गुजरात में द्वारका, जो हिन्दुओं के श्री कृष्ण द्वारा बसाई गयी नगरी है, जिसका नाम ही श्री कृष्ण के कारण है, जिसका प्रमाण आज से नहीं न जाने कब से हिन्दू धर्मग्रन्थ में है, उसी द्वारका में अवैध रूप से मजारें आदि बन गईं, जिन्हें अब तोडा जा रहा है!
प्रश्न यह कतई भी नहीं है कि तोडा जा रहा हैं, प्रश्न सबसे बढ़कर यह होना चाहिए कि आखिर जो नगरी भगवान श्री कृष्ण की नगरी है, वहां पर अचानक से ही तो यह मजारें नहीं बनी होंगी, अचानक से ही तो निर्माण नहीं हुए होंगे, अचानक से ही तो बेट द्वारका, जो द्वीप है, पर मुस्लिमों की बस्ती नहीं बस गयी होगी! जब यह अचानक नहीं हुआ, तो क्या इस निर्माण के लिए किसी को दोषी ठहराया जाएगा?
यह निर्माण उस गुजरात में हुए, जो गैर भाजपाई दलों के अनुसार “हिंदुत्व की प्रयोगशाला” है? यदि यह हिंदुत्व की प्रयोगशाला है, तो फिर ऐसे प्रदेशों में गैर मुस्लिमों का क्या हाल होता होगा, जो हिंदुत्व की प्रयोगशाला नहीं हैं? जो जानकारियाँ सामने आई हैं, वह चौंकाने वाली ही नहीं बल्कि डराने वाली हैं। वह विभाजन और कट्टरता का वह चित्र प्रस्तुत करती है, जो आम जनता संभवतया समझ ही न पाए।
इंडिया टीवी के रजत शर्मा ने भी एक विस्तृत लेख लिखा है और उन्होंने तमाम तरह के अवैध निर्माणों पर यही प्रश्न उठाया है कि आखिर ऐसा कैसे होता रहा?
और सबसे हैरान करने वाली बात यही है और सबसे अधिक बेशर्मी की बात यही है कि इस बात को लेकर वक्फबोर्ड अपना दावा करने के न्यायालय भी पहुँच गया था, तब गुजरात उच्च न्यायालय ने हैरानी व्यक्त करते हुए कहा था कि “कृष्ण नगरी में वक्फ का क्या हक़?”
पाकिस्तान से मात्र कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित बेट द्वारका में इस प्रकार अवैध निर्माण हो जाना, कितना बड़ा खतरा है, यह समझा जा सकता है, सोशल मीडिया पर लोगों ने बताया कि कैसे बेट द्वारका में हिन्दू समाज के लड़के लड़कियों को मुस्लिम युवक फंसाया करते थे।
रजत शर्मा लिखते हैं कि
ऑपरेशन ‘क्लीन-अप’ के दौरान बालापर, अभयामाता मंदिर, हनुमान डांडी रोड, ओखा नगर पालिका वॉर्ड ऑफिस, धींगेश्वर महादेव मंदिर और कई अन्य इलाकों में अवैध निर्माण को तोड़ा गया। अतिक्रमणकारियों ने सरकारी बंजर भूमि और वन भूमि को भी नहीं बख्शा था।
अधिकारियों ने बुलडोजर से दरगाह सिद्दी बाबा, दरगाह बाला पीर, दरगाह कमरुद्दीन शाह पीर, हजरत दौलत शाह पीर और आलम शाह पीर की मजार को ध्वस्त कर दिया। किसी भी तरह के हंगामे को रोकने के लिए गुजरात पुलिस, राज्य रिजर्व पुलिस और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के एक हजार से अधिक सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया था। पूरे ऑपरेशन की निगरानी देवभूमि द्वारका के जिला कलेक्टर, राजकोट रेंज के IG पुलिस, SP रैंक के 3 अधिकारियों, 9 DSP और 20 इंस्पेक्टरों ने की थी।
जब प्रशासन की ओर से इतने तैयारी की जाए तो यह सहज ही समझा जा सकता है कि कितनी बड़ी कार्यवाही होगी और कितना बड़ा कदम होगा! परन्तु उससे भी कहीं अधिक भयावह यह कल्पना है कि जब यह निर्माण हो रहा था, तब किसी ने ध्यान नहीं दिया। यही बात बार-बार परेशान करने वाली है कि कैसे प्रभु श्री कृष्ण के धाम में यह अवैध निर्माण होते रहे और लोगों की दृष्टि से यह अछूता रहा।
वहां पर अभी 9000 मुस्लिम हैं और मुश्किल से एक या डेढ़ हजार हिन्दू, और वहां से शेष हिन्दू अवैध गतिविधियों एवं मुस्लिमों द्वारा परेशान किए जाने पर जा रहे हैं!
क्या ऐसा हो सकता था कि जहाँ पर आम आदमी भी सहजता से न जा पाए, वहां पर निर्माण सामग्री अर्थात बिल्डिंग मैटेरियल पहुँचता रहा, और किसी ने भी नहीं देखा इसे?
