6 दिसम्बर 1992, को भारत के इतिहास में वह घटना घटी थी, जिसके बाद भारत की राजनीति पहले जैसी नहीं रह गयी थी। वह हिन्दुओं द्वारा अपने अपमान के निशान को तोड़ने या जड़ से मिटाने की शुरुआत थी, जिसे बाद में कानूनी रूप से हिन्दुओं से लड़कर प्राप्त किया। बाबरी ढाँचे का कलंक टूटा और अब भव्य राम मंदिर बनकर तैयार हो रहा है। परन्तु एक और युगांतकारी घटना 6 दिसंबर 2021 को हुई है, जिसका भी काफी दीर्घकालीन प्रभाव देखा जाएगा।
उत्तरप्रदेश में शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष रहे वसीम रिजवी वापस हिन्दू धर्म में आए
उत्तर प्रदेश में शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष रहे वसीम रिज्सी ने हिन्दू धर्म में वापसी कर ली। इस्लाम से हिन्दू धर्म में धर्मांतरण न प्रयोग कर वापसी प्रयोग करना चाहिए क्योंकि भारत में सब हिन्दू ही थे, और जो मुस्लिम बन गए थे। अब वह वापस आ रहे हैं। वैसे तो छिटपुट कई लोग रोज वापस आ रहे हैं। परन्तु वसीम रिजवी का मामला अलग है। वह शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष रहे हैं और इस्लामिक विद्वान रहे हैं। और एक बड़ा व्यक्तित्व है। इतना ही नहीं उन्होंने इस्लाम में सुधार की मांग की थी।
उन्होंने पहले भी कहा था कि इस्लाम को सुधार की आवश्यकता है और इस्लाम में गैर-इस्लाम के प्रति घृणा भरी जाती है। उन्होंने इस्लाम में सुधार के लिए विवादित 26 आयतों को हटाने के लिए याचिका भी दायर की थी, परन्तु उच्चतम न्यायालय ने उनपर ही जुर्माना लगा दिया था।
इस बहाने लोगों को भी पता चला था कि इस्लाम में भी ऐसे सुर उठ रहे हैं। परन्तु उसके बाद उन्होंने “मोहम्मद” नाम से किताब लिखी जिसमें उन्होंने दावा किया है कि 300 से अधिक किताबों और मुस्लिम धर्मग्रंथों का सन्दर्भ लिया है। और उनका दावा है कि यह किताब पैगम्बर मुहम्मद के चरित्र को व्यक्त करती है।
स्पष्ट है कि वसीम रिजवी एक स्वतंत्र सोच वाले हैं, जो उस पहचान के साथ खुद को नहीं जोड़ पाए जो पूरी दुनिया को मुस्लिम और काफिर बस दो ही धडों के बीच बांटती है। वसीम रिजवी 6 दिसंबर के बाद हिन्दू धर्म में वापस आ गए हैं और डासना मंदिर में महंत यति नरसिम्हानंद सरस्वती की उपस्थिति में सुबह साढ़े दस बजे के लगभग वैदिक मंत्रोच्चार के उपरान्त वह विधिवत सनातन में आ गए।
सोशल मीडिया पर उन्हें शिया कहकर मुस्लिम मानने से ही खारिज किया गया
जैसे ही सोशल मीडिया पर यह समाचार आया वैसे ही मुस्लिम समुदाय में इस कदम का विरोध होना आरम्भ हो गया। यह बहुत ही मजे की बात है कि हिन्दू धर्म को पिछड़ा कहने वाले लोग यह स्वीकार ही नहीं कर पा रहे थे कि वसीम रिजवी हिन्दू धर्म में वापस आ रहे हैं। हजारों प्रलोभनों के माध्यम से इस्लाम का प्रचार करने का समर्थन करने वाले लोग वसीम रिजवी जो अब जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी बन चुके हैं, का हिन्दू धर्म में वापस आना स्वीकार नहीं कर पा रहे थे।
दरअसल वसीम रिजवी पहले भी कई बार इस्लामी मदरसों पर अपना मत रख चुके थे और कह चुके थे कि सभी इस्लामी मदरसों को बंद कर देना चाहिए क्योंकि यह आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं। उन पर कल यह कहकर वार हुए कि वह शिया हैं, और शिया तो पहले ही मुस्लिम नहीं होते, तो वह कहीं भी जाएं!
