जानी मानी पत्रकार ऋचा अनिरुद्ध ने एक अनुसूचित जाति/जनजाति समुदाय की एक महिला पर वर्तमान में जेल में बंद एक सामान्य वर्ग के हिंदू पुरुष के विरुद्ध एक नकली बलात्कार का मामला दर्ज करने का आरोप लगाया है। महिला ने कथित तौर पर झूठे मामले को वापस लेने के लिए पीड़ित पुरुष से 30 लाख रुपये की मांग की है, जिसमें से आधा धन विवादास्पद सामाजिक-राजनीतिक संगठन भीम सेना को जाएगा।
पीड़ित पुरुष के परिवार का दावा है कि उनके पास ढेरों ऑडियो और वीडियो साक्ष्य हैं, जिनसे पता चलता है कि पैसे ऐंठने के लिए उस पर झूठा मामला दर्ज करवाया गया है। उन्होंने इस महिला का एक वीडियो भी बनाया है, जिसमे वह मुकदमा वापस लेने के बदले में पैसे की मांग कर रही है, और यह वीडियो उन्होंने पुलिस को भी दिया है, लेकिन कोई भी कार्यवाही नहीं हुई।
हालांकि इस समय, एससी-एसटी अत्याचार अधिनियम के दुरूपयोग का संकेत देने वाली कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन भीम सेना के कुकृत्यों को देखते हुए ऐसी किसी भी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भीम सेना के प्रमुख नवाब सतपाल तंवर को बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा की जीभ काटने की धमकी देने और इनाम देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। चूंकि आरोपी महिला आरक्षित वर्ग से है और भीम सेना से सम्बंधित है, इसलिए इस अधिनियम के दुरुपयोग की संभावना बहुत अधिक है।
भीम सेना (अखिल भारतीय भीम सेना) और भीम आर्मी (भीम आर्मी भारत एकता मिशन) नाम के दो संगठन हैं। पहले संगठन की स्थापना नवाब सतपाल तंवर ने अक्टूबर 2010 में गुरुग्राम, हरियाणा में की थी।वहीं दूसरे संगठन की स्थापना चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ ने 2015 में उत्तर प्रदेश में की थी। यह दोनों ही संगठन दलितों और पिछड़ों के न्याय के लिए लड़ने का दम्भ भरते हैं, लेकिन इनका एकमात्र उद्देश्य है ऐसे मामलों से राजनीतिक लाभ उठाना।
यह दोनों ही संगठन कहने के लिए तो भीमराव अंबेडकर के नाम से ‘भीम’ का उपयोग करते हैं, ताकि उनसे अपना जुड़ाव दिखा कर दलितों और पिछड़ों के वोट ले सकें। लेकिन यह दोनों ही संगठन इस्लामवाद के प्रति नरम भावनाएं रखने के लिए जाने जाते हैं। जहां भीम सेना के सतपाल तंवर ने मांग की थी कि नूपुर शर्मा को मोहम्मद ज़ुबैर द्वारा गलत तरीके से ‘ईशनिंदा’ का आरोप लगाने के बाद फांसी दी जाए। वहीं भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ इस्लामवादियों का समर्थन लेने के लिए नागरिकता अधिनियम कानून का विरोध कर रहे थे। ऐसे में यह कहना अतिश्योिक्ति नहीं होगा कि दोनों ही संगठन असलियत में मीम सेना और मीम आर्मी हैं।
कानूनों के दुरुपयोग के पिछले उदाहरण
इस प्रकार के कानून के दुरूपयोग के कई मामले सामने आए हैं, इस प्रकार के कई फर्जी बलात्कार और घरेलू हिंसा के मामले सामने आ चुके हैं। अक्टूबर 2021 में, यह बताया गया कि गुरुग्राम की एक महिला ने 1 साल में 7 अलग-अलग पुरुषों के खिलाफ 7 बलात्कार के मामले दर्ज किए, जिनमें से कम से कम 2 मामले झूठे साबित हुए थे। लेकिन उन दोनों मामलों में भी निर्दोष व्यक्तियों को जेल जाना पड़ा, और उनके परिवार को यातनाएं झेलनी पड़ी।
मार्च 2021 में, प्रयागराज उच्च न्यायालय ने निर्दोष होने के बाद भी एससी-एसटी अत्याचार अधिनियम के अंतर्गत जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे विष्णु तिवारी को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया। हालाँकि, यह न्याय का एक बड़ा उपहास है कि तिवारी इतनी सालों से जेल में सजा काट रहे थे, भले ही उनके खिलाफ आरोप साबित नहीं हुए थे। उच्च न्यायालय ने निचले न्यायालय के आदेश के विरुद्ध टिप्पणी करते हुए इसे घोर अन्याय बताया था।
विष्णु तिवारी मात्र 16 वर्ष के थे जब उन पर 16 सितंबर 2000 को खेत की ओर जा रही एक अनुसूचित जाति की महिला के साथ बलात्कार करने का आरोप लगाया गया था। निचले न्यायालय ने तिवारी को दोषी ठहराया और उन पर बलात्कार का आरोप लगाया गया। ललितपुर जिला न्यायालय ने उन पर आईपीसी धारा 376 और एससी-एसटी अत्याचार अधिनियम के अंतर्गत आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
