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Saturday, April 20, 2024

विश्व दुग्ध दिवस एवं पेटा इंडिया का हिन्दू एवं दूध विरोधी अभियान

पेटा इंडिया एक बार फिर से लोगों के निशाने पर है क्योंकि इस बार हिन्दू परम्परा के साथ साथ एक बड़े हिन्दू व्यवसाय पर नज़र है। आज विश्व दूध दिवस के अवसर पर जहाँ पूरा विश्व दूध की महत्ता की बात कर रहा है, तो वहीं पेटा भारत के उस व्यापार को निशाना बना रही है, जो करोड़ों लोगों को रोजगार दे रहा है। विश्व दूध दिवस 1 जून को मनाया जाता है।

आज के दिन दूध के महत्व को इसलिए बताया जाता है जिससे लोग जागरूक हो सकें कि दूध पीने के फायदे क्या हैं? दूध में क्या गुण हैं एवं दूध कितनी शक्ति प्रदान कर सकता है। यहाँ पर एक बार फिर से हिन्दू संस्कृति या कहें हिन्दू ज्ञान की महत्ता स्थापित होती है। जिस दूध को आयुर्वेद में अमृत तुल्य माना गया है, जिस दूध की महिमा का अथर्ववेद में महत्व बताया गया है, जिस दूध के कारण हिन्दू स्वस्थ है, उसी दूध पर आज दूध भूमि भारत में विवाद है।

दूध तथा हिन्दू ग्रन्थ

सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद में प्रथम मंडल के 71वें सूक्त में 9वें मन्त्र में दूध को अमृत तुल्य बताया गया है। अग्निदेव की स्तुति करते हुए कहा गया है:

मनो न यो धवन: सद्य एत्येक: सूरो वस्व ईशे,

राजाना मित्रावरुणा सुपाणी गोषु प्रियममृतं रक्षमाणा!

अर्थात मन के सदृश गति वाले सूर्यरूप मेधावी अग्निदेव एक सुनिश्चित मार्ग से गमन करते हैं, और विविध धनों पर आधिपत्य रखते हैं। सुन्दर भुजाओं वाले मित्रावरुण गौओं में उत्तम एवं अमृत तुल्य दूध की रक्षा करते हैं।

अर्थात गाय के दूध को तब भी अमृत के समान बताया गया था।

अथर्ववेद में कई स्थानों पर दूध की महत्ता के विषय में बताया गया है। अथर्ववेद के पुष्टिकर्म सूक्त में, सिन्धु समूह देवता का आवाहन करने हुए लिखा है:

ये सर्पिष: संस्रवंति क्षीरस्य चोदक्स्य च,

तेभिर्मे सवैं: संस्रावैर्धनं सं संस्रावयामसि

अर्थात जो धृत, दुग्ध तथा जल की धाराएं प्राप्त हो रही हैं, उन समस्त धाराओं द्वारा हम धन संपत्तियां प्राप्त करते हैं।

अर्थात इस आह्वान से ज्ञात होता है कि दूध, घी की धाराएं बहती हैं, अर्थात समृद्धि है, उसके कारण धन संपत्ति प्राप्त होती है, अर्थात व्यापार से तात्पर्य हो सकता है। यह इस बात का द्योतक है कि प्रकृति चक्र के कारण ही मानव को संपत्ति प्राप्त होती थी।

इसी प्रकार वाणिज्य सूक्त में कहा गया है

ये पन्थानो बहवो देवयाना अन्तरा द्यावापृथिवी संचरन्ति

ते मा जुषन्तां पयसा घृतेन यथा क्रीत्वा धन्माहराणी

अर्थात

स्वर्ग-पृथ्वी के बीच जो देवों के अनुरूप मार्ग है, वह सभी हमें घृत और दुग्ध से तृप्त करें। जिन्हें खरीदकर हम (जीवन व्यवसाय द्वारा) प्रचुर धन-एश्वर्य प्राप्त कर सकें।

2.May the many paths, the roads of the gods, which come together between heaven and earth,

ladden me with milk and ghee, so that I may gather in wealth from my purchases!

