विश्व भर में निष्पक्ष ख़बरों को बेचने के नाम से कुख्यात न्यूयॉर्क टाइम्स को अब अपने संस्थान के लिए ऐसा पत्रकार चाहिए, जो मोदी विरोधी हो। यह सत्य है कि किसी भी समाचारपत्र को केवल सरकार का मुखपत्र ही होकर नहीं रह जाना चाहिए, परन्तु यह भी सत्य है कि किसी भी समाचारपत्र में नियुक्ति की यह शर्त नहीं होती है कि उसे एक विशेष धर्म और वह भी उस धर्म का विरोधी होना चाहिए, जो विश्व में “स्वीकार्यता” का पर्याय है। सहिष्णुता तो बहुत ही छोटा तत्व है, एवं हिन्दुओं ने सहन नहीं किया है, स्वीकारा है, जो आया है, उसे अपनाया है। न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे अखबार हिन्दुओं की इस स्वीकार्यता की आदत को हिन्दुओं की दुर्बलता समझते हैं।
यही कारण है कि विज्ञापन में खुलकर हिन्दू घृणा प्रकट की गयी है। भारत के विषय में जिस प्रकार की भाषा का प्रयोग किया गया है, वह देखकर यह अनुमान लगाना अत्यंत कठिन है कि क्या किसी समाचारपत्र की यह भाषा हो सकती है? क्या कोई समाचारपत्र ऐसा हो सकता है जो हिन्दू घृणा और मोदी घृणा में इतना डूब गया हो कि वह विज्ञापन ही इस आशय हेतु दे दे? 1 जुलाई 2021 को लिंक्डइन पर प्रकाशित नियुक्ति के एक विज्ञापन ने ऐसे कई प्रश्न पैदा किये, न्यूयॉर्क टाइम्स ने यह विज्ञापन दक्षिण एशिया के बिजनेस संवाददाता के लिए है।
यदि बिजनेस संवाददाता के लिए यह विज्ञापन है तो, इसमें मोदी से घृणा क्यों बीच में आई? क्या दक्षिण एशिया में बिजनेस संवाददाता मोदी के भारत के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण रखकर खबरें बनाएगा?
भारत के लिए इसमें लिखा है कि
“भारत जल्दी ही जनसँख्या के मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा,और उसमें विश्व के मंच पर एक मजबूत आवाज़ जीतने की महत्वाकांक्षा है। अपने करिश्माई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, भारत एशिया में प्रतिद्वंदी चीन के आर्थिक एवं राजनीतिक वर्चस्व को चुनौती दे रहा है, उनके मध्य तनावग्रस्त सीमाओं पर एक नाटक खेला जा रहा है और पूरे क्षेत्र में राष्ट्रीय राजधानियों में एक नाटक खेला जा रहा है।
घरेलू रूप में, भारत वर्ग एवं धन असमानता के कई कठिन प्रश्नों के साथ घुलेमिले लोगों और भाषाओं का मिश्रित केंद्र है। इसमें सु-शिक्षित और आशावान मध्यवर्ग शामिल है, जो अमेजन, वालमार्ट और कई अन्य वैश्विक कंपनियों से प्रभावित है। भारतीय व्यापारी टाइकून के एक नए वर्ग ने वाल स्ट्रीट और लंदन पर काफी असर जमाया है। फिर भी भारत में कई लोग हैं जो अपने बच्चों को बेहतर जीवन देने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और एक समय में भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था अब गिरने के संकेत दे रही है।”
इस वर्णन से कुछ बातें निकल कर आ रही हैं कि न्यूयॉर्क टाइम्स को इससे समस्या है कि भारत वैश्विक मंच पर अपनी आवाज़ मजबूत रूप से उठाना चाह रही है। और वह चीन को उसके आर्थिक मोर्चे पर चुनौती दे रहा है। यह बात पूरी तरह से सत्य है क्योंकि भारत के आत्मनिर्भर अभियान ने चीन द्वारा भारत में किये गए आयात पर काफी असर डाला है और भारत और चीन के बीच आयात-निर्यात अंतर में कमी आई है।
