spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
27.5 C
Sringeri
Wednesday, November 13, 2024

हिजाब या अलगाववादी षडयन्त्र

भारतीय संविधान के अनुसार प्राथमिक शिक्षा सबके लिए अनिवार्य है। किन्तु इस अनिवार्यता के बावजूद दुर्भाग्यवश स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में भी देश की कुल जनसंख्या का 36.90 फीसदी हिस्सा आज भी निरक्षर है। मुस्लिमों में तो यह निरक्षरता दर 42.7 फीसदी है। यदि महिलाओं की बात करो तो ये आंकड़े और भी भयावय हैं।  देश की 66 प्रतिशत मुस्लिम महिलाएं आज भी निरक्षर हैं। उच्च शिक्षा में तो इनकी भागीदारी मात्र 3.56 प्रतिशत ही है जो कि अनुसूचित जातियों के अनुपात 4.25 प्रतिशत से भी कम हैं।

क्या कभी सोचा है कि ये सब आखिर क्यों है? स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात एक तो हमारे राजतन्त्र की शिक्षा के प्रति उदासीनता, दूसरा संसाधनों का अभाव तथा ऊपर से धार्मिक कट्टरता ने मुस्लिम महिलाओं की साक्षरता दर को सबसे नीचे रखा। पहले तो बेटियों को घर से ही नहीं निकलने दिया जाता। दूसरा उन पर बुर्के को लाद दिया जाता है। अकेले घर से बाहर पाँव नहीं, मोबाइल नहीं, शृंगार नहीं, मनोरंजन नहीं, पर-पुरुष से बात नहीं, इत्यादि अनेक फतवे थोप दिए जाते हैं। जिसके कारण पहले तो उनके परिजन ही विद्यालय नहीं भेजते और यदि ऐसा हो भी जाए तो ये बंधन बेटियों के पाँवों को बेड़ियों की तरह जकड़े रहते हैं।

‘बेटी-बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान के अंतर्गत वर्तमान केंद्र सरकार ने अपनी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से बेटियों की शिक्षा के लिए विशेष प्रयास प्रारंभ किए। जिनका प्रतिफल बेटियों की सुरक्षित व सहज शिक्षा के रूप में सामने आ रहा है। आज चारों ओर के परीक्षा परिणामों पर नजर डालें तो बेटियाँ सर्वाधिक अंक प्राप्त कर मेरिट में सबसे ऊंचे पायदान पर दृष्टिगोचर हो रही हैं। यह एक सुखद अनुभूति तो है किन्तु अभी जब हम लक्ष्य से कोसों दूर हैं तभी अचानक उन बेटियों की शिक्षा पर अचानक कुछ कट्टरपंथियों का पुन: आक्रमण पीड़ादायी लगता है।

अचानक विरोध क्यों

2022 के प्रथम माह में ही कर्नाटक में उडुप्पी के एक छोटे से स्कूल में प्रारम्भ हुआ अनावश्यक विवाद, जिहादियों या यूं कहें कि कुछ कट्टरपंथियों की हट के चलते कुछ ही दिनों में बागलकोट में पत्थरबाजी तक कैसे ब दल गया जहां के स्थानीय प्रशासन को वहाँ धारा 144 तक लगानी पड़ी। राज्य सरकार को अपने सभी शिक्षण संस्थान तीन दिन के लिए बंद करने पड़े। कुछ अन्य राज्यों में भी प्रदर्शन होने लगे। दिल्ली के शाहीन बाग में भी ‘नारा_ए_तकदीर-अल्लाह_हु_अकबर’ फिर से गूँजा। कुछ मंत्रियों के बयान आए तो वहीं विपक्षी दल इस मामले को संसद तक ले गया। उधर, देश में जिहाद, अलगाववाद व इस्लामिक कट्टरता की फैक्टरी कहलाई जाने वाली संस्था पीएफआई की संलिप्तता भी जग-जाहिर हो गई।     

