भारत इन दिनों कोविड की दूसरी लहर का तो सामना कर ही रहा है, और इसके साथ वह एक ऐसे शत्रु का भी सामना कर रहा है, जो उस पर आक्रमण तो कर रहे हैं, परन्तु एक ऐसे आवरण में, कि उसे शत्रु भी नहीं कहा जा सकता है। इन दिनों भारत पर पश्चिमी पत्रकारिता के भी वार हो रहे हैं। हालांकि उसमें पत्रकार भारतीय और विदेशी दोनों ही सम्मिलित हैं।
एक दुष्प्रचार की आंधी चल रही है, जैसे भारत एक विफल देश है और अपने नागरिकों की रक्षा करने में पूर्णतया अक्षम है। यहाँ पर न ही ऑक्सीजन है और न ही वैक्सीन और हिन्दू नागरिक मारे जा रहे हैं। एक बेहद पिछड़े देश के जैसे प्रस्तुत किया जा रहा है। कोरोना के बहाने सामाजिक ताने बाने को छिन्न भिन्न किया जा रहा है। यद्यपि किसी भी देश के लिए चिकित्सीय सुविधा के अभाव में एक भी मृत्यु उसके लिए कलंक के समान है, परन्तु यह महामारी है एवं किसी भी महामारी के लिए किसी भी देश का स्वास्थ्य ढांचा तैयार नहीं होता है। परन्तु उसके बावजूद भारत संघर्ष कर रहा है। और इतना ही नहीं परसों रिकॉर्ड 25 लाख लोगों को वैक्सीन के डोज़ प्रदान की गयी थी!
पश्चिमी मीडिया किस प्रकार दुराग्रह से भरी हुई है, उसके विषय में न्यूयॉर्क टाइम्स के कुछ लेखों पर नजर डालेंगे तो पता चलेगा कि कैसे कैसे लेख प्रकाशित हुए हैं:
14 अप्रेल 2021 को प्रवासी मजदूरों के अपने गाँवों में लौटने को लेकर प्रकाशित हुआ “in india second wave of Covid-19 Prompts a New Exodus” और इसमें मुम्बई से लौटने वाले मजदूरों के बारे में खबरें थीं। इसीके साथ लॉक डाउन के दौरान होने वाली कठिनाइयों के विषय में भी बातें थीं। साथ ही पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष श्री के श्रीनाथ रेड्डी का भी वक्तव्य था, जो कि राष्ट्रीय कोविड 19 टास्क फ़ोर्स का हिस्सा है, कि “जिस गति से यह आगे बढ़ रहा है, वह हमें परेशान कर रहा है,”
इसीके साथ उसमें यह भी लिखा है कि कैसे सैकड़ों लोग पिछले वर्ष के लॉक डाउन के दौरान पैदल घर जाते समय मारे गए थे।
कुलमिलाकर यह पूरा का पूरा लेख भारत के प्रति कुंठा से भरा हुआ लेख था।
इसी के साथ कई लेख हैं, जो मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए लिखे गए हैं। मजे की बात यह है कि स्वास्थ्य, जो कि पूरी तरह से राज्य सरकार का मामला है, उसमें विदेशी मीडिया ने भी उत्तर प्रदेश को छोड़कर किसी भी राज्य सरकार को दोषी नहीं ठहराया है। ऊपर वाले लेख में भी राज्य सरकार अर्थात महाविकास अगाड़ी पर कोई भी प्रश्न न उठाकर केवल केंद्र सरकार पर ही प्रश्न उठाए हैं। ऐसे ही इसके कई लेख हैं और लगभग सभी लेख मोदी सरकार के विरोध में हैं।
बीबीसी की मानसिकता से भी सभी परिचित हैं और बीबीसी ने भी भारत में कोविड आपदा पर लगातार नकारात्मक रिपोर्टिंग की है। एवं केंद्र सरकार को ही एकमात्र दोषी ठहराया है।
इसी प्रकार एक वेबसाईट है South China Morning post, साउथ चाइना मोर्निंग पोस्ट! इस पर भारत की ही एक पत्रकार है सोनिया सरकार। उन्होंने एक लेख में भारत में ऑक्सीजन की कमी के लिए मोदी सरकार अर्थात कथित हिंदूवादी और पिछड़ी सोच वाली सरकार को ही दोषी ठहराते हुए भारत को पिछड़ा देश बता दिया है।
परन्तु एक बात यहाँ सोचने की है कि क्या केवल विदेशी मीडिया ही भारत को पिछड़ा बता रहा है या फिर भारत में काम करने वाला मीडिया भी? क्या भारत का वामपंथी और कांग्रेसी मीडिया भारत की एक सकारात्मक छवि प्रस्तुत कर रहा है? यह प्रश्न इसलिए उठा क्योंकि एक वेबसाईट ऑस्ट्रेलियाटुडे.कॉम.एयू में एक बेहद रोचक लेख प्रकाशित हुआ था कि भारत गिद्ध पत्रकारों के साथ भी लड़ाई लड़ रहा है, जो महामारी से अधिक अफरातफरी और निराशा फैला रहे हैं।
इस लेख में बरखादत्त की तस्वीर है जिसे लेकर बरखा दत्त ने इस वेबसाईट को भक्तों की वेबसाईट बता दिया था.
