भोजशाला का निर्माण, महत्व और वैभव
भोजशाला विश्व का एक मात्र माँ वाग्देवी (सरस्वती) का अतिप्राचीन और अलौकिक मंदिर है। जहां कभी माँ वाग्देवी की प्रतिमा सुशोभित हुआ करती थी, वर्तमान मे वह प्रतिमा लंदन के एक संग्रहालय में सुरक्षित है! समय समय पर भारत सरकार द्वारा प्रतिमा को वापस लाने के प्रयास किए गए हैं, लेकिन अभी तक कोई सफलता नहीं मिली है।
भोजशाला का निर्माण तत्कालीन महान हिन्दू राजा भोज ने १०३४ आम युग(CE) मे करवाया था। भोजशाला केवल एक मंदिर न होकर उत्तर और मध्य भारत मे हज़ारों छात्रों का अध्ययन शाला हुआ करती थी। कभी भोजशाला मे ज्योतिष, दर्शन, चिकित्सा, योग आदि विषयों पर अध्ययन और अध्यापन की व्यवस्था थी यहाँ से निकले छात्रों ने दुनिया भर मे मानव कल्याण के लिए अपना योगदान दिया था। तकालीन समाज विशेषज्ञों ने भोजशाला को हिन्दू धर्म की सनातनी परंपरा के संवाहक के रूप मे स्थान दिया है। भोज नगर और भोजशाला को किसी भी हिन्दू राजा के द्वारा किए गए निर्माण कार्यों मे उत्क्रष्ठ माना गया है। यही नहीं, भोजशाला को एक समय ज्ञान और अध्यात्म की गंगोत्री तक कहा जाता था।
राजा भोज के बाद भी कई हिन्दू राजाओं ने शताब्दियों तक भोजशाला को सुरक्षित और समाज के लिए उपयोगी बनाए रखा। शिक्षा और धर्मार्थ के लिए यदि भारत के मध्य काल मे कोई स्वर्णिम युग रहा है, तो वह है राजा भोज का राज्य। महान कवि और लेखक बल्लाला ने तो पूरा “भोजप्रबंध” नामक ग्रंथ लिखा है जो की आज भी प्रबंध के ग्रंथो मे अतुल्य है। वैसे भी जिस स्थान पर माँ वाग्देवी विराजती हों वहाँ ज्ञान और दर्शन की सरिता बहना स्वाभाविक है।
Destroyed Hindu sculptures, Pillars, Sanskrit inscriptions,Motifs clearly establish that Bhojshala is a Hindu temple pic.twitter.com/TtO0QQEJlh
— Reclaim Temples (@ReclaimTemples) January 13, 2016
(हिन्दू मूर्तियां, खंभे, संस्कृत शिलालेख स्पष्ट रूप से स्थापित करते हैं कि भोजशाला एक हिंदू मंदिर है)
मुस्लिम आक्रांताओं के आक्रमण को झेलती भोजशाला
१३०५ आम युग(CE) अलाउद्दीन खिलजी का आक्रमण :
जैसा की हम सभी जानते हैं, सदियों से भारत की सांस्क्रतिक संप्रभुता, अखंडता और हिन्दू धर्म को आघात पहुंचाने के प्रयास हो रहे हैं, और अनवरत जारी हैं। इसी क्रम मे माँ सरस्वती के महान नगर भोज पर भी मुस्लिम आतंकियों द्वारा कई बार आक्रमण कर नष्ट करने के सफल-असफल प्रयास किए गए। १३०५ में खिलजी नामक मुस्लिम अत्याचारी ने भोजशाला पर हमला कर मंदिर प्रांगण को ध्वस्त कर दिया था। इस युद्ध मे राजा महाकालदेव और उनकी सेना की हार हुई थी। और लगभग ३०,००० हज़ार सैनिक मारे गए थे। कहते हैं कि १२००-१३०० छात्रों को इस्लाम न स्वीकारने पर खिलजी द्वारा मरवा दिया गया था। लेकिन हमारे स्वाभिमानी और वीर पूर्वजों ने विपरीत परिस्थितियों मे भी इस्लाम को स्वीकार नहीं किया। यह घटनाक्रम आज धर्म-परिवर्तित कर रहे हिंदुओं के लिए एक प्रेरणा हो सकती है।
