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Friday, April 19, 2024

एक कविता पर फेमिनिस्ट इतना पागल क्यों हो गईं?

कल मैंने अपनी फेसबुक वाल पर एक कविता जो कि पश्चिमी फेमिनिज्म पर प्रहार करती थी, उसे लिखा। कविता अपने पाठकों के लिए दे रही हूँ:

एक साधारण स्त्री को बचकर रहना चाहिए छद्म बौद्धिक फेमिनिस्ट से,

क्योंकि उनके दिमागों में भरी होती है विष्ठा,

यौन कुंठा,

रात्रि में विकृत भावों से पी गयी मदिरा की

गंदी हंसी!

एक साधारण स्त्री को बचकर रहना चाहिए, उन औरतों से,

जिनकी सुबह और शाम अमीर बॉयफ्रेंड या अमीर पतियों की गालियों से होती हैं,

वह उनके थप्पड़ों और मुक्कों के निशान को छिपाती है,

उन्ही के दिए पैसे के महंगे मेकअप से!

वह परजीवी औरतें

नहीं छोड़ती हैं पति या बॉयफ्रेंड को, सुविधाओं और नाम के लालच में,

पर वह आ जाती हैं, उन साधारण स्त्रियों का घर तोड़ने,

जिनकी दुनिया उनके बच्चे के निश्छल मुस्कान है!

जिनकी दुनिया में मित्रता का भाव पवित्र हैं!

एक साधारण स्त्री को बचकर रहना चाहिए उन झूठी औरतों की झूठी कविताओं से,

जिनमें उनका अधूरा यौन आचरण कुलांचें मारता है और

बार बार काम को विकृत करता है!

वह अपने अधूरे और विकृत यौन आचरण से उपजी परिभाषाओं का प्रैक्टिकल करती हैं,

आम लोक की स्त्रियों पर

सच, साधारण स्त्रियों को हर उस मक्कार औरत बचकर रहना चाहिए,

जिसका जीवन वासना की गुफा में भटक रहा है, और

देह के ऊपरी आचरण और आवरण पर ही ठिठकी हैं जो,

जो अधूरी हैं, और करना चाहती हैं सभी को अधूरा,

जिनमें हैं राक्षसी अट्टाहास और इस राक्षसी अट्टाहास से वह

भयाक्रांत करना चाहती हैं, समस्त निश्छल साधारण स्त्रियों को,

पर भूलती हैं अधूरा “वाद” कभी सफल नहीं होता,

और न ही सफल होती है देह की खोखली गुफाएं,

जिनमें वह भटक रही हैं

हर साधारण स्वतंत्र स्त्री को यौनिक कनीजों से बचना चाहिए,

क्योंकि बदलना चाहती हैं, समस्त स्वतंत्र सोच को सेक्स स्लेव में,

जो वह खुद हैं!

यह कविता थी! यह कविता मैंने अपनी फेसबुक वाल पर पोस्ट की थी। यह बहुत ही साधारण कविता थी, जिसे अभिव्यक्ति की सहज स्वतंत्रता के अंतर्गत रखा जा सकता था। क्या “मुग़ल हरम” से फैसिनेट होने वाला वामपंथी फेमिनिज्म हमारी आने वाली पीढ़ियों को केवल सेक्स मशीन नहीं बना रहा? क्या इस सेक्स ओरिएंटेड फेमिनिज्म के कारण हमारी लडकियाँ लव जिहाद का शिकार नहीं हो रहीं?

क्या इस उपभोक्तावादी फेमिनिज्म ने हमारी लड़कियों को बाज़ार के आगे नहीं परोस दिया? यह कई प्रश्न हैं, जो इस वामी इस्लामी फेमिनिज्म से पूछे जाने चाहिए। पर मेरा प्रश्न मात्र इतना है कि क्या एक साधारण महिला को अपने मन का लिखने भी नहीं देंगे यह वामपंथी? या कथित प्रगतिशील? या कथित फेमिनिस्ट?

क्या इनके खिलाफ कुछ लिखते ही टूट पड़ेंगे पागलों की तरह?

खैर! कल की कविता में एक चीज़ जो सबसे ज्यादा इन वामपंथियों को चुभी होगी वह है सेक्स स्लेव और अमीर पति या बॉयफ्रेंड के हाथों मार खाने वाली बात को लेकर! क्या यह बात सच नहीं है? औरतों के अधिकारों पर टोकरा भर भर किताबें लिखने वाली फेमिनिस्ट लगभग अपने प्रोफ़ेसर या पत्रकार या सरकारी अधिकारी वाले पति के साथ अपनी तस्वीरें पोस्ट करती हैं। सफल और सुखद वैवाहिक जीवन का प्रदर्शन करती हैं, और लगभग पूरे कपड़े पहनती हैं, यहाँ तक कि अपनी बेटियों को भी पूरे ही कपड़े पहनाती हैं, अपनी बेटियों की अधिकाँशत: अपनी ही जाति में शादी करती हैं, जो वामपंथी लेखक अपनी शिष्याओं को देह से आजादी के लिए प्रेरित करते हैं, वही लेखक और प्रोफ़ेसर अपनी पत्नी के साथ अपने विवाह की रजत जयन्ती मनाते हैं, बेटी के विवाह में वही कन्यादान करते हैं, जिस कन्यादान के खिलाफ वह लोगों को भड़काते आए थे, और अकादमी आदि से पुरस्कार जीतते आए थे!

