नई दिल्ली, 13 दिसंबर 2024 – सेंटर फॉर डेमोक्रेसी, प्लूरलिज़म, एण्ड ह्यूमन राइट्स (CDPHR) ने प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें बांगलादेश में अल्पसंख्यकों की दयनीय स्थिति पर चर्चा की गई। “बांगलादेश में अल्पसंख्यक संकट : अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए एक चेतावनी” शीर्षक से आयोजित इस कार्यक्रम में बांगलादेश में हिंदुओं के जातीय संहार पर प्रकाश डाला गया, जो 5 अगस्त 2024 को शेख हसीना के अवैध निष्कासन के बाद शुरू हुई।
CDPHR की ग्राउंड रिपोर्ट में हिंसा के चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए: हसीना के इस्तीफे के चार दिन के भीतर 190 लूटपाट की, 32 घर जलाए जाने की, 16 मंदिरों को ध्वस्त करने की और दो सामूहिक दुष्कर्म की घटनाएं सामने आईं। 20 अगस्त तक, मानवाधिकार संगठनों द्वारा हिंदुओं के खिलाफ 2,010 हिंसा की घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें 69 मंदिरों और 157 परिवारों पर हमले शामिल थे। 8 अगस्त को मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के शपथ ग्रहण के उपरांत भी अल्पसंख्यकों पर अत्याचार में कमी नहीं आई है।
जातीय संहार पर विश्व मौन
वक्ताओं ने बांगलादेश में हिंदुओं तथा अन्य अल्पसंख्यकों के नरसंहार पर वैश्विक चुप्पी पर चिंता व्यक्त की, इसे “मानवीय एवं सांस्कृतिक त्रासदी” करार दिया। CDPHR की अध्यक्ष डॉ. प्रेरणा मल्होत्रा ने अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा, “दुनिया बांगलादेश में हिंदुओं के व्यवस्थित जन संहार को मूक दर्शक बनकर देख रही है। कार्रवाई में विफलता मानवता की विफलता है।”
उन्होंने यह भी बताया कि राज्य द्वारा प्रायोजित इस हिंसा ने “एक एक हिंदू को पकड़ो, उन्हें मार डालो” जैसे नारों को सामान्य बना दिया। डॉ मल्होत्रा ने मंयमेसिंह में 35 नकाबपोश चरमपंथियों द्वारा एक हिंदू महिला पर हमले और एक हिंदू पत्रकार की लिंचिंग जैसे भयावह घटनाओं का भी उल्लेख और कहा, “ये उत्पीड़न की एकल घटनाएं नहीं हैं, बल्कि एक समुदाय को मिटाने के लिए चलाए जा रहे संगठित अभियान का हिस्सा हैं”। उन्होंने दुनिया भर की सरकारों से चुप्पी तोड़ने और निर्णायक कार्रवाई करने की सशक्त अपील की।
भारत के लिए सुरक्षा संबंधी निहितार्थ
इतिहासकार प्रो. कपिल कुमार ने बांगलादेश में उग्रवाद बढ़ने के भारत पर पड़ने वाले चिंताजनक भू-राजनीतिक प्रभाव की चेतावनी दी, “बांगलादेश में हिंदुओं के खिलाफ होने वाली क्रूरता सिर्फ एक मानवाधिकार संकट नहीं है, यह भारत की सुरक्षा के लिए भी खतरा है। 4,000 किमी की सीमा पर आतंकवादी लॉन्च पैड्स के साथ, हम इस बढ़ते खतरे की अनदेखी नहीं कर सकते।” उन्होंने निर्णायक कार्रवाई की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा, “यह नई कहानी नहीं है। 1946 के ‘प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस’ ( डिरेक्ट एक्शन डे) से लेकर आज तक, हिंदुओं का जनसंहार जारी है। अगर 1971 ने दुनिया को हमारी दृढ़ता दिखाई थी, तो अब समय है कि हम उन्हें फिर से उसकी याद दिलाएं।”
वैश्विक कार्रवाई की अपील
CDPHR की रिपोर्ट बांगलादेश में अल्पसंख्यकों और राजनीतिक विरोधियों पर संस्थागत उत्पीड़न का खौफनाक चित्रण करती है। वक्ताओं ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से हिंदुओं के जनसंहार को मानवता के खिलाफ अपराध के रूप में पहचानने और उनके जीवन और अधिकारों की रक्षा के लिए अविलंब कार्रवाई करने की मांग की।
डॉ. प्रेरणा मल्होत्रा की समापन टिप्पणी में वैश्विक उत्तरदायित्व की आवश्यकता को रेखांकित किया गया, जिसमें कहा गया कि विश्व का यह मौन जनसंहार के प्रति सहमति है।