१४०० आम युग(CE) दिलावर खान द्वारा सूर्य मार्तंड मंदिर का विध्वंश:
दिलावर खान नामक मुस्लिम राजा ने ही भोजशाला के प्रांगण में स्थित सूर्य मार्तंड मंदिर को ध्वस्त कर वहाँ एक दरगाह की स्थापना की, जिसका वर्तमान नाम ‘लत-मस्जिद’ दिया जा रहा है; यह स्थान वास्तविक रूप से सूर्य मंदिर है।
१५१४ आम युग(CE) कमाल मौलाना दरगाह का निर्माण :
महमूद शाह ने भोजशाला पर हमला पर एक बड़े भाग को दरगाह मे परिवर्तित कर दिया और वहाँ मुस्लिमों द्वारा उर्स का आयोजन किया जाने लगा। कमजोर हिन्दू समाज उस समय चल रहे षड्यंत्र को समझ न सका और भोजशाला पर अपने मौलिक अधिकार को खोता रहा। दुर्भाग्य से वर्तमान मे मुस्लिम भोजशाला मे जहां नमाज़ पढ़ते है, वो स्थान मूलत: सरस्वती मंदिर का एक कोना है।
१८१८ आम युग(CE) अंग्रेजों का मालवा पर कब्जा :
१७०५ में मराठाओं ने मुघलों को हराकर मालवा पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया था। तत्पश्चात अंग्रेजों ने मराठाओं को १८१८ में हराकर मालवा पर लगभग ६० सालों तक राज किया। इस दौरान अँग्रेजी शासन ने भोजशाला और उसके आसपास के कई मंदिरों और पुरातत्व की द्रष्टि से महत्वपूर्ण सम्पत्तियों को नष्ट करने का प्रयास किया। १९०२ में लॉर्ड करजन नामक अंग्रेज़ माँ वाग्देवी की अति महत्वपूर्ण प्रतिमा को चुराकर लंदन ले गया और लंदन के एक संग्रहालय मे रखवा दिया।
भोजशाला के लिए हिंदुओं का दुर्भाग्यपूर्ण सतत संघर्ष
भोजशाला के इतिहास में पहली बार १९३० में मुस्लिमों ने नमाज़ पढ़ने का प्रयास किया जिसे धर्मनिष्ठ और संगठित हिंदुओं ने असफल कर आने वाली पीढ़ी के लिए रास्ता दिखाने का कार्य किया। तत्पश्चात स्वतंत्रता के बाद १९५२ मे भारत सरकार द्वारा भोजशाला को पुरातत्व विभाग को संरक्षण के लिए सौंप दिया गया, लेकिन हिंदुओं को पूर्णरूपेण सौंपने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए।
१९५२ मे शासन के भोजशाला के प्रति नकारात्मक ढृष्टिकोण को देख राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अन्य हिन्दू संगठनों ने हिन्दू समाज में भोजशाला के लिए जन-जागरण और आंदोलन किया। उसी समय धार की जनता की मांग पर श्री महाराजा भोज वसंतोत्सव समिति की स्थापना की गयी। जन-जागरण और आंदोलन के अलावा समिति ने समय समय पर माँ वाग्देवी की प्रतिमा को लंदन से भारत लाने के लिए सतत प्रयास किए। विख्यात इतिहासकर पद्मश्री श्री वाकनकर ने तत्कालीन प्रधामन्त्री जवाहर लाल नेहरू से १९६१ में और श्रीमति इन्दिरा गांधी से १९७७ में मिलकर प्रतिमा को वापस लाने हेतु आग्रह किया, लेकिन दोनों की इच्छाशक्ति नहीं होने के कारण कोई सफलता नहीं मिली।
भोजशाला मामले मे एक दुखद मोड आया, जब मध्यप्रदेश की दिग्विजय सिंह सरकार ने अधिकाधिक रूप से १९९७ मे भोजशाला को मुस्लिमों के लिए खोल दिया और हर शुक्रवार को नमाज़ पढ़ने की मांग को स्वीकार कर लिया। यह निर्णय हिंदुओं के लिए घातक साबित हुआ और आज तक उसका परिणाम भुगत रहे है। जहाँ कभी पूरा समय भजन-कीर्तन और पूजा हुआ करती थी, वहाँ नमाज़ होने लगी और साजिशन हिंदुओं को साल में केवल एक ही बार, वसंत पंचमी पर पूजा तक सीमित कर दिया गया। हिंदुओं का एक समूह न्यायालय में भी गया लेकिन वहाँ से भी कोई समाधान नहीं निकला।