हिंदूपोस्ट ने इस विवादित अधिनियम के दुरुपयोग के कई उदाहरणों की सूचना दी है। कुछ ही महीनों पहले राजस्थान के जयपुर में एक 25 वर्षीय सीए की आत्महत्या है, जब उसकी मां को अत्याचार अधिनियम के तहत झूठे मामले में फंसाया गया था।
राजस्थान में हाल के दिनों में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जहां इस प्रकार के झूठे मामलों में कई सामान्य वर्ग के नौजवानों की जान चली गई। ऐसी ही एक घटना चूरू से सामने आई थी जहां जुलाई के अंत में एक युवा व्यवसायी ने ट्रेन के सामने अपनी इहलीला समाप्त कर ली। एक महिला और उसके चार मित्रों द्वारा बलात्कार और एससी-एसटी अत्याचार अधिनियम के झूठे मामले दर्ज करने की धमकी देने के कारण उसे इतना जघन्य कदम उठाने के लिए विवश कर दिया था।
उत्तम सोनी कुडेल के रूप में पहचाने जाने वाले 26 वर्षीय जौहरी ने फेसबुक पर एक आत्महत्या करने से पहले एक नोट डाला था। जिसमें एक व्यवसायी और एक महिला को उसकी मृत्यु के लिए उत्तरदायी ठहराया था। नोट में यह भी बताया गया है कि वह दोनों उसे झूठे मामलों में फंसाने की धमकी दे रहे थे और इसलिए उसने अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए उन्हें 70,000 रुपये का भुगतान किया। दोनों और पैसे की मांग करने लगे, और उसने पैसा देने के बजाये अपना जीवन समाप्त करने का निर्णय ले लिया।
वहीं उत्तर प्रदेश के कन्नौज के कक्षा 12 के एक छात्र अभिनव प्रताप ने एक अनुसूचित जाति की महिला द्वारा अत्याचार अधिनियम के तहत गिरफ्तार किए जाने के पश्चात जेल में आत्महत्या कर ली थी। मीडिया के अनुसार अभिनव अपने माँ बाप का एकलौता बेटा था। अभिनव के पिता का आरोप है कि महिला ने निजी दुश्मनी के चलते यह फर्जी मामला दर्ज कराया था, जिसके पश्चात उनके बेटे को यह आत्मघाती कदम उठाना पड़ा।
प्रयागराज उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक आदेश देते हुए इस अधिनियम के दुरुपयोग पर प्रकाश डाला है। इस आदेश में उन्होंने केंद्रीय जांच ब्यूरो उन व्यक्तियों और संगठित गिरोहों की जांच करने का निर्देश दिया था, जो धन के लालच में इस अधिनियम का दुरूपयोग करवाते हैं और पीड़ित लोगों से अवैध वसूली करते हैं।
न्यायालय ने बताया कि उन्हें साक्ष्य मिले हैं कि कई अधिवक्ताओं और अन्य लोगों ने मिल कर गिरोह बनाये हुए हैं । जो लाभ लेने या अपने विरोधियों से बदला लेने के लिए निर्दोष लोगों को फर्जी मामलों में फंसाते हैं। यह पैसे ऐंठने का एक सुनियोजित षड्यंत्र है, जिसमे प्राथमिकी दर्ज करवाने और चार्जशीट दायर होने का डर दिखा कर निर्दोष व्यक्तियों से हजारों या लाखों रूपए मांगे जाते हैं।
एडीजी (अपराध) डॉ. रवि प्रकाश मेहरदा ने पुष्टि की थी, कि अधिनियम के अंतर्गत 2021 में दर्ज एससी मामलों में से 50 प्रतिशत और एसटी मामलों में 53 प्रतिशत झूठे निकले। हाल ही में, प्रयागराज उच्च न्यायालय ने एक महिला पर अत्याचार अधिनियम के तहत एक झूठा मामला दर्ज करने के लिए जुर्माना भी लगाया, जिसमें कहा गया था कि ऐसे मामले समय की बर्बादी होती है और न्यायालयों पर बोझ ही बढ़ाते हैं। इसने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि न्यायालय का अमूल्य समय बर्बाद हुआ जिसके परिणामस्वरूप वह अन्य कई महत्वपूर्ण मामलों पर सुनवाई करने में असमर्थ रहे।
यह है एकतरफा आख्यान
यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि तथाकथित पिछड़े वर्गों के पक्ष में मीडिया द्वारा एकतरफा आख्यान चलाया जा रहा है। हालांकि, न तो मीडिया और न ही राजनीतिक दलों को सामान्य वर्ग के उन लोगों की दुर्दशा की परवाह है जो झूठे मामलों का उपयोग करके बार-बार पीड़ित होते हैं। अगर कानून के सामने सभी समान हैं तो रक्षित, उत्तम और विष्णु तिवारी जैसे पीड़ितों को न्याय से वंचित क्यों किया जाता है? क्या यह अधिनियम की समीक्षा करने और इसका दुरुपयोग करने वालों के लिए सख्त सजा सुनिश्चित करने का समय नहीं है?
यह मामला इस बात की ओर भी इशारा करता है कि कैसे नव-अंबेडकरवादी और नव-बौद्ध संगठन ‘हिंदूफोबिया’ को बढ़ावा देने के अतिरिक्त जातिवाद के नाम पर उच्च वर्ग के हिन्दुओं को झूठे मामलों में फंसते हैं। यह संगठन एक तरह के आतंकी माफिया बन गए हैं जो समाज को बांटते हैं, और इनके कारण सैंकड़ो हिन्दू आत्महत्या करने को विवश हो चुके हैं, वहीं हजारों ऐसे परिवार हैं जो न्याय की आशा में दशकों बर्बाद कर चुके हैं।