Hi @BDUTT ,@TheAustoday is an Australian News Portal just like the one you run in India called #MOJO.
We don't care who u support or oppose in ur reports with other media outlets, but calling us right-wing trolls is insane.
Looks like you can't handle criticism well.
Good day https://t.co/7fsdXgarbV— The Australia Today (@TheAustoday) May 10, 2021
और साथ ही न्यूयॉर्क पोस्ट की फर्जी खबर की भी तस्वीर है। दरअसल न्यूयॉर्क पोस्ट ने एक तस्वीर पोस्ट की थी कि कोविड के बढ़ते मामलो को लेकर भारत में लोग सड़कों पर दम तोड़ रहे हैं। मगर बाद में यह तस्वीर आन्ध्र प्रदेश में गैस लीक की निकली।
यह बात एकदम सच है कि भारत के ही पत्रकार हैं जो सबसे ज्यादा भारत या कहें मोदी सरकार का विरोध इस समय विदेशी मीडिया में कर रहे हैं। चाहे बरखा दत्त हों या फिर राणा अयूब! कट्टरपंथी पत्रकार राणा अयूब ने टाइम में अपने लेख में नरेंद्र मोदी सरकार जम कर कोसा है। उन्होंने एक राष्ट्रवादी सरकार के प्रति अपनी घृणा को छिपाने का कतई भी प्रयास नहीं किया है।
इसी के साथ एक लेख है, “मोदी को कैसे भुलाया जा सकता है?” भारत की कोविड 19 आपदा भारत के मध्य वर्ग को प्रधानमंत्री के खिलाफ कर सकती है। यह लेख टाइम पर है और इसे नीलांजना भौमिक ने लिखा है। इसमें स्पष्ट लिखा है कि भारत का मध्य वर्ग ही सबसे बड़ा प्रशंसक है मोदी का, वह प्रधानमंत्री मोदी का आधार है, और इस आपदा के बाद यही वर्ग प्रधानमंत्री मोदी से मुंह फेरेगा।
इसी लेख में लिखा है कि जिस प्रकार से उभरती हुई अर्थव्यवस्था एक नए समर्थक वर्ग को जन्म देती है, वही अर्थव्यवस्था जब बिगड़ने लगती है तो वह वर्ग छिटक जाता है। शायद यही बात संजय बारू ने अपनी पुस्तक के सम्बन्ध में साक्षात्कार के समय करण थापर से कही थी कि “ मोदी को हराने के दो ही तरीके हैं या तो विपक्ष से कोई ऐसा नेतृत्व उभर कर आए जो चुनौती दे या फिर आर्थिक स्थिति पूरी तरह से बर्बाद हो जाए। जैसे ही आर्थिक व्यवस्था तबाह होगी वैसे ही वह वर्ग जो अभी मोदी के साथ स्वयं को जोड़ रहा है, वह पूरी तरह से पृथक कर लेगा।“
शायद यही कारण है कि अब कांग्रेस शासित प्रदेश पूरी तरह से भारत की अर्थव्यवस्था को तबाह करने के लिए उतारू हो गए हैं। राहुल गांधी अपने हर ट्वीट में सरकार का विरोध तो कर ही रहे हैं साथ ही वह देश की छवि को भी तार तार कर रहे हैं। और कांग्रेस का मुखपत्र नेशनल हेराल्ड और नवजीवन में भी केवल और केवल नकारात्मक खबरें एवं विचार हैं। मात्र सरकार को अस्थिर करना ही जैसे एकमात्र कर्तव्य रह गया हो।
अत: यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत इस समय कोरोना से ही नहीं बल्कि एक गिद्ध पत्रकारिता एवं गिद्ध विपक्ष से लड़ रहा है, जिसका एक मात्र उद्देश्य राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न कर मात्र इस सरकार को गिराना है!
हालांकि वामपंथी मीडिया अब दुराग्रही विदेशी मीडिया के पक्ष में उतर आया है.
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