इतना ही नहीं, जिस सरकार के विरोध में यह लेखिकाएं अपनी वाल भर देती हैं, उसी सरकार से फेलोशिप के लिए जुगाड़ लगाती हैं! जिस पति का रोना रोती हैं, उस पति के अधिकार क्षेत्र का प्रयोग अपनी फालतू किताबें बेचने के लिए करती हैं!

र मजे की बात यह है कि आम लड़कियों को अपना पति छोड़ने और परिवार तोड़ने के लिए भड़काती हैं!

और इतना ही नहीं, आप परम्पराओं का विरोध करने वाली लेखिकाओं को देखेंगे तो पता चलेगा कि पाठकों को हिन्दू धर्म के खिलाफ भड़काने के लिए लिखने वाली औरतें, अपनी शादी तक को बचाने के लिए ज्योतिष की और हर तरह की पूजा की शरण लेती हैं। ऐसे एक नहीं कई उदाहरण हैं! यह हमने अभी स्वरा भास्कर के उदाहरण से ही देखा कि अपने घर के गृह प्रवेश के लिए तो स्वरा ने हर तरह की पूजा की, मगर जब दूसरों की बात आती है तो वह हिन्दू धर्म पर प्रहार करने लगती हैं।

हिंदी जगत की फेमिनिस्ट लेखिकाएं भी अपनी कहानियों में हिन्दू पर्वों को गाली देती हैं और फिर तीज, करवाचौथ, आदि पर उन्हीं मंगलसूत्र, सिन्दूर आदि को धारण करके अपनी तस्वीरें लगाती हैं। उनके लिए त्यौहार अर्थात उत्सव और शेष हिन्दुओं के लिए त्यौहार माने पिछड़ापन? यदि संभव हुआ तो उनके इस पाखण्ड भरे व्यवहार का खुलासा किसी पर्व के दौरान उनकी रचनाओं और उनके निजी जीवन के दोहरेपन के साथ करूंगी! अभी करवाचौथ आ रहा है, तब!

हिंदी की यह फेमिनिस्ट लेखिकाएं वैसे तो फेमिनिज्म की बातें करती हैं, परन्तु जब वह किसी और के पति को अपना लिव इन साथी बनाती हैं या दूसरा विवाह करती हैं तो क्या उस निर्दोष पहली पत्नी जो कि स्वयं एक औरत है उसके अधिकार को नहीं छीनती हैं? ऐसे भी कई उदाहरण दबी जुबान में लेखन जगत में बार बार उभरते रहते हैं! पर वह केवल फुसफुसाहट ही बनकर रह जाता है, जैसे सहज स्वीकार्य है हिंदी जगत में यह अन्याय!

वर्तमान का फेमिनिज्म केवल और केवल लड़कियों को सेक्स स्लेव बनाने की मशीन बनकर रह गया है और पुरुषों से घृणा। परिवार से घृणा करना इनका पहला सिद्धांत है। जैसा बॉब लेविस लिखते अपनी द फेमिनिस्ट लाई नामक पुस्तक में लिखते हैं कि आधुनिक फेमिनिज्म का अर्थ है कि misandry अर्थात पुरुषों के प्रति घृणा। और वह कहते हैं कि फेमिनिज्म का अर्थ है गायनोसेंट्रीइज्म अर्थात औरतों को ही केंद्र में रखकर सारा कार्य किया जाना। और वह लिखते हैं कि जब फेमिनिस्ट यह कहती हैं कि वह समानता चाहती हैं, तो वह सबसे बड़ा झूठ कहती हैं। वह दरअसल अपना वर्चस्व चाहती हैं और उन्हें अपने आसपास पालतू आदमी चाहिए, जो फेमिनिज्म का पट्टा डालकर चलते रहें।

और जो कल उस पोस्ट पर लड़ने के लिए आईं, वह बाकायदा गैंग बनाकर आई थीं। और उनके पालतू आदमी भी “पुरुषवाद” मुर्दाबाद का नारा लगाते हुए पोस्ट पर आए। यह अत्यधिक हैरान करने वाली घटना थी क्योंकि यह पोस्ट पूरी तरह से फेमिनिज्म और झूठ पर थी और इस पर कुछ अर्द्ध शिक्षित, कुपढ़ औरतों ने अपनी अज्ञानता का प्रदर्शन किया।

आज केवल एक स्क्रीन शॉट लगा रही हूँ कि कथित वामपंथ और कथित फेमिनिज्म क्या कूड़ा भर रहा है! और कैसे हमारी पीढ़ी से सोचने और समझने की शक्ति छीन रहा है: कैसे वह यह नहीं समझ पा रही है कि बौद्धिक शब्द का अर्थ बौद्ध धर्म से नहीं बल्कि बौद्धिकता से है, माने बुद्धि से है!

शेष विश्लेषण कल, हिन्दुफोबिया स्क्रीनशॉट्स के साथ, कि कैसे बिना पढ़ी लिखी अनपढ़ औरतें फेमिनिज्म के नाम पर कूड़ा परोस रही हैं


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