अथर्ववेद में यह भी कहा गया है कि दूध एक सम्पूर्ण भोज्य पदार्थ है, इसमें वह सभी आवश्यक तत्व हैं, जो मानव की देह के लिए आवश्यक होते हैं।

चरक संहिता में भी दूध के गुणों का वर्णन इस प्रकार किया गया है:

स्वादु शीतं मृदु स्निग्धं बहलं श्लक्षणपिच्छिलम,

गुरु मन्दम प्रसंन्न च गव्यं दशगुणं पय:

अर्थात गाय का दूध मीठा, ठंडा, शीतल, नर्म, चिपचिपा, चिकना, पतला, भारी, सुस्त एवं स्पष्ट इन दस गुणों से युक्त है। इस प्रकार यह समानता के कारण समान गुणों वाले ओजस को बढ़ाता है। इसलिए गाय के दूध को शक्तिवर्धक और रसना के रूप में सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। इतना ही नहीं इसकी महत्ता महाभारत आदि ग्रंथों में भी है।

धार्मिक, आर्थिक एवं स्वास्थ्य तीनों में महत्वपूर्ण

इसकी महत्ता यह भी है कि इसके व्यापार के माध्यम से धन कमाया जाता था। भगवान कृष्ण का तो जीवन ही गाय, दूध, मक्खन से भरा हुआ है। कौन भूल सकता है श्री कृष्ण की गाय के साथ मुरली बजाते हुए छवि!

कहने का तात्पर्य यह है कि भारत की स्वास्थ्य एवं अर्थव्यवस्था प्रणाली में गाय तथा दूध दोनों की बड़ी भूमिका थी। दूध एवं दुग्ध उत्पादों को पवित्र माना जाता था। गाय को दिव्य धेनु इसलिए कहा जाता था क्योंकि वह पथ प्रदर्शित करती थी। वह जीने की राह दिखाती थी।

पेटा जैसी संस्थाओं का कुचक्र

आज उसी देश में पेटा जैसी अमेरिकी संस्थाएं हैं, जो हिन्दुओं की धार्मिक आस्था आधारित अर्थव्यवस्था के मूल स्तम्भ गाय के अवैध वध पर मौन रहती है, यहाँ तक कि गौवंश की तस्करी पर मौन रहती है, उस इस्लामी त्यौहार पर चुप रहती है, जिसमें दूध देने वाली गाय, भैंस को काटा जाता है, मगर हिन्दू बच्चे दूध न पी पाएं उसके लिए अपना एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए है। और अमूल को इस लिए पत्र भेज रही हैं कि वह पौधे आधारित दूध का उत्पादन करें, जिसमें पोषक तत्व दूध की तुलना में बहुत कम हैं, जो अप्राकृतिक है, एवं जो इतना महंगा है कि मध्यवर्ग उसे सहन ही न कर पाए!

भारत में हर हिन्दू गाय और दूध के महत्व को जानता और समझता है और तभी आस्थावान हिन्दू गाय को देखते ही सिर झुका लेता है, और हिन्दू धर्म को न समझने वाली पेटा संस्था कभी रक्षाबंधन पर गाय के चमड़े की राखी की बात करती है, कभी जन्माष्टमी पर वेगन घी की बात करती है और आकर हिन्दू बच्चों को वीर्य अर्थात शक्ति हीन बनाने एवं हिन्दुओं के हाथ से समृद्धि तथा रोजगार छीनने के लिए वेगन दूध की सलाह लेकर आई है।

हालांकि पेटा इंडिया का कहना यह है कि डेयरी उद्योग के कारण गाय का वध होता है, पर वह यह नहीं बता रही है कि उसकी सलाह पर पेड़ों से बना हुआ दूध यदि पिया जाएगा तो गायों का क्या होगा?

दरअसल बार बार, हिन्दू आस्थाओं और हिन्दू धर्म पर किया गया प्रहार है! उसे गौ वंश वध को रोकने वाले आदेश पसंद नहीं है! पेटा को इससे कोई समस्या नहीं है कि वैध बूचडखानों में गायों को खाने के लिए काटा जाता है, उसे केवल अवैध बूचड़खानों से ही समस्या है।

पेटा का यह मानना है कि डेयरी उद्योग के कारण ही गौमांस उद्योग चल रहा है क्योंकि दूध न देने वाली गायें और गैर जरूरी बछड़े कसाइयों को बेच दिए जाते हैं। पर पेटा इंडिया इस विषय में कुछ नहीं बोलती है कि यदि डेयरी उद्योग नहीं होगा तो गाय और भैंसों का क्या होगा? क्या तब वह कसाइयों का शिकार नहीं बनेंगी?

पेटा मौन है? परन्तु हर बार की तरह उसका प्रहार हिन्दू धर्म, हिन्दू आस्था, हिन्दू बच्चों का स्वास्थ्य और हिन्दू लोगों का रोजगार है!

गौपालकों के पेट पर लात मारने के कुत्सित इरादों को हालांकि अभी विफल कर दिया गया है, पर यह आवश्यक है कि हमें यह ज्ञात हो कि दूध की महत्ता हमारे ग्रंथों में किस प्रकार दी गयी है तथा दूध को अमृत तुल्य बताया गया है। इतना ही नहीं आधुनिक शोधों में भी दूध के लाभों पर कई चर्चाएँ हुई हैं, तभी उसके महत्व को बताने के लिए आज अर्थात 1 जून को विश्व दुग्ध दिवस मनाया जाता है।


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