भारत की फिल्म आरआरआर के गाने नाटू नाटू को ऑस्कर अवार्ड मिला है। सोशल मीडिया पर लोग इसे लेकर अपनी प्रसन्नता व्यक्त कर रहे हैं और कहीं न कहीं वह लोग बॉलीवुड से भी यही कह रहे हैं कि अपनी नदों और मूल से जुड़े रहने पर ही आप विदेशों में सम्मान पा सकते हैं। इससे पहले इस गाने पर कई कलाकारों ने मंच पर प्रस्तुति दी थी,
आरआरआर उस समय की कहानी है जब भारत पर अंग्रेजों का शासन था। इसे लेकर पहले भी कई चर्चाएँ होती रही हैं और इसके अंतिम दृश्य को लेकर यह तक कहा जाता रहा है कि यह बहुत अधिक हिंदुत्व से भरी है। परन्तु इन सबके बाद भी इस फिल्म के गाने को ऑस्कर मिलना, कहीं न कहीं बॉलीवुड के लिए भी दर्पण है कि यदि मौलिकता एवं जड़ों से समझौता न किया जाए तो ऑस्कर मिल सकता है।
इसके साथ ही दएलीफेंटव्हिस्पर्स को भी डॉक्यूमेंट्री में ऑस्कर मिला है। यह भी भारतीय मूल्यों की ही कहानी है, जिसमें जीवों के प्रति प्रेम, जीवों के साथ सहजीवन के सहज सिद्धांत को दिखाया गया है।
इन दोनों फिल्मों में ही वह मूल्य हैं, जिन पर बॉलीवुड या कहें उर्दूवुड बात नहीं करता है। वह नहीं करना चाहता है। वह चाहता है कि हिन्दू मूल्यों पर निरंतर प्रहार करे, इधर उधर की कॉपी पेस्ट फ़िल्में बनाए और साथ ही वह फ़िल्में बनाएं, जिसके माध्यम से भारत पर ही प्रश्न उठाए जा सकें।
इन दोनों फिल्मों में वह संवेदनशीलता है, जो उर्दूवुड ही हालिया फिल्मों में नहीं दिखती है।
लोग प्रसन्नता व्यक्त कर रहे है और twitter पर ट्रेंड चल रहा है कि बधाई भारत!
इन फिल्मों की सफलता से क्या उर्दूवुड यह सन्देश ले पाएगा कि आदर हमेशा ही तब आता है जब अपने मूल्यों के साथ आगे बढ़ा जाता है। कभी भी आदर उससे नहीं आता जब आप अपने ही देश को बाहर के मंचों पर बदनाम करते हैं। हालांकि नाटू नाटू के अवार्ड जीतने के बाद बधाइयों की कतारें लग गयी हैं, जिनमें राहुल गांधी भी सम्मिलित हैं। उन्होंने अपने twitter हैंडल से बधाई देते हुए लिखा कि जिस डांस पर भारत ने डांस किया, वह वास्तव में वैश्विक हो गया।
परन्तु यह वही राहुल गांधी हैं, जो भारत की जनता द्वारा चुनी गयी सरकार के विरुद्ध विदेशों में जाकर विषवमन करते है एवं सरकार को नीचा दिखाने के लिए कुतथ्यों का सहारा लेते हैं। हाल ही में उनके कई वक्तव्य वायरल हुए थे, जो उन्होंने विदेश की भूमि पर भारत की सरकार के विरुद्ध बोले थे।
विरोध और आलोचना उचित है, और किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी होती है, परन्तु विदेश की धरती पर जाकर भारत की सरकार के विरुद्ध विषवमन करना, संवैधानिक संस्थाओं के विरुद्ध बोलना, यह कहीं न कहीं उचित नहीं है।
उर्दूवुड की फिल्मों में भारत एवं हिन्दू विरोध दिखता है, जैसे अभी हाल ही में पठान फिल्म में दिखा था! न जाने कितनी फिल्मों में दिखता है, और वह फिल्मे कालजयी प्रभाव डालने में अक्षम होती हैं, जैसा प्रभाव बाहुबली फिल्म ने आमजनमानस के दिल में बनाया है, वैसा प्रभाव “दंगल” जैसी फ़िल्में भी नहीं छोड़ पाती हैं, न ही कथित अमन का पैगाम देने वाली बजरंगी भाईजान आदि आदि!
ये दोनों ही अवार्ड कहीं न कहीं यही सन्देश देते हैं कि एजेंडा नहीं मौलिकता, संस्कृति एवं भारतीय मूल्य ही विदेशी भूमि पर कला के क्षेत्र में भारत का परचम लहराएंगे, अत: मूल की ओर कला जगत को लौटना ही होगा!