आज हिन्दुओं का एक पर्व है करवाचौथ। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चौथ एवं करवा चौथ का पर्व मनाया जाता है। करवा चौथ के दिन पत्नी अपने पति की लम्बी आयु के लिए पूरे दिन निर्जल रहकर व्रत रखती हैं। यह बेहद आपत्तिजनक है कि जैसे ही यह पर्व आता है, वैसे ही इस पर्व के विषय में आपत्तिजनक टिप्पणियाँ कही जाने लगती हैं।
एक ओर इस पर्व पर यह कहते हुए प्रहार होने लगते हैं कि इसे यश चोपड़ा या एकता कपूर ने लोकप्रिय बनाया तो वहीं फेमिनिज्म इसे स्त्री विरोधी बताते हुए हमला करने लगता है। फेमिनिस्ट इस पर्व के बहाने हिन्दू परिवार को तोड़ने के लिए हिन्दू पुरुषों को ही दोषी ठहरा देती हैं, और इसके बहाने उसी झूठ का कुप्रचार करती हैं, जिसे वह अब तक अपनी कहानियों आदि में कहती हुई आई हैं।
भारत में जो फेमिनिज्म आया है वह अपने सबसे विकृत रूप में आया, उसने केवल और केवल हिन्दू परम्पराओं को स्त्री विरोधी बताने का कार्य किया। पहले तो केवल साहित्य के माध्यम से ही ऐसे तोडा जाता था, परन्तु अब पुस्तकों एवं वेबसाइट्स आदि सभी से करवाचौथ को अपना शिकार बना रहा है।
ऐसा नहीं है कि यह पर्व फिल्मों या बाजार का पर्व है। यह पर्व लोक का पर्व है। वरिष्ठ पत्रकार आलोक बृजनाथ का कहना है कि यद्यपि आज की तड़क भड़क फिल्मों और बाजार की देन है, फिर भी इस पर्व का अपना एक इतिहास है। उनका कहना है कि सनातनी कर्मकांड तथा संस्कारों से संबंधित प्राचीन ग्रंथों निर्णय सिंधु (पृष्ठ 196), व्रतार्क (84-86), व्रतराज (172), स्मृति कौस्तुभ (367) तथा पुरुषार्थ चिंतामणि (95) में कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को किए जाने वाले ‘करक चतुर्थी व्रत’ का उल्लेख है।
इस व्रत के प्राचीन रूप में दिन में वटवृक्ष के नीचे शिव, गौरी, गणेश तथा स्कंद के चित्र बना कर उनकी समस्त उपचारों के साथ पूजा की जाती थी। इसके उपरांत दस ब्राह्मणों को करक (पात्र) दान किए जाते थे। चंद्रोदय के उपरांत चंद्र को अर्घ्य देकर भोजन कर व्रत संपन्न किया जाता था। समय के अनुसार, इसमें कुछ परिवर्तन हो गए तथा नवाचार जुड़ गए। (उनकी फेसबुक वाल से साभार)
फेमिनिज्म का शिकार एक और पर्व
सुख और समृद्धि और सौभाग्य का यह पर्व मिशनरी और वाम षड्यंत्र का शिकार है। अत्यंत सुनियोजित तरीके से हिन्दू पर्वों को बदनाम करने का षड्यंत्र किया गया। 1857 की क्रान्ति के समय जब अंग्रेजों ने यह देखा कि हिन्दू अपने धर्म के लिए उनसे भी टकरा सकते हैं, तो उन्होंने उसे और सुनियोजित तरीके से नष्ट करने का प्रयास करना आरम्भ कर दिया। परन्तु उसे असली चोट पहुंचाई स्वतंत्रता के उपरान्त एजेंडे बनाए गए।
पितृसत्ता का प्रोपोगंडा तैयार किया गया और करवाचौथ को उसी काल्पनिक पितृसत्ता का वाहक बना दिया गया। पितृसत्ता जैसी किसी भी अवधारणा का स्थान भारतीय परिप्रेक्ष्य में नहीं था, उसे साहित्य की सबसे अनिवार्य अवधारणा बना दिया गया और करवाचौथ जैसे पर्वों को उसका शिकार बनाया गया।
करवाचौथ को औरतों के शोषण से जोड़ दिया गया, और फिर ऐसे प्रश्न किए गए, जो कहीं न कहीं किसी न किसी हिन्दू स्त्री को छूते थे जैसे
- जिस औरत का पति उसे मारे पीटे, तो वह करवाचौथ पर क्या करें?
- यह केवल सुहागिनें ही रह सकती हैं, इसलिए यह भेदभाव उत्पन्न करता है, विधवा बेचारी क्या करें?
- कम दहेज़ का ताना खाने वाली औरतें करवाचौथ का व्रत करें या न करें?
- कुपोषण का शिकार औरतें क्या करें?
ऐसे ऐसे तमाम प्रश्न करवाचौथ पर उठाए जाने लगे। और कहा जाने लगा कि करवाचौथ पतियों की उम्र का लाइसेंस रीनयु करने की तारीख है। और यह कहा गया कि औरतें अपने पति की गुलामी करती हैं। करवाचौथ को घोर लैंगिक भेदभाव वाला पर्व बताया जाने लगा और स्त्रियों के सबसे अच्छे मित्र हुआ करते थे, अर्थात उनके आभूषण, उन्हें बेड़ियाँ बताया जाने लगा।
दुखद बात यह है कि अपने पर्व का उपहास करने में कुछ हिन्दू भी आगे आ जाते हैं और अपने हर पर्व के विषय में अपमानजनक बातें करते हैं। बिना यह जाने कि यह पर्व कब से आरम्भ हुआ, किन क्षेत्रों में किस रूप में मनाया जाता था, उसे टीवी से जोड़ दिया। यह बात सत्य है कि आज कई क्षेत्रों में एक बड़ा वर्ग बाजार और चकाचौंध से प्रभावित है, परन्तु यह सदा से नहीं था।
हर पर्व की तरह यह भी लोक का पर्व था, एवं व्यक्गित आस्था का विषय था। धर्म की परम्पराओं को मानना किसी भी स्त्री का मूलभूत अधिकार है, परन्तु चूंकि हिन्दू स्त्रियों का यह मूलभूत अधिकार ही ईसाई मिशनरी के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा था, तो सबसे पहले हिन्दुओं के उत्सवों के प्रति ही हीनभावना का विस्तार किया गया।
करवाचौथ से क्या समस्या है? इस पर्व में स्त्रियाँ न ही बड़े बड़े आन्दोलन की तरह रास्ता रोकती हैं और न ही छुरी लेकर निरीह जानवरों का गला रेतती हैं! वह बस अपने जीवनसाथी की लम्बी आयु के लिए व्रत रखती हैं, प्रेम और मनुहार और आस्था के पर्व को वह लोग नहीं समझ सकते हैं, जो शादी को एक समझौता मानते हैं और जो लिव इन को शादी से बेहतर मानते हैं!
समय आ गया है कि हिन्दू पर्वों पर उनके आक्रमण का उत्तर दिया जाए, जो एक्सीडेंटल या नाम के हिन्दू हैं।
RW Hindu ladkiyan bhi khud ko Proud feminist kehti hai aur interfaith marriage ko support karti hai
Hindus ka vinash nishchit hai..thanks to feminism and gullible Hindu women.