कोरोना वायरस के कारण मची हुई तबाही एवं हाहाकार सभी ने देखा था और देखा था कि कैसे मीडिया ने इसे लेकर शोर मचाया था। मगर आज फिर से एक वायरस देश पर आफत बनकर टूटा हुआ है, परन्तु दुर्भाग्य की बात है कि इस वायरस को लेकर शोर नहीं हो रहा है। क्या इसलिए क्योंकि वह गाय को मार रहा है! भारत का गौ वंश वैसे ही पेटा आदि के निशाने पर रहा है और अब जब इस समय गौ वंश पर इतनी बड़ी आपदा आई है, ऐसे में पेटा जैसी संस्थाएं भी नहीं दिख रही हैं।
जिस राजस्थान में लम्पी वायरस का प्रकोप सबसे अधिक है, वहां के मुख्यमंत्री भी इस इस ओर से संवेदनहीन नजर आ रहे हैं, इतना ही नहीं, उत्तर प्रदेश में गौशाळा को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार को घेरने वाली प्रियंका गांधी भी लम्पी वायरस को लेकर समाधान को लेकर आतुर नहीं दिख रही हैं।
लोग बोल रहे हैं कि मुख्यमंत्री जी आप भारत जोड़ो यात्रा बाद में कर लेना, पहले इन गौ माताओं को बचा लें:
लोग केंद्र सरकार से भी कह रहे हैं कि वह गौ माता को बचाने के लिए उचित कदम उठाए:
वहीं उत्तर प्रदेश में भी इस वायरस के फैलने का खतरा है। उत्तर प्रदेश सरकार जांच के लिए पीलीभीत से इटावा तक 300 किलोमीटर लम्बी इम्यून बेल्ट बनाने की योजना बना रही है।
वहीं राजस्थान में अब लम्पी वायरस का असर दिखने लगा है। भास्कर के अनुसार अब तक 8 लाख से अधिक पशु संक्रमित हो चुके हैं एवं 38 हजार से अधिक की मृत्यु हो चुकी है और अब इसका असर दूध उत्पादन पर पड़ने लगा है। भास्कर के अनुसार अजमेर, श्री गंगानगर, बीकानेर, जोधपुर, सीकर, चुरू, बाड़मेर और नागौर डेयरी में दूध का आना कम हो गया है तो वही जयपुर समेत छ डेयरी में घी का उत्पादनया तो बंद हो गया है या फिर बहुत कम!
पशुओं के लिए कथित रूप से कार्य करने वाली संस्था पेटा का मौन रहना और इस विषय में कोई भी अभियान न चलाना अपने आप में बहुत बड़ी हैरानी की बात है क्योंकि पेटा ही है जो रक्षाबंधन पर गाय का प्रेम दिखाते हुए यह विज्ञापन चलाती है कि राखी कैसी बांधनी चाहिए।
यह वही पेटा है जो डेयरी उद्योग में कथित शोषण के लिए बार बार पौधों से निकलने वाले पेय को दूध के विकल्प के रूप में प्रयोग करने का अभियान चलाती है एवं उसका यह कहना है कि भारतीय डेयरी उद्योग में गायों का शोषण होता है, इसलिए उनका दूध नहीं लेना चाहिए। फिर इतनी बड़ी महामारी में, उसकी ओर से किसी भी संगठित स्वर का न आना विस्मय उत्पन्न करता है।
वहीं अब लोग और भी इस आपदा में सहायता को लेकर आगे आ रहे हैं।
परन्तु उपचार नहीं मिल पा रहा है, गौ माता तड़प तड़प कर मर रही हैं। यह जानते हुए भी कि गाय ही करोड़ों भारतीयों के जीवन का आधार हैं, न जाने कितने लोगों के घर का चूल्हा गाय के कारण ही जलता है, फिर भी इस वायरस को लेकर अभी तक किसी भी बड़े नेता का यह आश्वासन नहीं आया है कि क्या होगा?
क्या लम्बी वायरस को महामारी नहीं घोषित करना चाहिए? जब हर दिन सैकड़ों की संख्या में गौ माता मर रही हैं, तो क्या यही विषय इस समय सबसे अधिक महत्व का नहीं होना चाहिए? यह जानते हुए और समझते हुए कि गौ माता हिन्दुओं के आर्थिक एवं धार्मिक तथा आध्यात्मिक यात्रा का बहुत बड़ा आधार हैं। क्या उपचार के कई और विकल्प खोजकर इन्टरनेट पर एवं सोशल मीडिया पर उपलब्ध नहीं करने चाहिए?
यह कई प्रश्न ऐसे हैं, जो महामारी के समय सरकार से लोग पूछ रहे हैं, परन्तु दुर्भाग्य यही है कि उन्हें उत्तर नहीं मिल रहा है। पहले से ही गाय गौ तस्करों के निशाने पर है, गौ माता को जहर भरा चारा भी कोई ताहिर खिला देता है, और जिसके चलते अमरोहा में 61 से अधिक गोवंश की मृत्यु हो जाती है! हालांकि ताहिर को हिरासत में ले लिया गया था, परन्तु यह तमाम घटनाएं गाय के प्रति समाज एवं व्यवस्था की असंवेदनशीलता को ही प्रदर्शित करती हैं कि जो हिन्दू भावों से जुड़ा हुआ है, उसके साथ हो रहे अत्याचार एवं आपदा को कहीं न कहीं उतनी गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है, जितनी गंभीरता से लिया जाना चाहिए!
फिलहाल लम्पी वायरस से पीड़ित गौ माताओं के लिए लोग व्याकुल हैं एवं सरकार से मांग कर रहे हैं कि कुछ करें!