क्या यही एक कारण है या फिर कोई और? यदि भारत चीन को पीछे छोड़ना चाहता है, तो इसमें न्यूयॉर्क टाइम्स को क्या समस्या हो सकती है? परन्तु है! इसके पीछे शायद वह रिपोर्ट है जिसमें यह कहा गया है कि चीन के मुख्य प्रोपोगैंडा आउटलेट ने अफवाह फैलाने के लिए कई अमेरिकी अख़बारों को 19 मिलियन अमेरिकी डॉलर विज्ञापन के रूप में दिए। चीन के दैनिक ने न्यूयॉर्क टाइम्स को 50,000 अमेरिकी डॉलर के विज्ञापन दिए थे।
क्या यही कारण है कि न्यूयॉर्क टाइम्स चीन के प्रति अपनी वफादारी दिखा रहा है, और भारत के प्रति अपनी घृणा का खुलकर प्रदर्शन कर रहा है। वैसे पाठकों को न्यूयॉर्क टाइम्स की हिन्दू घृणा याद होगी जिसके अंतर्गत साड़ी को उग्र हिंदुत्व का परिचायक बता दिया था। और साड़ी जैसी परम्परागत पोशाक के प्रति भी अपनी घृणा इसलिए प्रदर्शित की थी क्योंकि वह हिन्दुओं के साथ जुड़ी है।
अब विज्ञापन में न्यूयॉर्क टाइम्स आगे क्या लिखता है, वह रोचक है
“भारत का भविष्य अब चौराहे पर खड़ा है। मिस्टर मोदी एक आत्मनिर्भर, मजबूत राष्ट्रवाद की वकालत कर रहे हैं, जो देश के हिन्दू बहुसंख्यकवाद पर केन्द्रित है। यह विजन उन्हें आधुनिक भारत के संस्थापकों के अंतर्धार्मिक, बहुसांस्कृतिक लक्ष्यों के विपरीत खड़ा करता है। सरकार ने जिस प्रकार ऑनलाइन स्पीच और मीडिया विमर्श पर ऑनलाइन नियंत्रण का प्रयास किया है, वह फ्री स्पीच के साथ निजता और सुरक्षा के विषय में कठिन प्रश्न उठाता है। तकनीक एक मदद और बाधा दोनों ही है।”
फिर से यह प्रश्न उठता है कि क्या न्यूयॉर्क टाइम्स को भारत की आत्मनिर्भरता से समस्या है या फिर हिन्दू आधारित मजबूत राष्ट्रवाद से? क्या न्यूयॉर्क टाइम्स भारत को निर्बल और दुसरे देशों पर निर्भर देखना चाहता है? और उसे हिन्दू धर्म से क्या समस्या है? हिन्दू धर्म के प्रति न्यूयॉर्क टाइम्स अपनी घृणा भारत में कोविड कवरेज में दिखा चुका है। बार बार उसने भारत को नीचा दिखाने की कोशिश की और जानबूझकर ऐसी हेडिंग्स लिखीं जिससे भारत की प्रतिष्ठा को हानि पहुंचे।
एक सशक्त भारत से न्यूयॉर्क टाइम्स कितना चिढ़ता है, वह तो भारत के मंगल मिशन के विषय में प्रकाशित उसके कार्टून से ही साबित हो जाता है। पश्चिम की ईसाई मीडिया इस हद तक औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रसित है कि वह भारत को आत्मनिर्भर नहीं देख सकती और उस पर हिन्दू धर्म के मूल्यों के साथ विकसित होते तो कतई भी नहीं।
हालांकि हर समाचार पत्र के पास यह अधिकार होता है कि वह अपने दुराग्रह वाले पत्रकारों की नियुक्ति करे, अपनी हां में हां मिलाने वालों की नियुक्ति करे, हिन्दुओं से घृणा करने वालों की नियुक्ति करे, मोदी से घृणा करने वालों की नियुक्ति करे, यह पूरी तरह से न्यूयॉर्क टाइम्स का अधिकार है, परन्तु फिर यही कहना है कि आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मसीहा होने का और निष्पक्ष होने का ढोल बजाना बंद कर दीजिये। यह स्पष्ट रूप से स्वीकार कीजिये कि आप पूर्णतया हिन्दू घृणा में आकंठ डूबे हैं और एक आत्मनिर्भर भारत, जिसे आत्मनिर्भर बनाने में हिन्दू राष्ट्रवादियों का योगदान है, उससे आप देख नहीं सकते हैं और यही कारण है कि आपको विषवमन करना है!
अपने विज्ञापन से न्यूयॉर्क टाइम्स ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह आने वाले समय में कैसी पत्रकारिता करने जा रहा है और कितना जहर भरने जा रहा है!
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