कश्मीर में जहां अभी तक कश्मीरी पंडितों का मारा जाना जारी है, और घाटी में पोस्टिंग को लेकर कश्मीरी पंडित अभी तक आन्दोलन पर बैठे हुए हैं, तो वहीं अब जम्मू में भी हिन्दुओं पर हमले शुरू हो गए हैं। और जम्मू में राजौरी में हमला इसलिए और खतरनाक है क्योंकि उस गाँव को हिन्दुओं के लिए सुरक्षित माना जाता है। कश्मीर से हिन्दुओं को मारकर निकालने के बाद कहीं न कहीं अब आतंकियों की नजर जम्मू पर है और इस बात को लेकर हिन्दू कार्यकर्ता कई वर्षों से बात करते हुए आ रहे थे।
पुलिस के अनुसार 2 आतंकवादी आए और उन्होंने अपर डांगरी क्षेत्र में ३ घरों को निशाना बनाया। अब तक चार हिन्दुओं के मारे जाने का समाचार है। पुलिस द्वारा सर्च ऑपरेशन चलाए जा रहे हैं। उस पूरे क्षेत्र में पुलिस, सीआरपीएफ और सेना की टुकड़ियों को लगा दिया गया है और जल्द से जल्द उन दोनों ही आतंकियों का खात्मा कर दिया जाएगा
घटना के वीडियो दिल दहला देने वाले हैं। और यह इसलिए भी दिल दहला देने वाले हैं क्योंकि यह हत्याएं राम मंदिर के पास हुई हैं। जम्मू में हुई हैं, जिसे अब तक हिन्दुओं के लिए सुरक्षित माना जाता रहा है और वहां पर हिन्दुओं को उनके घर में जाकर मारा गया है। यह बहुत ही खतरनाक है। यह बहुत ही डराने वाला है।
जानकारी के अनुसार आतंकियों ने राजौरी गाँव के ऊपरी डांगरी गाँव के उन घरों में हमला किया है, जो पचास पचास मीटर के दायरे में स्थित हैं। पुलिस के अनुसार लगभग 7।15 पर शाम को हायर सेकंड्री स्कूल डांगरी के पास गोली बारी की गयी। इस गोलीबारी में एक महिला एवं बच्चे समेत हिन्दू परिवार के ७ लोग घायल हो गए थे, जिसमें सतीश सहित ४ लोगों की मृत्यु ही गयी और शेष लोगों का इलाज जीएमसी राजौरी में चल रहा है।
जो तस्वीरें आ रही हैं, वह दुर्भाग्य और पीड़ा की कहानी बताने के लिए पर्याप्त हैं। घरों के भीतर खून बिखरा है और तस्वीरों में अव्यक्त सन्नाटा पसरा है।
जम्मू में यह लक्षित हत्या है और जिसे कल संदिग्ध आतंकी हमला बताकर हमले को सामान्य बताने का प्रयास किया जा रहा था, अमर उजाला के अनुसार वह आतंकी हमला ही है और टीआरएफ ने उसकी जिम्मेदारी ली है।
वहीं इसमें प्रशासन की भूमिका पर भी प्रश्न उठ रहे हैं। क्योंकि तमाम प्रकार के खतरों के बावजूद भी जिला प्रशासन ने विलेज डिफेन्स ग्रुप अर्थात वीडीजी के सदस्यों के हथियार वापस ले लिए थे और खतरे की आशंका पहले से थी।
फिर ऐसे में प्रश्न उठता ही है कि प्रशासन द्वारा विलेज डिफेन्स ग्रुप के हथियार क्यों वापस लिए गए? क्या प्रशासन ने इन चिंताओं पर ध्यान नहीं दिया जो हिन्दू लगातार उठा रहे थे? इस घटना के विरोध में सोमवार को राजौरी बंद का आह्वान किया गया है।
हमले में मारे गए सतीश कुमार के भाई संजय कुमार ने बताया कि दो नकाबपोश आतंकियों ने मुंह पर लाल रंग का मास्क पहन रखा था। सबसे पहले उन्होंने आधार कार्ड देखे। पहचान होने के बाद उन्होंने पहले एक घर को निशाना बनाया और फिर आसपास के दो और घरों की तरफ अंधाधुंध गोलीबारी करते हुए भाग गए।
ऐसा भी नहीं है कि राजौरी में यह हाल फ़िलहाल की पहली घटना है। कुछ ही दिन पहले अर्थात १५ दिसंबर को ही सेना के अस्पताल के पास आतंकी हमला हुआ था। इसमें २ लोगों की मृत्यु हो गयी थी। इसके विषय में कहा गया था कि यह फायरिंग सेना के जवान ने की थी, तो इस पर लोगों ने हंगामा किया था, मगर बाद में सेना ने यह स्पष्ट किया था कि यह आतंकी हमला है। राजौरी के एसपी मोहम्मद असलम चौधरी के अन्सुअर मरने वाले लोग सेना में कुली का काम कर रहे थे। तो सुबह ६।१५ पर वे सैन्य शिविर के अल्फा गेट के पास आ रहे थे, तभी उन्हें गोली का निशाना बनाया गया। उन दोनों के नाम हैं कमल किशोर एवं सुरिंदर कुमार!
