भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री कल्याण सिंह का आज लखनऊ में निधन हो गया। वह 89 वर्ष के थे और पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। उनका जन्म 5 जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ जिले की अतरौली तहसील के मढौली गाँव में हुआ था उनकी पत्नी का नाम रामवती था। भाजपा के प्रति वह आरम्भ से ही समर्पित रहे थे। वर्ष 1962 में जनसंघ ने उन्हें अतरौली से ही चुनावी रणनीति का हिस्सा बना दिया। परन्तु वह पराजित हुए पर उन्होंने अपना चुनावी क्षेत्र नहीं छोड़ा। वह हर कार्य को करते थे।
उसके बाद कल्याणसिंह ने वर्ष 1967, 1959 1974 और 1977 तक लगातार चुनाव जीता। 1980 में वह कांग्रेस के अनवर खान से हार गए परन्तु फिर उसके बाद वह फिर से 1985 पर भाजपा के टिकट पर जीत गए।
उन्हें हिन्दू हृदय सम्राट कहा जाता है। हिन्दू हृदय सम्राट के पीछे की कथा भी बहुत अद्भुत है। 1984 में भाजपा के हाथों में राम मंदिर का मुद्दा आया और अयोध्या जी में राम मंदिर की स्थापना के लिए लोग आगे आने लगे। वर्षों की दासता के बाद जैसे हिन्दुओं के हृदय में अपने आराध्य प्रभु श्री राम की जन्मभूमि को स्वतंत्र कराने की भावना बलवती हो गयी थी। और प्रभु श्री राम के लिए कारसेवा आरम्भ हो गयी। उसी बीच 30 अक्टूबर 1990 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवा दी थीं और उसके बाद मामला और भड़क गया।
लोगों के बीच गुस्सा और भड़कने लगा था और उसी बीच वर्ष 1991 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव हुए। भाजपा हिन्दुओं की पार्टी के रूप में स्थापित हुई और भाजपा को जनता ने खुले हाथों से 221 सीटें जीतकर दीं। और फिर वह दिन आया जिस दिन का लोगों को इंतज़ार था। उस दिन के बाद भारत की राजनीति पहले जैसी नहीं रहनी थी। लोग न जाने कहाँ कहाँ से मंदिर निर्माण के लिए जुटने लगे थे और फिर आया 6 दिसंबर 1992, जिस दिन कारसेवकों की भीड़ ने उस गुम्बद को ढहा दिया, जो राममंदिर पर काबिज था।
उन्हें हिन्दू हृदय सम्राट इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अपने पूर्ववर्ती मुलायम सिंह यादव के जैसे कारसेवकों पर गोली नहीं चलाई थी। उन्होंने मस्जिद के विध्वंस के तुरंत बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया और मीडिया के सामने अपनी बात रखते हुए कहा था कि
बाबरी मस्जिद विध्वंस भगवान की मर्जी थी। मुझे इसका कोई अफसोस नहीं है। कोई दुख नहीं है। कोई पछतावा नहीं है। ये सरकार राममंदिर के नाम पर बनी थी और उसका मकसद पूरा हुआ। ऐसे में सरकार राम मंदिर के नाम पर कुर्बान। राम मंदिर के लिए एक क्या सैकड़ों सत्ता को ठोकर मार सकता हूं। केंद्र सरकार कभी भी मुझे गिरफ्तार करवा सकती है, क्योंकि मैं ही हूं, जिसने अपनी पार्टी के बड़े उद्देश्य को पूरा किया है।’
एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि ”नहीं, मैंने कारसेवकों पर गोली चलवाने का पाप नहीं किया। कोई नहीं बंटा है। ये राजनीतिक लोग बांट रहे हैं। लोग नहीं बंटे हैं, आज भी लोग नहीं बंटे हैं। मेरा कहना इतना ही है कि ढांचा नहीं बचा मुझे कोई गम नहीं है इस बात का। और ढांचे के टूटने का न मुझे कोई खेद है, न पश्चाताप है और न ही प्रायश्चित है। नो रिग्रेट, नो रिपेंटेंस, नो सॉरो, नो ग्रीफ।”
इसी साक्षात्कार में उन्होंने 6 दिसंबर को गर्व का दिवस बताते हुए कहा था कि
”इच्छा तो राम मंदिर की थी। ढांचा टूटने के बाद बहुत सारे लोग कहते हैं 6 दिसंबर 1992 की घटना राष्ट्रीय शर्म की बात है। मैं कहता हूं 6 दिसंबर 1992 की घटना राष्ट्रीय शर्म का नहीं राष्ट्रीय गर्व का विषय है। 6 दिसंबर 92 को तो ढांचे की अंतिम पुण्यतिथि थी। ढांचा टूटने के आसार कब शुरू हो गए थे? जब वहां रामलला की मूर्ति की स्थापना हुई थी। किसका शासन था दोनों जगह? कांग्रेस का। उसके बाद फिर ताला खोला गया रामलला की पूजा अर्चना के लिए। खुदा की इबादत के लिए नहीं। सरकार किसकी थी? केंद्र में कांग्रेस की, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की। उसके बाद वहां शिलान्यास हुआ। शिलान्यास मस्जिद का नहीं हुआ, शिलान्यास हुआ मंदिर बनाने का। किसके जवाने में हुआ? सरकार कांग्रेस की थी केंद्र में, सरकार कांग्रेस की थी उत्तर प्रदेश के अंदर।”
आज ऐसे कल्याण सिंह का निधन हो गया है, हिन्दुओं के लिए उठने वाला एक और स्वर कम हुआ है, परन्तु उन्होंने अपनी सरकार को गिरने दिया, मगर कारसेवकों पर गोली नहीं चलाई थी और यही बात उन्हें हिन्दू हृदय सम्राट बनाती है कि चाहे कुछ हो जाए, राम भक्तों पर गोली नहीं चलेगी!
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