२००२ मे शांत माहौल बिगाड़ने के लिए कुछ तत्वों ने भोजशाला प्रांगण मे मौलाना कमाल का उर्स मनाने की योजना बनाई, जो की पुरातत्व विभाग के नियमों और न्यायालय के आदेश का भी उल्लंघन था, लेकिन इसके बावजूद राज्य शासन ने उर्स रोकने का कोई प्रयास नहीं किया। तब धार के हिंदुओं ने इसका विरोध करने का निर्णय लिया। पूरे धार मे धर्म सभाएँ और रेलियाँ निकाली गईं और वसंत पंचमी के दिन भोजशाला मे सामूहिक पूजन का कार्यक्रम तय किया, लेकिन जिला प्रशासन ने पक्षपात करते हुए हिंदुओं के पूजन कार्यक्रम को बाधित करने के उद्देश्य से केवल १ घंटे के लिए पूजन की अनुमति दी और बाकी समय उर्स और कब्बाली के लिए आरक्षित कर दिया। लेकिन धार और क्षेत्र के हिंदुओं ने प्रशासन के आदेश को न मानते हुए लाठीचार्ज के बावजूद भोजशाला में पूरे समय पूजा-हवन सम्पन्न किया। पुलिस की हिंसा में बड़ी संख्या मे पुरुष, महिलाएं और बच्चे घायल हुए।
२००३ में हिन्दू जागरण मंच और समस्त हिन्दू समाज ने वसंतोत्सव मनाने का निर्णय लिया। वसंत पंचमी के १५ दिन पहले से ही धर्म यात्राएं, सरस्वती पूजन और सभाएं की जाने लगीं। जिसमे अनुमानतः ९ लाख हिंदुओं ने विभिन्न पूजन कार्यक्रमों मे भाग लिया। फिर राज्य शासन ने वसंत पंचमी के दिन १८ फरबरी, २००३ को पूरे धार मे धारा १४४ लगा दी। राज्य शासन के इस आदेश के खिलाफ हिंदुओं ने आंदोलन किया, जिसमे हुई गोलीबारी-लाठीचार्ज मे २ हिंदुओं की म्रत्यु हो गयी और सैकड़ों घायल हो गए। हिंदुओं पर फ़र्ज़ी केस लाध दिया गए ताकि कोई भी हिन्दू भविष्य मे आंदोलन खड़ा न कर सके। हिंदुओं के सतत संघर्ष के कारण ही ८ अप्रैल २००३ को दिग्विजय सिंह सरकार ने भोजशाला को हिंदुओं के लिए खोल दिया और प्रतिदिन दर्शन और मंगलवार को पूजा-अर्चना के लिए अनुमति प्रदान की।
२००६ मे पुनः वसंत पंचमी शुक्रवार को आई। हिंदुओं ने भोजशाला मे नमाज़ नहीं पढे जाने और पूरे दिन पूजा-अर्चना की मांग की, लेकिन सरकार ने कडा रुख अपनाते हुए हिंदुओं की मांग को खारिज करते हुए यथा स्थिति (पूजा और नमाज़ एक साथ) बनाए रखने का आदेश दिया। इस आदेश के खिलाफ एक बार फिर से हिंदुओं ने मोर्चा खड़ा किया और पूरे दिन भोजशाला मे पूजा-अर्चना करने का संकल्प लिया। पूजा के दौरान पुलिस ने शासन के आदेश अनुसार हिन्दू पूजकों की भीड़ पर लाठीचार्ज किया, जिसमे कई हिन्दू घायल हुए।
ठीक चार वर्ष पहले भी २०१२ में भी राज्य शासन ने पूजा किए जाने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हिंदुओं पर वसंत पंचमी के दिन लाठीचार्ज किया। जिसमे माँ वाग्देवी की प्रतिमा और पालकी-यात्रा निकले जाने की मांग कर रहे हिंदू जागरण मंच के संयोजक नवलकिशोर शर्मा घायल हो गए थे, बाद में उन्हें राज्य शासन ने गिरफ्तार भी किया और मंदिर मे स्थापना के लिए लायी गयी माँ सरस्वती प्रतिमा को भी अधिग्रहीत कर लिया था।