वर्ष के पहले दिन तीन आतंकी घटनाएं हुईं:
ऐसा नहीं है कि १ जनवरी को राजौरी में ही हिन्दुओं को मारने के साथ वर्ष का आरम्भ हुआ, कल ही श्रीनगर में ग्रेनेड हमला हुआ। आतंकवादियों ने सीआरपीएफ के बंकर पर ग्रेनेड फेंका था जो सड़क किनारे गिरा, जिससे एक नागरिक घायल हो गया। और उसे इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया।
पुलवामा में राइफल छीनी गयी।
आतंकी घटनाएं बढ़ रही हैं, परन्तु कश्मीरी पंडितों को कश्मीर में ही नौकरी के लिए बाध्य क्यों किया जा रहा है?
दिनों दिन आतंकी घटनाएं बढ़ रही हैं और हिन्दुओं को निशाना बनाकर मारा जा रहा है। परन्तु यह भी सत्य है कि कश्मीरी हिन्दू पीएम पॅकेज के कर्मचारी केवल अपने जीवन की रक्षा की मांग को लेकर सड़क पर हैं। वह इस मांग को लेकर सड़क पर हैं कि उन्हें कश्मीर में नहीं भेजकर जम्मू में नौकरी दी जाए।
३१ दिसंबर को ही एक पीएम पैकेज कर्मचारी की मृत्यु लीवर सिरोसिस से हो गयी थी और उनके पास इसलिए पैसे नहीं थे क्योंकि उनका वेतन पिछले कई महीनों से रोका गया है
हिन्दू अपने प्राणों की रक्षा के लिए सड़क पर है, परन्तु उनकी सुनवाई नहीं हो रही है। वह न्याय ही तो मांग रहे हैं और यह देखते हुए कि कश्मीर में आए दिन हमला हो रहा है, क्या उन्हें अपने जीवन की रक्षा का अधिकार नहीं है?
इसी विषय को लेकर धरने और प्रदर्शन हो रहे हैं। ग्लोबल कश्मीरी पंडित डायस्पोरा ने भी इस बात पर अप्रसन्नता व्यक्त की है कि कैसे उन अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन हो रहा है जो जीनोसाइड पीड़ितों के लिए बनाए गए हैं और यह भी कहा कि संविधान की धारा 21 यह सभी को अधिकार देती है कि कैसे एक सम्मानजनक जीवन जिया जाए!
जहाँ एक ओर बार-बार हिन्दुओं को निशाना बनाकर आतंकी घटनाएँ हो रही हैं और हिन्दुओं को निशाना बनाकर हमले की धमकियां दी जा रही हैं, तो ऐसे में कश्मीरी हिन्दुओं की आवाज क्यों नहीं सुनी जा रही है?
यह विडंबना ही है कि एक ओर सड़क पर कश्मीरी पंडित हैं, जो अपने लिए होमलैंड की मांग कर रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर एक अजीब जिद्द है कि उन्हें उन्हीं लोगों के बीच फेंके जाए, जो उनके खून के प्यासे हैं। पिछले दिनों एलजी मनोज सिन्हा ने भी हिन्दुओं के प्रति असंवेदनशीलता का परिचय देते हुए कहा था कि जो काम पर नहीं आएगा, उनका वेतन नहीं दिया जाएगा! ऐसे में प्रश्न उठता ही है कि आखिर हिन्दू क्या करे?
