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Saturday, June 28, 2025

चार लड़कियों द्वारा बलात्कार के मामले में फंसाए जाने को लेकर लखनऊ में दिलीप कुमार ने की आत्महत्या: क्या महिलाओं द्वारा किए गए अपराधों को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा?

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से एक ऐसा मामला सामने आ रहा है जो अब विमर्श की मांग करता है और वह है महिलाओं का अपराधों की ओर मुड़ना एवं पुरुषों को अपना शिकार बनाना। हालांकि ऐसा नहीं था कि पहले महिला अपराधी नहीं होती थीं या फिर उनके लिए सजा नहीं होती थी। दंड होता था! जब हम मौर्य काल में रचित चाणक्य कृत अर्थशास्त्र में भी महिलाओं को दिए जाने वाले दंड के विषय में उल्लेख है। अर्थात उस समय भी यदि महिला अपराध करती थी तो दंड प्रदान किया जाता था।

फिर आज ऐसा क्यों है कि यदि महिला अपराध करती है और उसका निशाना पुरुष एवं परिवार होता है तो उस पर एक अजीब ठंडा विमर्श होता है। ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे विमर्श यह बन गया है कि महिलाओं को चूंकि पुरुषों ने इतना सताया है कि वह अब उनके विरुद्ध अपराध कर सकती हैं।

महिलाओं द्वारा शराब पीकर दुर्घटनाओं के कई मामले आते हैं, परन्तु उनकी चर्चा नहीं होती या फिर उन्हें अनदेखा कर दिया जाता है। परन्तु इस पर विमर्श नहीं होता कि आखिर वह क्या कारण हैं जिनके चलते लड़कियों में इस सीमा तक अपराध करने का साहस आ जाता है कि वह यह तक नहीं सोचतीं कि इस कदम के चलते क्या किसी और के घर का दीपक बुझ सकता है?

क्यों हिन्दू पुरुषों का जीवन उन्हें कुछ नहीं लगता है? लखनऊ में एक युवक ने चार लड़कियों के जाल में फंसकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली! जिस युवक ने आत्महत्या की, उसकी पांच दिन पहले ही सगाई हुई थी। उसे सगाई के बाद उसकी कथित गर्लफ्रेंड ने इतना ब्लैकमेल किया, इतना विवश किया कि उसने आत्महत्या कर ली।

पुलिस के अनुसार बिजनौर के शिवगुलामखेड़ा गांव निवासी दिलीप के पिता भंडारी लाल की तहरीर पर गर्लफ्रेंड सोनम व उसके साथियों के विरुद्ध ब्लैकमेल करने, धमकाने व आत्महत्या के लिए मजबूर करने का मुकदमा दर्ज किया गया है।

मृतक की पैंट में मोबाइल, पर्स और एक सुसाइड नोट मिला था। जिसमें लिखा था गर्लफ्रेंड ने मुझे जाल में फंसाया। उसकी तीन सहेलियां व तीन अन्य पुरुष दोस्तों ने मुझे ब्लैकमेल करना शुरू किया। पांच महीने से मुझसे रकम वसूल रहे हैं। धमकी दे रहे हैं कि शादी नहीं करने देंगे। दुष्कर्म का केस दर्ज करवाकर जेल भिजवाएंगे। लगातार रकम की मांग कर रहे हैं। इन सभी ने गैंग बना रखा है। तमाम लोगों को इसी तरह से अपने जाल में फंसाकर रकम वसूलने का खेल करते हैं। मैं त्रस्त हो चुका हूं। मुझे मरने पर मजबूर होना पड़ रहा है।

कई बार ऐसा हुआ है कि महिलाओं की रक्षा के लिए बने कानूनों के दुरूपयोग के चलते न्यायालय ने ही यह टिप्पणी की कि इन कानूनों का दुरूपयोग हो रहा है। वर्ष 2017 में ही दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक मामले में निर्णय देते हुए कहा था कि अभियोजन यह साबित करने में नाकाम रहा कि दहेज के लिए महिला को प्रताड़ित किया गया।

इसने कहा कि हाल के समय में सुसराल के सारे लोगों को आरोपी के तौर पर लपेट लेने की एक प्रवृत्ति विकसित हो गई है और यह इस मामले में भी दिखता है।

इतना ही नहीं पति की हत्या जैसे मामलों पर भी यह विमर्श नहीं बन पा रहा है। यह शोध का विषय होना ही चाहिए कि वह स्त्री जो कोमलता एवं प्रेम का पर्याप मानी जाती है, उसके भीतर इतनी क्रूरता कहाँ से आ जाती हैं कि वह अपने ही पति की हत्या कर दें। मध्यप्रदेश के आलीराजपुर से एक ऐसा मामला सामने आया था जिसमें एक महिला ने अपने मुस्लिम प्रेमी के इश्क में पागल होकर अपने पति की हत्या कर दी थी।

यह तो हुआ विवाहेतर संबंधों की बात को लेकर! एक ऐसा मामला कभी चर्चा में नहीं आया जिसमें आजकल की सबसे बड़ी विकृति अर्थात समलैंगिक सम्बन्धों से उपजे अपराध की कहानी थी। यह कहानी है राजस्थान की! जहां पर एक युवती ने अपने पति चरण सिंह की वर्ष 2020 में हत्या मात्र इसलिए कर दी थी क्योंकि वह समलैंगिक थी और उसके सम्बन्ध एक महिला के साथ थे।

उसने अपने पति को रास्ते से हटाने के लिए अपराध का रास्ता चुना। उसने अपने पति की हत्या की और फिर उसका निशान मिटाने के लिए इलेक्ट्रिक कटर से काटकर मार डाला। और उसके बाद शव को गटर में फेंक दिया, जिससे वह पकड़ी न जाए!

परन्तु वह पुलिस की पकड़ में आ गयी।

ऐसे अब रोज ही अपराध सामने आ रहे हैं, जिनमें महिलाएं या तो पुरुषों को ब्लैकमेल कर रही हैं या फिर उनकी हत्या में सम्मिलित हैं। क्या इन पर विमर्श नहीं होना चाहिए कि अंतत: ऐसा क्यों हो रहा है? क्या धर्म रहित फेमिनिज्म उन्हें पुरुषों का संपूरक नहीं बल्कि प्रतिस्पर्धी बना रहा है या फिर क्या कारण है?

क्या उन्हें फेमिनिज्म या आजादी का दानव इस सीमा तक अपनी पकड़ में ले चुका है कि वह अपने धर्म के पुरुषों को अपना शोषक, उत्पीड़क मानती हैं और परिवार एवं धर्म से बाहर या स्त्रियों के मध्य ही वह आजादी खोजती हैं, जो दरअसल केवल हिन्दू धर्म ही उन्हें दे सकता है।

समस्या विकट है और उसका समाधान इन मामलों पर विमर्श के साथ ही आएगा क्योंकि अब इस बात पर व्यापक चर्चा होनी आवश्यक है कि धर्म रहित, मूल्य रहित एवं कर्तव्य रहित आजादी की सनक वाला फेमिनिज्म हिन्दू पुरुषों एवं हिन्दू परिवार व्यवस्था के लिए कितना घातक हो चला है।  

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