spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
32.5 C
Sringeri
Thursday, March 28, 2024

सशक्त हिन्दू स्त्रियों को निर्बल बनाने का नैरेटिव: शकुन्तला

“रति, प्रीति, और धर्म सभी पत्नी के ही हाथों में होते हैं, अत: ज्ञानी को चाहिए कि वह अति क्रोधित होने पर भी पत्नी से कभी अप्रिय बात न करे”

“स्त्रियाँ आत्मा का सनातन और पवित्र जन्मक्षेत्र हैं; ऋषियों में भी क्या शक्ति है जो वह बिना स्त्री के प्रजा रच सकें?”

“जब पुत्र धरती के धूल में शरीर को सानकर पास आकर के पिता के अंगों से लिपट जाता है तो उससे और अधिक सुख क्या होगा?”

यह सभी वाक्य किसने और क्यों कहे, से महत्वपूर्ण है कि यह वाक्य किस ग्रन्थ में कहे गए हैं? जब भी हमारे सामने हमारे ग्रंथों की बात होती है तो उनमें स्त्रियों का रोना धोना, या फिर स्त्रियों पर अत्याचार दिखाया जाता है। मैं यह नहीं कहती कि अत्याचार नहीं होते थे, सुख और दुःख दो पहलू हैं और दोनों पहलुओं को ही हर ग्रन्थ में दिखाया गया है।

परन्तु यह जो ऊपर पंक्तियाँ हैं, वह महाभारत में शकुन्तला कह रही है, जब दुष्यंत उसे अपनाने से इंकार कर रहे हैं। दृश्य है कि वह भरत को लेकर राजसभा में आई है और आकर कह रही है कि राजा ने गन्धर्व विवाह किया था और अब वह उसे और उसके पुत्र को अपनाए और नाम दे।

राजा दुष्यंत उसी प्रकार राज धर्म की मर्यादा में बंध गए हैं, जैसे राम बंध गए थे। शकुन्तला शायद यह भी पूछना चाहती है कि प्रेम किसने किया था पुरुष ने या राजा ने? वह कहना चाहती हैं कि यह प्रेम एक राजा ने ही किया था, पुरुष दुष्यंत ने नहीं। क्योंकि यदि पुरुष दुष्यंत विवाह करता तो वह वचन न देता कि इस मिलन से जन्म लेने वाला पुत्र ही उसका उत्तराधिकारी होगा। यह प्रेम राजा ने ही किया था क्योंकि वही यह वचन दे सकता था कि इस मिल्न से पैदा होने वाला पुत्र ही उसका उत्तराधिकारी होगा। और आज वही राजा इस भरी राजसभा में असत्य का साथ क्यों दे रहा है?

भारत को ऐसी प्रश्न करती स्त्री बहुत पसंद है! वह डरती नहीं है, प्रश्न उठाती है, प्रतिप्रश्न उठाती है, अपने अधिकार के लिए स्वाभिमान के साथ लड़ती है।

शकुन्तला भी ऐसी ही स्त्री है, जिसने अपने पुत्र को बिना अपने पति की सहायता के इतना बलशाली बनाया है कि वह सिंह का मुंह खोलकर उसके दांत गिन सकता है?

कथा का पटाक्षेप किस प्रकार होता है यह नाटक के उस प्रकार से एकदम भिन्न है, जो कालिदास ने हम सबके सामने रखी।

हम सभी ने जीवन दर्शन देने वाला ग्रन्थ महाभारत हिंदी में भी नहीं पढ़ा, क्योंकि यह भ्रम फैलाया गया कि यह ग्रन्थ भाइयों में संघर्ष कराएगा। जबकि यह ग्रन्थ संघर्ष को रोकने वाला ग्रन्थ है। शकुन्तला से लेकर उत्तरा तक सशक्त स्त्रियाँ हैं। हर स्त्री का अपना संघर्ष है, हर स्त्री की अपनी कहानी है! जब शकुन्तला के चरित्र पर दुष्यंत प्रश्न उठाते हैं तो वह स्पष्ट कहती है कि

“हे राजन मेरु और सरसों के समान हम दोनों में भेद है, तुम धरती पर चलते हो और मैं आकाश में उड़ती हूँ। हे नृप, देखो मेरा प्रभाव कितना है; मैं महेंद्र, कुबेर और यम, वरुण इनके घरों में जा सकती हूँ।”

कितने स्पष्ट शब्दों में वह संकेत देती हैं कि वह मात्र प्रेम के कारण ही इस राज सभा में इस अपमान को सहन कर रही हैं। यह हमारी स्त्रियाँ थीं, आँखों में आँखें डालकर सत्य कहने वालीं, हर तरीके से गलती को दिखाने वाली।

शकुन्तला की कहानी का चित्रण पुन: किये जाने की आवश्यकता है, जिससे एकल माँ की जो विदेशी अवधारणा है, उस पर विराम लगे। शकुन्तला ने दुष्यंत से प्रेम किया था, और उसी प्रेम का प्रतिफल उनकी कोख में आया था। वह किसी पश्चिमी फेमिनिस्ट की तरह अपने बच्चे को लेकर उत्तरदायित्व का रोना नहीं रोती हैं, बल्कि अपने बच्चे को ऐसा बनाती हैं, जिस पर आने वाले समय को गर्व हो।

महाभारत की सभी स्त्रियाँ स्वयं में सशक्त हैं, फिर चाहे शकुंतला हों, उर्वशी हों, कुंती, द्रौपदी या फिर उत्तरा ही क्यों न हों। परन्तु जब हमारी लडकियां उन्हें पश्चिमी विचारों के चश्में से देखना शुरू कर देती हैं, तो वह उनकी स्थितियों पर रोने लगती हैं और यहीं से नैरेटिव की लड़ाई हम हारने लगते हैं।

नैरेटिव है शकुन्तला को उनके पति ने छोड़ दिया था, और वह बेचारी अकेली बच्चा पालती रही, जबकि सत्यता यह है कि शकुन्तला ने अपने पति और प्रकृति द्वारा प्रदत्त दायित्व का निर्वहन बहुत कुशलता से किया, जिसके कारण उनका पुत्र भरत वन में रहते हुए भी बलशाली और तेजस्वी हो सका।

दरअसल पश्चिम से आया हुआ जो विमर्श है उसमें प्रसव पीड़ा को दंड बताया गया है और प्रसव पीड़ा को स्त्री की सबसे बड़ी पीड़ा बताया है, जबकि भारत में हिन्दू दर्शन में शिशु अस्तित्व से जुड़ा हुआ है। हम हर प्राणी में परामात्मा देखते है और प्रसव पीड़ा को सृजन की पीड़ा मानते हैं। जैसे ही दर्शन सृजन की पीड़ा को, दंड की पीड़ा मानने लगता है, नैरेटिव बदल जाता है और सशक्त स्त्री शकुन्तला पीड़ित और बेचारी दिखने लगती है।

क्योंकि हमने अपनी नायिकाओं को वाम खेमे में धकेल दिया है और हमारी लडकियां इस्लामी और वामी चंगुल में फंस जाती हैं।  


क्या आप को यह  लेख उपयोगी लगाहम एक गैर-लाभ (non-profit) संस्था हैं। एक दान करें और हमारी पत्रकारिता के लिए अपना योगदान दें।

हिन्दुपोस्ट अब Telegram पर भी उपलब्ध है। हिन्दू समाज से सम्बंधित श्रेष्ठतम लेखों और समाचार समावेशन के लिए  Telegram पर हिन्दुपोस्ट से जुड़ें ।

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.