विभिन्न फिरकों में बंटे हुए लोग पूछते रहे कि वह किस जाति में आएँगे?
इस्लाम में किस हद तक जातिवाद है, यह पसमांदा आन्दोलन को देखकर पता चल जाता है। पसमांदा अर्थात वह दलित या ओबीसी वर्ग जिन्होनें इस्लाम अपनाया परन्तु उन्हें कथित समानता वहां भी नहीं मिली। हम भी कई बार इस आन्दोलन का उल्लेख अपने लेखों में कर चुके हैं कि कैसे वह लोग अपने लिए समानता की लड़ाई लड़ रहे हैं और पसमांदा को एक तरह से शील्ड की तरह प्रयोग किया जाता है।
अपने ही लोगों से शिया, सुन्नी, पठान, जुलाहे, नाई आदि के आधार पर भेदभाव करने वाले मुस्लिम जब यह पूछते हैं कि रिजवी किस जाति में जाएंगे, तो यह अत्यंत हास्यास्पद है। पसमांदा सामाजिक कार्यकर्ता इमानुद्दीन ने एक लेख मे कँवल भारती की पुस्तक के हवाले से लिखा था ““हिंदू समाज यदि वर्णव्यवस्था और जातिभेद से पीड़ित है, तो मुस्लिम समाज का जातिवाद उससे भी भयानक है। उनमें जुलाहा, दर्जी, फकीर, रंगरेज, बढ़ई, मनिहार, दाई, कलाल, कसाई, कुंजड़ा, लहेड़ी, महिफरोश, मल्लाह, धोबी, हज्जाम, मोची, नट, पनवाड़ी, मदारी इत्यादि जातियां आती हैं। अरजाल, अर्थात सबसे नीच मुसलमानों के भनार, हलालखोर, हिजड़ा, कसबी, लालबेगी, मोगता तथा मेहतर जातियां मुख्य हैं, जिन्हें हम दलित और अछूत कह सकते हैं। इन दलित मुसलमानों के साथ कुलीन मुसलमानों का वही व्यवहार है, जो हिंदू दलितों के प्रति सवर्णों का है। हिंदू समाज में तो दलितों के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन भी आया है और बहुत से प्रगतिशील हिंदुओं का सहयोग भी दलितोत्थान के क्षेत्र में मिल रहा है, परंतु मुसलमानों का दुर्भाग्य यह है कि उनके उत्थान के प्रश्न पर कुलीन मुसलमानों में न तो पहले सोच पैदा हुई और ना ही अब हो रही है। दलित मुसलमानों के बारे में बरेली इस्लामिक स्कूल तो आज भी मौलाना अहमद रज़ा खां की इस हिदायत पर अमल करता है कि अरजाल की इमामत में अशराफ की नमाज नहीं हो सकती। जबकि भारत विभाजन में मुख्य भूमिका अशराफ (कुलीनों) ने निभायी थी, परंतु विडंबना यह है कि उस विभाजन से पैदा हुई नफरत की आग जब भी भड़कती है, तो उसमें जलकर राख होने वाले मुसलमान अशराफ नहीं, अरजाल व अजलाफ (दलित) होते हैं।”
जो इन पर बात करता है उसे सच्चा मुसलमान नहीं माना जाता
सबसे दुखद यह है कि जो भी इस्लाम की इन कमियों को सामने लाने की कोशिश करता है उसे इस्लाम का दुश्मन बता दिया जाता है। या उसे सुना ही नहीं जाता है।
हाल ही में इंडोनेशिया की पूर्व राजकुमारी ने भी की थी हिन्दू धर्म में वापसी
ऐसा नहीं है कि केवल वसीम रिजवी ही ऐसे विख्यात व्यक्तित्व हैं, जिन्होनें इस्लाम छोड़कर हिन्दू धर्म में वापसी की है। ऐसा कई वर्षों से हो रहा है और कई विख्यात लोग हिन्दू धर्म अपना रहे हैं। परन्तु मीडिया उन पर दृष्टि नहीं डालता। हाल ही में इंडोनेशिया में जिस प्रकार से राजकुमारी सुकुमवती ने अपने 70वें जन्मदिन पर इस्लाम छोड़कर हिन्दू धर्म की दीक्षा ली थी, वह स्वयं में एक युगांतकारी घटना थी।
मीडिया में मात्र एक समाचार चलाकर इति कर ली, परन्तु वह इस भाव को पकड़ने में नाकाम रही थी कि आखिर ऐसा क्या है जो लोगों में मूल की ओर वापसी की तरफ एक छटपटाहट पैदा कर रहा है? वह क्या है जो इस बात की प्रेरणा दे रहा है कि मूल की ओर लौटा जाए!