बच्चों के विवाद में सर्वप्रथम राहुल गांधी कूदे जिसने उसको मुस्लिम व महिला अधिकारों से जोड़ने की कुचेष्टा की। उसके बाद मंगलवार को कर्नाटक के प्रदेश कोंग्रेस अध्यक्ष डी के शिवकुमार ने एक झूठे ट्वीट के द्वारा हिन्दूओं पर आरोप लगाया कि उन्होंने एक कॉलेज में तिरंगे को उतारकर भगवा लहरा दिया जो तिरंगे का अपमान है। जबकि, उसी दिन शिवमोगा के ही पुलिस अधीक्षक श्री बीएम लक्ष्मी प्रसाद ने साफ तौर पर कहा कि पोल पर तिरंगा था ही नहीं। इसमें तिरंगे का अपमान कहाँ से हुआ। वास्तव में तो कॉंग्रेस की चिढ़ भगवा और भगवा-धारियों से है। यह एक बार पुनः स्थापित हो गया। हिजाबियों की तरफ से न्यायालय में कॉन्ग्रेसी ही तो लड़ रहे हैं। वरिष्ठ कॉन्ग्रेसी नेता व राम द्रोही कपिल सिब्बल तो शुक्रवार को इस मामले को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ही पहुँच गए जैसे कि वे तीन तलाक व बाबरी के लिए लड़े। इसके अतिरिक्त इस्लामिक जिहादियों व कथित सेकलक्यूलरिस्टों की टूल किट गैंग द्वारा भी पूरे देश में अराजकता का वातावरण निर्मित किया जा रहा है।

अब बात करते हैं विद्यालय व उसके नियमों की। तो हम सभी को पता है कि विद्यालय में प्रवेश से पूर्व एक फॉर्म भरवाया जाता है कि मैं विद्यालय के सभी नियमों का पूरी निष्ठा से पालन करूंगा तथा उसके उल्लंघन पर दंड का भागी बनूँगा। इन नियमों में विद्यालय के निर्धारित गणवेश (यूनिफॉर्म) की बात भी होती है। साथ ही संभवतया हम सभी ने कभी-ना-कभी (चाहे भूलवश ही सही) गणवेश के किसी अंग की न्यूनता के लिए दंड भी भुगता होगा। किन्तु कभी किसी विद्यार्थी को हिजाब, बुर्का या गोल टोपी में नहीं देखा होगा। होना भी नहीं चाहिए। विद्यालय समता, समानता व एकरूपता के केंद्र हैं। ना कि जाति, मत-पंथ, भाषा-भूषा या खान-पान के आधार पर अलगाववाद के अड्डे।

उडुपी की ये छात्राएं गत अनेक वर्षों से उसी विद्यालय में बिना किसी शिकायत के शांति से पढ़ रही थीं। फिर जिस विद्यालय में अचानक हिजाब का उदय हुआ वह तो था ही सिर्फ छात्राओं का जहां, लड़कों का प्रवेश ही वर्जित है। तो फिर हिजाबी पर्दा किस से और क्यों? इस पर एक प्रश्न के जवाब में एक विरोध करने वाली मुस्लिम बेटी ने बगलें झाँकते हुए कहा कि एकाध शिक्षक तो पुरुष हैं हीं इसलिए हिजाब जरूरी है। सोचिए! जिस विद्यार्थी की गुरुजनों के प्रति ऐसी दुर्जनों वाली सोच हो तो उसके विद्या अध्ययन का क्या अर्थ? खैर! ये गलती उस बेटी की नहीं अपितु, उसे बहलाने, फुसलाने, भड़काने व उकसाने वाले उस कट्टरपंथी धडे की है जो कभी चाहता ही नहीं था कि मुस्लिम बेटियाँ कभी घर की चार दीवारी पार कर अपना जीवन स्वच्छंदता से जी सकें। वे तो उन्हें अपने पैरों की जूती, मर्दों की खेती व मनोरंजन का साधन से अतिरिक्त कुछ समझता ही नहीं।   

इस सारे षड्यंत्र के पीछे देश की उस कट्टर इस्लामिक जिहादी संस्था पीएफआई की उपस्थिति भी साफ तौर पर स्पष्ट हो चुकी है जिसके विरुद्ध अलगाववादी व आतंकवादी गतिविधियों के संदर्भ में देश की सर्वोच्च सुरक्षा एजेंसी – एनआईए जांच एजेंसी जांच कर रही है और जो देशभर में इस्लामिक कट्टरता और अराजकता फैलाने में लिप्त है। इसकी छात्र विंग कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया का बयान भी मीडिया में आ चुका। यह संयोग है या षड्यंत्र, ये आप तय करें किन्तु यह तथ्य और सत्य है कि जैसे ही कॉंग्रेस ने कट्टरपंथियों की चाल के समर्थन में ट्वीट करना प्रारम्भ किया पाकिस्तान से भी उसी स्वर में अनेक तालियां बजने लगीं। एक ओर जहां कभी कट्टरपंथियों का विरोध व विद्यार्थियों का समर्थन करने वाली पाकिस्तानी नोबल विजेता मलाला, जिसने हलाला पर भी कभी मुंह नहीं खोला, हिजाब का हिसाब मांगने लगी। इतना ही नहीं, पाकिस्तान के अनेक मंत्री, नेता व वहां की पूर्व प्रधानमन्त्री की बेटी भी इस हिजाब जिहाद की समर्थक बन ट्वीट पर टूट पड़ीं। कॉंग्रेस के ट्वीट पर पाकिस्तान ताली ना बजाए ऐसा कैसे हो सकता था!  

