पंजाब के गुरदासपुर जिले में पुलिस ने एक अवैध बूचड़खाने पर छापा मारा और वहां से जो भी सामने निकलकर आया, वह हैरान करने वाला और सिहरा देने वाला है, जो सामने आया वह दिल दहला देने वाला है। धारीवाल में जब पुलिस ने अवैध बूचड़खाने पर छापा मारा तो वहां पर उन्होंने देखा कि लोग जिंदा गायों को मार रहे हैं।
जिस समय छापा मारा गया, उस समय आरोपितों ने तीन गायों को सिर पर हथौड़े से मारा हुआ था।
40 पुलिस कर्मियों और अधिकारियों की टीम ने गुरदासपुर एसएसपी के निर्देशों पर अवैध बूचड़खाने पर छापा मारा। मौके से पुलिस ने तीन गायों के शवों को बरामद किया और एक गंभीर रूप से घायल गाय को अस्पताल भेजा गया है, तो वहीं चार गायों को बचा लिया गया है।
एसएसपी डॉ नानक सिंह के अनुसार उन्हें अवैध बूचड़खाने के विषय में ठोस जानकारी प्राप्त हुई थी, और इसी आधार पर उन्होंने छापा मारा था। जो गायें वहां पर पाई गईं, उनकी स्थिति बहुत ही दयनीय थी और उनकी नाक के अन्दर से रस्सी बांधी गयी थी और पैरों से बांधा गया था। और इन गायों की इसी स्थिति में यह लोग हत्या कर देते थे।
जिन्दा गायों को इस अवैध बूचड़खाने के कर्ता धर्ता और मास्टरमाइंड तरीजा नगर निवासी नियामत मसीह, और उसका बेटा रवि हैं, पकडे गए शेष आरोपितों के नाम हैं विक्की, रवि, थॉमस मसीह, जेसम मसीह, जॉनी और बलकार मसीह पुत्र सरदार मसीह और उत्तर प्रदेश के सहारनपुर निवासी वसीक, नासक और तनवीर।
पुलिस को वहां पर काफी मात्रा में गौमांस मिला और साथ ही कई फुट ऊंचा हड्डियों का ढेर मिला। मीडिया के अनुसार यह लगभग बीस फीट ऊंचा था। हालांकि यह नहीं कहा जा सकता है कि इसमें केवल और केवल गाय की ही हड्डियाँ होंगी, क्योंकि वहां पर आसपास के गावों के मृत पशुओं के शव भी लाए जाते थे।
यह इस बात का प्रमाण है कि गौ मांस का यह अवैध धंधा आज से नहीं काफी लम्बे समय से निर्बाध चल रहा था। पुलिस के अनुसार गाय की इस प्रकार क्रूरता पूर्वक हत्या के उपरान्त उनका मांस पैकेटों में बंद करके अन्य स्थानों पर बेचते थे।
वहीं मौके से दो गाड़ियों का बरामद होना कहीं न कहीं यह आशंका जताता है कि यह सभी आरोपित बेसहारा पशुओं की तस्करी में भी शामिल होंगे क्योंकि पहले भी उन ट्रकों की बरामदगी हो चुकी है, जो पंजाब से उत्तर प्रदेश की ओर जाते थे। पुलिस अब आरोपितों से पूछताछ कर रही है। पूछताछ में जो भी सत्य सामने आए, परन्तु यह उसी सोच का परिणाम है, जिसने गाय को मात्र एक पशु, मात्र एक जानवर के रूप में परिवर्तित करके रख दिया है।
गाय के विषय में बात उठाना ही अपने आप में साम्प्रदायिक हो जाता है और वाम और इस्लाम द्वारा प्रेरित शिक्षा के माध्यम से हमारे बच्चों और युवा पीढ़ी का मस्तिष्क इस सीमा तक दूषित हो चुका है कि उन्हें गाय पर बात करना गलत लगने लगा है! ऐसी घटनाओं पर पेटा भी चुप्पी साध लेता है। गौरतलब है कि पेटा बहुत जोर शोर से भारतीय डेयरी उद्योग को नष्ट करने के अपने षड्यंत्र को वीगन आन्दोलन के मध्यम से सफल करने का कुचक्र रच रहा है।
पेटा जहां गायों के वध को गलत नहीं ठहराता है, वह बस क्रूरता को गलत ठहराता है। अभी भी वह गायों के वध की आलोचना न करते हुए यही मांग करेगा कि इन्हें वैध बूचडखाने में आराम से मारा जाना चाहिए।
परसों ही उसने हिन्दू शादियों में बारातों में घोड़े के प्रयोग को लेकर आपत्ति की थी और उसे क्रूरता करार दिया था।
पेटा जैसी संस्थाएं ऐसी क्रूरताओं पर शांत रहती हैं और हिन्दुओं की मान्यताओं पर प्रश्न ही नहीं उठाती हैं, बल्कि प्रहार करती हैं। प्रहार ही नहीं करती बल्कि परम्पराओं को नष्ट करने पर तुल जाती हैं।
यह घटना इस प्रकार के वोक एक्टिविज्म के खोखलेपन को प्रदर्शित करती है और बार बार इस तथ्य को स्थापित करता है कि हिन्दू धर्म आधारित शिक्षा कितनी आवश्यक है और हिन्दू मूल्यों को शिक्षा में सम्मिलित किया जाए।
नहीं तो पेटा जैसे वोक और बिके हुए लोग ईद पर एवं गायों की इस प्रकार समुदाय विशेष द्वारा की गयी हत्या पर चुप रहेंगे और घोड़ों पर आवाज उठाएंगे, जो न जाने कितने लोगों के लिए रोजगार का साधन है।
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