इससे पहले जावा की एक राजकुमारी कंजेंग रादेन अयु महिंद्रनी कुस्विद्यांती परमासी भी 17 जुलाई, 2017 को बाली में सुधा वदानी संस्कार से हिंदू धर्म में दीक्षित हो चुकी थीं। परन्तु मीडिया न ही उन कारणों पर चर्चा कराना चाहता है कि क्यों लोग वापस मूल में आ रहे हैं, या फिर क्यों हजारों की संख्या में लोग इस्लाम छोड़ रहे हैं।
इससे पहले भी कई नामी व्यक्तित्व अपना चुके हैं हिन्दू धर्म
जूलिया रोबर्ट्स:
मशहूर अभिनेत्री जूलिया रोबर्ट्स ने वर्ष 2010 में हिन्दू धर्म अपना लिया था। उनका कहना था कि हिन्दू धर्म ने उन्हें इतना सम्मोहित कर लिया था कि उन्होंने इसे अपना लिया था। और उन्होंने कहा था कि उन्होंने मानसिक शान्ति के लिए हिन्दू धर्म अपनाया है।
जॉर्ज हैरिसन
इससे पहले यूके के बीटल्स बैंड के मुख्य गिटारिस्ट ने हिन्दू धर्म अपना लिया था। 1960 के दशक के मध्य वह ईसाई से हिन्दू धर्म में परिवर्तित हो गए थे।
जेरी गार्सिया
जेरी गार्सिया भी एक अमेरिकी गायक-गीतकार और गिटारवादक थे। और जिन्होनें हिन्दू धर्म अपना लिया था। जब 1995 में उनका निधन हुआ तो उनकी अस्थियों को ऋषिकेश के पवित्र शहर में प्रवाहित किया गया था।
एलिज़ाबेथ गिल्बर्ट
ईट,प्रे,लव की लेखिका एलिजाबेथ गिल्बर्ट ने भी आध्यात्मिक यात्रा के दौरान हिन्दू धर्म अपना लिया था।
रिकी विलियम्स
एनएफएल खिलाड़ी रिकी विलियम्स एक हिन्दू हैं और शाकाहारी हैं और वह चोट से उबरने के लिए हिन्दू धर्म आधारित चिकित्सा का सहारा लेते हैं।
एलिस कोल्ट्रेन
अपने पति जॉन कोल्ट्रेन की तरह एलिस कोल्ट्रेन भी हिन्दू थीं, वह भारतीय गुरु सत्य साईं बाबा की शिष्या थीं और उन्होंने अपना नाम भी बदल लिया था।
केली विलियम्स
केली रेनी विलियम्स अमेरिकी अभिनेत्री हैं और उन्होंने लेखक अजय सहगल से शादी की है। उन्होंने वर्ष 1996 में हिन्दू धर्म का पालन करना आरम्भ किया था।
कई विख्यात व्यक्त्तित्व हैं जो हिन्दू धर्म की ओर वापस आ रहे हैं, उन्हें कोई जबरन नहीं ला रहा है, बल्कि वह आध्यात्मिक शांति के लिए भारत या कहें हिन्दू धर्म का रुख कर रहे हैं। वह भारत को अपनी सांस्कृतिक, आध्यात्मिक पहचान के लिए अपना रहे हैं।
भारत के हिन्दुओं पर है उत्तरदायित्व
अब यह भारत के हिन्दुओं पर उत्तरदायित्व है कि जिस आध्यात्मिक चेतना या सांस्कृतिक समृद्धि से प्रभावित होकर पश्चिम भारत की ओर देख रहा है, भारत के हिन्दू उस समृद्ध चेतना को अपने आचरण में सम्मिलित करके इस अभियान को आगे ले जाएँ!
कल हम चर्चा करेंगे कि क्यों हजारों लोग इस्लाम छोड़ रहे हैं! क्या फाल्स गॉड तोड़ने वाले अपने खुद के खुदा के खौफ को टूटते देखकर बौखला रहे हैं?
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