ये कट्टरपंथी हर चीज़ को शरीयत के पैमाने से नापने लग जाते हैं लेकिन हक़ीक़त में शरीयत उनके हलक़ से भी नीचे कभी नहीं उतरा। वैसे भी यह भारत है जो, संविधान से चलता है ना कि शरीयत की नसीहतों से। जिसकी आड़ में मुस्लिम महिलाओं को हलाला, तीन तलाक, बहु-विवाह, बहु बच्चे, बाल-विवाह, हिजाब व बुर्के जैसी अनंत बेड़ियों में जकड़ के रखा जाता है। उन्हें मदरसों में मौलवियों के पास तो जाने की छूट है किन्तु मस्जिदों में नहीं? वे मुस्लिम मर्दों को खुश करने की साधन तो होती हैं किन्तु कभी मुल्ला, मौलवी या काजी नहीं बन सकतीं। 

मोदी सरकार से पूर्व तो पुरुष के बिना महिलाओं को हज तक की अनुमति नहीं थी। पुत्रियों को संपत्ति में अधिकार आज तक नहीं! अपने ही दत्तक पुत्रों से पर्दा कैसा? उन्हें संपत्ति में अधिकार क्यों नहीं? जो लोग इस्लाम को वैज्ञानिक व प्रगतिशील बताते हैं उनके लिए ये बहुत बड़ी चुनौतियां हैं। यदि उनको विरोध ही करना था तो इन बुराईयों व अत्याचारों के विरुद्ध बिगुल फूँकतीं। किन्तु शायद यदि किसी ने ऐसा किया तो उसका अंजाम भी लोगों ने देखा है। वैसे जिन लड़कियों ने हिजाब के लिए विद्यालय में जिहाद किया उनके वे फ़ोटो व वीडियो भी आजकल सोशल मीडिया में खूब वायरल हैं जिनमें वे स्वयं फटी जींस टी-शर्ट में बिना किसी स्कार्फ, हिजाब या बुर्के के सार्वजनिक स्थानों पर मस्ती करते हुए नजर आ रही हैं किन्तु विद्यालयों में..। क्या विद्यालय में घुसते ही उनका इस्लाम खतरे में या जाता है!     

खैर! अब सीबीएसई ने अपनी फाइनल परीक्षाओं की तिथि घोषित कर दी है। आगामी 26 अप्रेल से वे परीक्षाएं देश भर में होने वाली हैं। अब विद्यार्थियों को स्वयं को राजनीति या कट्टरपंथियों का मुहरा बनने की बजाय अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। गणवेश तो पहनना ही पड़ेगा इसी में सब की भलाई भी है। हम 21वीं सदी के नागरिक हैं जो अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। हमें किसी टूलकिट गैंग का हिस्सा नहीं अपितु अच्छे अंकों के साथ उत्तम परीक्षा परिणाम प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करना है। संघर्ष हो तो पढ़ाई के लिए व नंबरों के लिए।     

वास्तविकता तो यह है कि इस्लामिक कट्टरपंथियों को देश में एकता या एकरूपता पच नहीं रही। वे बारंबार अपनी अलग पहचान चाहते हैं। वे चाहते हैं कि मुस्लिम बेटियाँ अशिक्षित रह कर उनके उत्पीड़न की शिकार बनी रहें। उनका एक ही एजेंडा है जो विभाजन के समय जिन्ना की मुस्लिम लीग ने दिया था। ‘लड़ के लिया है पाकिस्तान, हंस के लेंगे हिंदुस्तान’। आज हिजाब, कल बुरखा, परसों नमाज, फिर मस्जिद, मदरसा, हलाल और फिर…। विभाजनकारियों के ये षड्यन्त्र अब सफल नहीं होने वाले। ये अफगानिस्तान नहीं जहां बेटियों को शिक्षा से वंचित किया जाए। हम एक-एक बेटी को शिक्षित व जागरूक नागरिक बनाएंगे चाहे वे किसी भी मत-पंथ, संप्रदाय, भाषा-भूषा या क्षेत्र की हो।

-विनोद बंसल

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.