एक ओर प्रशासन है जो बार-बार फिर से जीनोसाइड के डिनायल पर अटका है अर्थात हिन्दुओं के विध्वंस को नकारने का आधिकारिक रूप से प्रयास कर रहा है तो वहीं जिहादी घटनाएं हैं, जो उस जीनोसाइड के खतरे को व्यक्त कर रही हैं। यह जीनोसाइड डिनायल की प्रवृत्ति ऐसा नहीं है कि कश्मीरी हिन्दुओं के प्रति ही है। लव जिहाद को लेकर भी यही प्रवृत्ति काम कर रही है।
राजौरी में किया गया यह हमला भी इसी जारी जीनोसाइड की एक कड़ी है, एक घटना है! परन्तु दुर्भाग्य की बात यही है कि इस जारी जीनोसाइड पर बात करने के स्थान पर प्रशासन कहीं न कहीं कश्मीरी हिन्दुओं को जिहादियों का शिकार ही बनाने पर तुला है और उन्हें खुद ही कातिलों की मांद में भेज रहा है, जो उनके क़त्ल के लिए हर दिन धमकी ही नहीं भेज रहे हैं, बल्कि उसे क्रियान्वित भी कर रहे हैं।
5 दिसंबर को ही कश्मीरी हिन्दुओं को धमकी दी गयी थी कि उनके पास उन सभी कर्मचारियों की सूची है जो कश्मीरी हिन्दू पैकेज के अंतर्गत नौकरी कर रहे हैं। इस पर कश्मीरी हिन्दुओं ने यह भी आपत्ति व्यक्त की थी कि आखिर इतने संवेदनशील डेटा को आतंकियों तक किसने पहुंचाया?
यह गोपनीय जानकारी आतंकियों तक कैसे पहुँची? यह भी एक प्रश्न है, परन्तु इसका उत्तर अभी तक नहीं मिला है! प्रश्न यह भी उठता ही है कि जो सूचना प्रशासन के पास गोपनीय रहनी चाहिए थी, वह आतंकियों के पास है और आतंकियों को बौद्धिक समर्थन भी तब प्राप्त हो जाता है जब कश्मीरी हिन्दुओं की पीड़ा को दर्शाने वाली फिल्म को सरकारी आयोजन में ही प्रोपोगैंडा फिल्म ठहरा दिया जाता है।
इस मामले को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने भी जांच की मांग की थी कि कैसे यह जानकारी लीक हुई? एलजी मनोज सिन्हा इस बात को बहुत सहजता से कह जाते हैं कि जो लोग काम पर नहीं लौटेंगे उन्हें वेतन नहीं मिलेगा, परन्तु वह इस बात को नहीं देख रहे हैं कि कैसे गोपनीय दस्तावेज भी आतंकी संगठन के पास हैं और वह लोग बेसब्री से कश्मीरी हिन्दुओं के घाटी में वापस आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
कब तक हिन्दुओं के जीनोसाइड के प्रति नकारने की प्रवृत्ति प्रशासन की ओर से चलती रहेगी, हर आतंकी घटना इस इस डीनाइल पर अट्टाहास करती है, और हर घटना से हिन्दुओं की पीड़ा और बढ़ जाती है, परन्तु दुर्भाग्य यही है कि इस पीड़ा की जड़ को अनदेखा किया जा रहा है!
यह लेख लिखे जाने तक एक बार फिर से राजौरी में हमला हुआ है, जिस घर में देर रात आतंकी हमला हुआ था, उसीमें बड़ा धमाका हुआ है
आईडी विस्फोट में एक बच्ची की मृत्यु हो गयी है
क्या अभी भी डिनाइल की प्रवृत्ति जारी रहेगी या फिर समस्या पर बात होगी या फिर एक बार फिर से यही एजेंडा दोहराया जाएगा कि “कश्मीर में केवल हिन्दू ही नहीं मुसलमान भी मरे हैं!” यहाँ पर प्रश्न यह नहीं है कि कौन मरा है, प्रश्न यह है कि मारा किसने है और किस मानसिकता ने मारा है? वह कट्टरवादी मानसिकता किसके विरोध में है, प्रश्न यही है! और जब तक इसका उत्तर नहीं खोजा जाएगा तब तक ऐसी घटनाओं पर क्षोभ एवं क्रोध बढ़ता ही रहेगा
Shame on Modi Govt, BJP Leadershi and Bhagwat of RSS which are engaged in appeasement of Minorities and ignore Hindu killings.
What do these Muslim extremists want?
Total elimination of the Hindus or conversion of entire Hindus?