यूपीए शासन के दौरान भ्रष्टाचार से लिप्त दिल्ली सौदे बनाने की गहरी दलदल में डूबा था । उस दौरान रडिया गेट कांड 2010 से स्पष्ट हो गया कि कैसे मीडिया, नेता, नौकरशाह और कंपनिया, एक दूसरे को पारस्परिक रूप से लाभप्रद बनाने की साज़िश का हिस्सा थे। इस दलदल की गहराई दिनप्रतिदिन स्पष्ट होता जा रही है । यह वही गठजोड़ (जिसे हम लुटियंस दिल्ली के रूप में देखतें हैं) है जो अब परेशानी महसूस कर रहा है, क्योंकि वर्तमान सरकार ने काफी हद तक इन सत्ता के दलालों के लिए सरकारी गलियारों का उपयोग बंद कर दिया है, और कुकर्मों को अंजाम देने के लिए कानून को अपनाया है। यह एक बड़ा कारण है जेएनयू, दादरी, चर्च ‘हमलों’, याकूब मेमन, ‘असहिष्णुता’ आदि विनिर्मित आक्रोशों के पीछे।
एक ट्विटर उपयोगकर्ता @Kabirsinghn जो एक वकील और शोधकर्ता हैं, और मुख्य रूप से भारत और दिल्ली उच्च न्यायालय के सुप्रीम कोर्ट में प्रदर्शित होने के मामलों से जुड़े हुए है, बताते हैं कि किस तरह सुपर मॉडलस को यू पी ए शासन में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की निविदाओं को हड़पने के लिए जाल के रूप में इस्तेमाल किया गया।
वह कहते हैं-
“एक महिला पांच साल पहले दिल्ली सर्किट में बहुत लोकप्रिय हुआ करती थी। उन्हें नियमित रूप से निविदाओं के लिए निर्णय लेने में शामिल अधिकारियों के साथ होटल में भेजा जाता था, और वह पुरुष के शरीर पर लिपस्टिक के साथ लिखकर बताती थी कि वह वापस आएगी, अगर टेंडर उसके मालिक की कंपनी को दिया जायेगा।
मोदी सरकार ने इन सत्ता के दलालो के लिए नॉर्थ ब्लॉक (सचिवालय इमारत का हिस्सा जहां वित्त मंत्रालय बैठता है) को सील कर दिया है, और इसलिए प्रणाली के अंदर और अधिक दुश्मन पनप गए है। एक व्यक्ति ने 7 साल पहले, दक्षिण भारत में पवन चक्की परियोजना के लिए नकदी में 32 करोड़ रुपये का भुगतान एक केंद्रीय मंत्री को किया था । अब चीजें इतनी आसान नहीं हैं।
दिल्ली के छतरपुर इलाके में विवाह के लिए बहुत प्रसिद्ध फार्म हाउस मुख्य रूप से “लेडी भुगतान” के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है जो अब २०१४ (मोदी सरकार के चुनाव के बाद) से सूखा पड़ा है।”
कानून की जकड हुई और मजबूत
इस OpIndia लेख में कुछ उच्च और ताकतवर लोग जो प्रणाली का दुरुपयोग कर रहे थे, उनके विरुद्ध वर्तमान प्रशासन की क़ानूनी कार्यवाही का वर्णन है। क्या यही वजह है कि गैर मुद्दों पर आक्रोश प्रतिदिन तीखा हो रहा है?
जांच के दायरे में विदेशी धन पोषित गैर सरकारी संगठन – विदेशी एजेंडा का प्रचार?
