न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट में टिप्पणी की है कि हिंदू उस जगह पर पूजा कर सकते हैं जहां नमाज पढ़ी जाती है, क्योंकि हिंदुओं में पूजा आखिरकार उसी एक शक्ति तक पहुँचाती है।
हिंदू धर्म पर यह असम्बद्ध अवलोकन तब किया गया था जब मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ जिसमें जस्टिस एसए बोपड़े, डी वाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस अब्दुल नाज़ीर भी शामिल हैं, 134 वर्षीय राम जन्मभूमि (आरजेबी) मामले में ‘अखिल भारतीय श्री राम जन्मभूमि पुनारुधार समिति’ की ओर से पेश वरिष्ठ वकील पी एन मिश्रा की दलीलें सुन रही थी।
इससे पहले, पीठ आश्चर्यचकित हुआ कि “क्या बेथलहम में यीशु मसीह के जन्म जैसे मुद्दों पर सवाल उठाया गया है, और दुनिया की किसी भी अदालत ने इससे निपटा है?”
हिन्दू लोग, उनमें से वे जो कानून में पारंगत हैं, ने जस्टिस चंद्रचूड़ के विचारों का विरोध किया जो हिंदू धर्म में विभिन्न आध्यात्मिक मार्गों के समान महत्व के साथ घोर अन्याय करते हैं। उदाहरण के लिए, कई हिंदू मंदिरों में मूर्ति के रूप में एक देवता की पूजा करते हैं – उनके लिए, वह मूर्ति उनके भक्ति का एक अनिवार्य तत्व है जिसे केवल इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि वह देवता अन्ततः ब्रह्म (निर्गुण परम वास्तविकता / परम् आनंद) का प्रकटीकरण है।
कई लोग इस बात से आश्चर्यचकित हैं कि क्या न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने विचार किया कि क्या हिंदुओं को ‘नमाज़ पढ़ने वाली जगह’ में मूर्ति रखने की अनुमति दी जाएगी, या क्या यह इस्लाम के मूलभूत सिद्धांतों में से एक (मूर्ति पूजा – मुस्लिम समुदाय में जिसे सबसे बड़ा पाप समझा जाता है) के खिलाफ नहीं जाएगा? या क्या एक हिंदू ध्यान में बैठकर साधना कर सकता है, जबकि उसके आस-पास के मुसलमान नमाज पढ़ रहे हो?
प्रमुख हिंदू मान्यताओं की इस तरह की विकृति, आधुनिक भारत में और विशेष रूप से कानूनी और न्यायिक क्षेत्र में आश्चर्य की बात नहीं है, जैसाकि इस लेख में जे. साईं। दीपक द्वारा बताए कारणों को अवश्य पढ़ा जाना चाहिए –
“…सारे भारतीय संस्थानों में से भारतीय न्याय व्यवस्था की भारतीय विचारों, परंपराओं और संस्थाओं के प्रति दृष्टिकोण और मनोभाव, वास्तव में भारतीय जीवन-पद्धति के प्रति ही, एक औपनिवेशिक मानसिकता तथा ‘सुधार’ करने की प्रवृति को दर्शाते हैं, जो वस्तुत: मूलनिवासीयों को सभ्य बनाने के दंभपूर्वक कृपा दिखाते हुए हस्तक्षेप करने के लिए राज्नीतिक रूप से सही परिभाषा है, और ये स्पष्टतः कभी न खत्म होने वाला अभ्यास है।”
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ लुटियंस दिल्ली के वाम-उदारवादियों के लिए कुछ हद तक एक नायक हैं। “सच्चा उदारवादी”, “नायक”, “सही व्यक्ति”, “हमारे समय के न्यायाधीश”, “जबरदस्त और तीव्र”, “संवैधानिक नैतिकता को बचानेवाला”, “अग्रणी बहुसंख्यक विरोधी” – ये कुछ ऐसे तमगे थे जो पिछले साल एक फैसले के बाद जज साहब को पहनाए गए थे।
हार्वर्ड-शिक्षित न्यायाधीश की धर्म की बुनियादी बातों के बारे में अज्ञानता (उदारवादी, धर्मनिरपेक्ष हलकों में हिंदू धर्म के लिए द्वेष का एक परिणाम) उनके पिछले निर्णयों को देखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए आश्चर्य की बात नहीं होना चाहिए। सबरीमाला मामले के दौरान उन्होंने कहा था – “मंदिर में किसी देवता के पास कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है … मौलिक अधिकार व्यक्तियों के लिए हैं, देवता या मूर्ति के लिए नहीं।”
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ वर्तमान में 9 नवंबर, 2022 से शुरू होने वाले 2 वर्षों के लिए सीजेआई (CJI) बनने के लिए कतार में हैं।
(यह लेख एक अँग्रेज़ी लेख का हिंदी अनुवाद है )
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