भोजशाला- वर्तमान स्थिति
भोजशाला संघर्ष की वर्तमान स्थिति मे पूर्व से कोई बहुत ज्यादा अंतर नहीं आया है। आज भी हिंदुओं को नियमित पूजा करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। असामाजिक तत्वों द्वारा समय समय पर तनाव की परीस्थितियाँ निर्मित की जा रही हैं, ताकि हिन्दू भोजशाला पर अपना अधिकार छोड़ दें। शासन प्रशासन तुष्टीकरण और न्यायालय की आढ़ मे किसी तरह का निरपेक्ष निर्णय नहीं ले रहा है। कभी ज्ञान और वैभव का प्रतीक रही भोजशाला आज छद्म धर्मनिरपेक्षिता का उदाहरण मात्र बन कर रह गयी है।
आगामी १२ फरबरी, शुक्रवार के वसंत पंचमी पूजन और माँ सरस्वती की आरती के लिए एक बार फिर धार और सम्पूर्ण मध्यभारत के हिन्दू उठ खड़े हुए हैं। हिन्दू समुदाय की मांग है कि कम से कम वसंत उत्सव के दिन हिंदुओं को पूरे समय पूजा-अर्चना करने दी जाये और भोजशाला परिसर में नमाज़ न होकर कहीं और स्थानांतरित की जाये। वर्तमान शासकीय आदेश के अनुसार हिन्दू १० से २ बजे तक पूजा और मुस्लिम ३ से ६ बजे तक नमाज़ पढ़ सकेंगे। शासन का यह निर्णय किसी भी रूप मे व्यवहारिक नहीं है और ना ही धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप है। न तो हवन कुंड को ४ घंटे मे बुझाया जा सकता है, और ना ही हटाया जा सकता है। इससे उसकी पवित्रता भंग होती है। दूसरी तरफ मंच के पदाधिकारियों का कहना है कि ४ घंटे मे २-३ लाख पूजकों का पूजन करना संभव नहीं है, या प्रशासन इस बहाने हिन्दू श्रद्धालुओं को संख्या को कम करना चाहता है। वैसे भी मंदिर परिसर मे कहीं भी मस्जिद नहीं है, तो मुस्लिम भोजशाला मे नमाज़ करने क्यों आते है।
हिंदुओं ने अपनी सदभावना दिखाते हुए इस बार तय किया है, कि यदि शासन मंदिर के अंदर पूरे दिन पूजा की अनुमति नहीं देता है, तो कोई भी हिन्दू पूजन के लिए अंदर नहीं जाएगा और भोजशाला के बाहर ही सत्याग्रह और पूजन कार्यक्रम किया जाएगा। दूसरी तरफ इंदौर उच्चन्यायालय ने एक निजी याचिका पर शासन और पुरातत्व विभाग से पूंछा है कि किस आधार पर दोनों समुदायों के लिए पूजा और नमाज़ का समय तय किया है? जिसका जवाब शासन द्वारा ११ फरबरी तक दिया जाना है।
आशा व्यक्त कि जा रही है कि राज्य सरकार और केंद्र का पुरातत्व विभाग जल्दी ही निरपेक्ष होकर उचित निर्णय लेगा और हिंदुओं की ५० वर्षो से चली आ रही मांग को पूर्ण करेगा। फिलहाल शांतिपूर्ण रूप से वसंत पंचमी उत्सव मनाने के लिए धार के नागरिकों से अपील।
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[…] the most celebrated ruler of the Paramāra dynasty. However, Bhojshala and the city of Dhar were ransacked by successive Muslim invaders and a mosque/dargah established in the erstwhile Bhojshala complex. […]