गैर सरकारी संगठनों को विदेशी एफसीआरए (FCRA – विदेशी अंशदान नियमन अधिनियम) के तहत उनके द्वारा प्राप्त धन के लिए जवाबदेह बनाने के लिए अभियान के हिस्से के रूप में, वर्तमान सरकार ने वार्षिक रिटर्न और एफसीआरए के अंतर्गत अन्य उल्लंघन होने के कारण जून 2015 में 15,000 से अधिक गैर सरकारी संगठनों के एफसीआरए लाइसेंस रद्द कर दिए है । इस का असर कुछ प्रमुख गैर सरकारी संगठन और अन्य संस्थाओं जैसे – ग्रीनपीस इंडिया, आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया की NGO कबीर, नेहरू युवा केन्द्र संगठन (NYKS), जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू), सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन आदि पर पड़ा।
गृह मंत्रालय (एमएचए) ने 16 विदेशी आर्थिक सहायता एजेंसियों की एक सूची भी, राष्ट्रीय हित, सांप्रदायिक सौहार्द और सुरक्षा के लिए चिंता का हवाला देते हुए, जारी की है। इस सूची के अनुसार धन केवल गृह मंत्रालय की मंजूरी के बाद प्राप्तकर्ताओं के खातों में जमा करने की अनुमति दी जाती है – यह सुनिश्चित करने के लिए की प्रत्येक लेनदेन पर मंत्रालय की निगरानी रहे।
इनमें से सबसे प्रमुख विवादास्पद एजेंसी फोर्ड फाउंडेशन, एक अमेरिकी आधारित अनुदान एजेंसी, है। गुजरात सरकार की ओर से आरोप लगाया गया है कि यह फाउंडेशन देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का काम करती है और इसका सीआईए (CIA) लिंक है और यह अमेरिका राष्ट्रीय हित को दुनिया भर में बढ़ावा देने के लिए अग्रसर है। इस फाउंडेशन ने 1952 में नई दिल्ली में अपना पहला विदेशी कार्यालय खोलने के बाद से भारत में $50 करोड़ से भी अधिक का निवेश किया है।
हाल ही में, ‘लॉयर’स कलेक्टिव’ नाम की वकील इंदिरा जयसिंह द्वारा स्थापित एक गैर सरकारी संगठन को गृह मंत्रालय द्वारा एफसीआरए प्रावधानों का उल्लंघन करने के लिए नोटिस भेजा गया है। इंदिरा जयसिंह सोनिया गांधी की विश्वासपात्र है और 2009 में उन्हें अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया था। संयोग से जयसिंह गुजरात की ‘सामाजिक कार्यकर्ता’ तीस्ता सीतलवाद का प्रतिनिधित्व कर रही है जिनकी एनजीओ को एफसीआरए प्रावधानों का उल्लंघन करने के लिए सीबीआई जांच का सामना करना पड़ रहा है। जयसिंह के पति आनंद ग्रोवर, एक प्रसिद्ध वकील हैं और उन्होंने ने हाल ही में 1993 में मुंबई ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन की मौत की सजा रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
नरेंद्र मोदी सरकार ने लुटियंस बंगलो में अवैध रूप से रहने वालों की रिकार्ड संख्या को बेदखल किया
Real reason behind Rising Intolerance in Modi’s India..Poor people were being forced to evict their Lutyens Bungalow pic.twitter.com/gasEdG2hC0
— Paresh Rawal (@Babu_Bhaiyaa) March 9, 2016
मुफ्तखोर, नेताओं और मिश्रित चापलूसों की एक आश्चर्यजनक संख्या देश की राजधानी के बीचों बीच स्तिथ लुटियंस बंगला जोन (LBZ) में अवैध निवासी हैं। इन अनधिकृत निवासियों से घर खाली कराने में मोदी सरकार के तहत तीन गुना वृद्धि हुई है। हैरानी की बात यह है की 1,207 घर अब भी अनधिकृत कब्जे में हैं – जिनमें से 27 पत्रकारों के पास हैं। शायद कानून के इस तरह लाघू होने पर ही समाज के एक विशिष्ट वर्ग में हलचल सी मच गयी है।
विजय माल्या की यह ट्वीट दर्शाती है की सोनिया राज में भारत में किस तरह की प्रणाली चल रही थी – जहाँ धोकेबाज़ और घोटलेबाज़, राजनेताओं, मीडिया, और बाबुओं की चुप्पी खरीद लेते थे।
Let media bosses not forget help, favours,accommodation that I have provided over several years which are documented. Now lies to gain TRP ?
— Vijay Mallya (@TheVijayMallya) March 10, 2016
Is he hinting that he offered favours to media bosses so that they don’t cover his scams in media?? https://t.co/YIlRxBQ5HA
— Raju Das | ৰাজু দাস (@rajudasonline) March 11, 2016
(लता पाठक द्वारा हिंदी अनुवाद)