मंतर पर होने वाले विरोध प्रदर्शन से उनका कोई सम्बन्ध नहीं है। ऐसा माना जा रहा है कि कुछ किसान संघ जो 2020-21 के विरोध प्रदर्शनों के समय संयुक्त किसान मोर्चा के सहयोगी थे, वही इसका आयोजन कर रहे हैं। बीकेयू एकता सिद्धूपुर के जगजीत सिंह दल्लेवाल इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे हैं, जबकि बाकी किसान संघ और नेता इसका हिस्सा नहीं हैं।
क्या दिल्ली वालों के आएंगे बुरे दिन?
किसानों के दिल्ली में प्रवेश करने के पश्चात एक अनिश्चितता का माहौल बन गया है, और लोगो को संशय होने लगा है कि क्या इस बार भी उनका जीवन अस्तव्यस्त होने जा रहा है। पाठकों को याद ही होगा कि केंद्र सरकार ने कृषि सुधार बिल लागू कर दिए थे, उसके पश्चात किसान संगठनों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया । 24 सितंबर 2020 को पंजाब से शुरू हुआ किसान आंदोलन 25 सितंबर तक दिल्ली तक पहुंच गया था।
संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन में 32 किसान संगठनों के सहयोग से एक बहुत बड़े आंदोलन का आयोजन किया था। दिल्ली की टिकरी, सिंघू और गाजीपुर सीमाओं पर किसानों ने 378 दिन तक धरना देकर सड़कें जाम कर रख थी।इस किसान आंदोलन में उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब समेत देशभर से हजारों की संख्या में किसान और अन्य राजनीतिक दल भी सम्मिलित हुए थे। इस आंदोलन के कारण लाखों लोग साल भर से ज्यादा समय तक परेशान रहे, हजारों लोगों का कारोबार चौपट हो गया था, और हजारों अन्य बेरोजगार हो गए थे।
किसानों का ऐसे एकाएक महापंचायत करना क्या कोई षड्यंत्र है? यह सरकार का दायित्व बनता है कि वह सुनिश्चित करे कि इस महापंचायत से कोई भी कानून व्यवस्था की समस्या ना खड़ी हो, यह पिछले आंदोलन की तरह लम्बे समय तक ना खिंचे।