पाकिस्तान से इतना निकट होते भी इस अवैध निर्माण पर इतने वर्षों तक दृष्टि कैसे नहीं गयी, यही वह काँटा है, जो लोगों के दिल में गहरे धंसा हुआ है। क्या इतने वर्षों तक शिकायतें नहीं पहुँची होंगी? यदि शिकायतें पहुँचीं थीं तो प्रतिक्रिया क्यों नहीं हुई? कोई कदम क्यों नहीं उठाया गया? और इस सम्बन्ध में गुजरात को हिंदुत्व की प्रयोगशाला कहने वाला विपक्ष भी इस बात से आँखें मुंदा रहा?
इतना ही नहीं धार्मिक नगरी बेटद्वारका, जो वर्षों तक धार्मिक स्थान रहा, वह अब तस्करी का केंद्र बन गया?
यह भी प्रश्न लोग उठाते हैं कि आखिर कैसे बिना कागज आदि के वहां पर लोगों को पानी आदि का कनेक्शन मिल गया? क्योंकि वहां पर रहने वाले 90% मुस्लिम अवैध नागरिक हैं!
प्रश्न यह भी है कि क्या कभी उन अधिकारियों पर कोई कार्यवाही की जाएगी, जिन्होनें इन अवैध निर्माण को बनने में सहायता की या आँखें मूंदे रहे? यदि यह “हिंदुत्व की प्रयोगशाला है” तो जहाँ पर हिंदुत्व की प्रयोगशाला नामक शब्दावली नहीं है, वहां पर अवैध कब्जों का क्या हाल होता होगा? यह सहज सोचा जा सकता है!
और सबसे अधिक तो उस निर्लज्जता पर हिन्दू क्रोध कर ही कर सकता है जो वह पूरा समुदाय दिखाता है, जो पहले मजारों, आदि के माध्यम से हिन्दू मंदिरों, तीर्थ स्थलों के आसपास अवैध निर्माण करते हैं और यह जानते हुए भी कि वह उनके नहीं है, उस पर अपना अधिकार बताने का प्रयास करते हैं!
लोग भी कह रहे हैं कि जागना ही होगा नहीं तो जिहादी मंदिरों, भूमि आदि पर कब्जा कर लेंगे:
जो पहले तलवार आदि के आधार पर होता था अर्थात जैसे औरंगजेब आदि ने मंदिर तोड़े थे, अब उन्होंने दूसरा तरीका खोजा है कि पहले हिन्दू तीर्थों के आसपास अपनी जनसँख्या बढ़ाना, अवैध निर्माण करना और फिर वक्फ बोर्ड के माध्यम से दावा करना! जैसा अभी तमिलनाडु में 1500 वर्ष पुराने मंदिर तक पर कर दिया था, जैसा हजारों वर्ष पुरानी उस बेट द्वारका पर, जो स्वयं कृष्ण के होने का जीवंत पर्याय है!
परन्तु वह ऐसा क्यों करना चाहते हैं?
क्या हिन्दू धार्मिक विमर्श के स्थानों के अतिरिक्त कोई और स्थान नहीं है?
क्या कभी यह बात ध्यान में आई है कि आखिर यह लोग हिन्दू धार्मिक विमर्शों वाले स्थानों पर ही कब्जा क्यों करते हैं? क्या राम मंदिर विध्वंस ही एकमात्र रास्ता था बाबरी मस्जिद का? या फिर क्या कृष्ण जन्मस्थान पर ही मस्जिद बनानी थी? या काशी विश्वनाथ का मंदिर ही तोड़ना था? या फिर कश्मीर से पंडितों को भगाना ही था? या फिर अब द्वारका पर वक्फ? कुछ कनेक्शन नहीं दिखता?
यह है विमर्श पर अधिकार! आने वाले समय के लिए पहचान पर अतिक्रमण! यह आपकी पूरी पहचान और पूरे अस्तित्व को ही नष्ट करना है। विमर्श पर अधिकार का अर्थ है, पूरी धार्मिक पहचान को मसलकर नष्ट करने का मामला है।
इसलिए बेट द्वारका पर किया गया अतिक्रमण हिन्दुओं की पहचान, हिन्दुओं के धार्मिक विमर्श पर बहुत बड़ा हमला था, क्योंकि इसमें मुस्लिमों ने अपनी पहचान उस स्थान पर थोप दी थी, जो वस्तुत: हिन्दुओं के सबसे बड़े तीर्थों में इसलिए है, क्योंकि वहां पर प्रभु ने स्वयं शासन किया था। वह प्रभु की लीलाओं का केंद्र थी, वह प्रभु के साक्षात अवतरण का प्रमाण है, तो यदि उस स्थल की पहचान ही जाली टोपी और मजार हो जाए तो स्थान की पहचान का विमर्श ही बदल जाएगा!
इतने बड़े षड्यंत्र को अंजाम दिया जाता रहा और हिन्दू समाज को पता भी नहीं चला कि उसके आराध्य के साथ इतना बड़ा खेल हो रहा है! कदम उठाए गए यह ठीक है, परन्तु अवैध निर्माण आदि होने देने के उत्तरदायी अधिकारियों को क्या कभी दंड मिलेगा?