समीक्षा लेखक: अनिकेत प्रताप सिंह
मेरे लिए इतिहास उस कालचक्र की तरह है जो अपनी अवधि पूरा होने तक घूमता है और हमे आगे आने वाले समय के लिए तत्पर करता है। क्योंकि इतिहास की विशेषता है उसका दोहराना।
आज से कुछ समय पहले मैंने गांधी हत्याकांड के ऊपर लिखी एक उल्लेखनीय साहित्यिक कृति पढ़ी जिसने मुझे आजादी के अमृत काल और भारत के विभाजन के समय घटित काफी सारी घटनाओं के बारे में अवगत कराया और इतिहास का वह पहलू रखा, जो हम सभी से छिपाया गया।
(है राम) को दो खंडों में उत्कीर्ण किया गया है, जिसमे पहला खंड (गांधी मृत्यु की ओर) और दूसरा खंड (मैं मरूंगा गांधी को) नाम से अंकित है।
पहला खंड गांधी हत्या की के पीछे के कारण और कुछ व्यक्तियों की जरूरत को पाठको के आगे रखता है, जो हमे अवगत कराता है की क्यों कुछ लोगो के लिए गांधी को मारना जरूरी समझा।
अध्याय की शुरूवात होती है गांधी के हट से, वह हट जिसने भारत के भाग्य को पूरी तरह बदल दिया और हमे एक ऐसा प्रधान दिया जिसने मुसलमानो की इच्छाओं को हिंदुओ से हमेशा ऊपर रखा, गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद पर खड़े हुए चार दावेदारों में से (सरदार वल्लभभाई पटेल, आचार्य कृपलानी और मौलाना आजाद) की महत्त्व को नकार कर नेहरू को अध्यक्ष पद पर स्थापित किया। जो आगे चल कर भारत के पहले प्रधानमंत्री बना।
नेहरू वह राजनेता बने जिन्होंने सत्ता हासिल करते ही मूर्खतापूर्वक कैबिनेट मिशन योजना के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और जिन्ना को मौका दिया की वह मुस्लिम लीग और भारत के मुसलमानो को एक जुट करके पाकिस्तान की मांग कर सकते हैं।
इसने (Direct Action Day) की नीव रखी और कोलकाता में रहने वाली गैर-मुस्लिम जनसंख्या पर मुसलमानो के द्वारा होने वाले कत्लेआम की शुरूवात की। बंगाल के मुख्यमंत्री सुहरावर्दी लाल ने कोलकाता में सभी मुस्लिमों को जिहाद करने की आजादी दी, जिसको समर्थन कम्युनिस्ट नेता ज्योति बसु ने भी दिया।
लेकिन गोपाल पाठा और जुगलचंद्र घोष के प्रतिरोध के चलते मुस्लिम लीग सफल ना हो सकी। दोनो वीरों ने हिंदुओं को सुरक्षित रखने में मदद की, साथ ही साम्प्रदायिक भीड़ या मुसलमानों को भी समाप्त किया।
आगे हम नोआखली में हुए हिंदू के नरसंगहार के बारे में पढ़ते है, और जानते है कैसे नेहरू के फैसले और आधिकारिक लेख के चलते हिंदू जनसंख्या पर हुए अत्याचार को भी झुटलाया गया। यह अध्याय हमे गांधी द्वारा लिखित या संशोधित (रघुपति राघव राजा राम) के दस्तकार की कहानी भी बताता है।
आगे के अध्यायों में हम भारत के विभाजन, नेहरू के मुसलमान प्रेम और गांधी का पाकिस्तान को 55 करोड़ देने की हट और भूख हड़ताल के बारे में पढ़ते है, जिससे हम पाठको को गांधी के राजनैतिक रूप जानने को मिलता है। मेरे लिए गांधी कभी भी क्रांतिकारी नहीं हो सकते और इस खंड के अंत तक यह सुनिश्चित हो गया।
दूसरा अध्याय हमे गांधी की हत्या के जुड़ी योजना की कहानी बताता है, और साथ ही नाथूराम गोडसे के व्यक्तित्व को समझाने का प्रयास करता है, वो भी तथ्यो और लेखों की सहायता से। गांधी हत्या के बाद हुए चितपावन ब्राह्मणों के नरसंहार की कथा आपको हिला कर रख देती है।
इस खंड में आगे हम गोडसे के आत्मसमर्पण, उनके और उनके साथियों के खिलाफ हुई कानूनी करवाही के बारे में पढ़ते है। आगे के अधय्याओ में हम कांग्रेस के घिनौने षड्यंत्र के बारे में अवगत होते है। कैसे कांग्रेस संघ परिवार और श्री विनायक दामोदर सावरकर जी को गांधी हत्या के झूठे मुकदमे में फसाता है। यहा तक की कांग्रेस नाथूराम गोडसे जी के बयान को भी प्रतिबंध कर देते है, ताकि लोग उसे पढ़ ना सके।
इस किताब का सबसे भयावर भाग है हिंदुओ के साथ हुए बुरे कर्मो को सरकार का छिपाना, और मुस्लिम लीग के लोगो का (वह लोग जो पाकिस्तान बनते देखना चाहते थे) उनका स्वतंत्र भारत में सरकार के बड़े पदों पर नियुक्त होना।
मेरे लिए किसी भी किताब में सबसे बड़ी ताकत है तथ्य और उन्हें रखने का तरीका जो दर्शाता है लेखक की निष्पक्षता। और (है राम) का यह तत्व यानी तथ्य एक अलंकार की तरह पूरी किताब में समाया हुआ है।
हर एक अध्याय को प्राथमिक तथ्यो की सहायता से पाठको के आगे रखा गया है, जो को सभी को सोचने पर मजबूर करेगा। गांधी के साथ काम करने वाले व्यक्तियों के लेखों को सम्मिलित करके किताब के लेखक श्री प्रखर श्रीवास्तव जी ने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को यथार्थ रूप से प्रस्तुत किया है।
यह किताब हर उस इंसान के लिए है जो इतिहास को इतिहास की तरह पढ़ना चाहता है।
पुस्तक: हे राम गांधी हत्याकांड की प्रमाणिक पडताल, प्रखर श्रीवास्तव द्वारा लिखित।