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Saturday, April 20, 2024

फाइजर वैक्सीन के लिए ही हाय तौबा क्यों?

भारत में कोरोना के मामले बढ़ने के साथ ही एक और शोर बढ़ने लगा है।  और वह शोर है विदेशी वैक्सीन का। जैसे ही उच्चतम न्यायालय द्वारा ऑक्सीजन के ऑडिट की बात की तो ऑक्सीजन की समस्या का अचानक से समाधान हो गया और फिर एक नया शोर शुरू हो गया! वह था वैक्सीन की अनुपलब्धता, एवं भारतीय वैक्सीन के स्थान पर विदेशी वैक्सीन को लगवाया जाना।

इन्फोर्मेशन वारफेयर स्टडीज शोधकर्ता सुमित कुमार ने यह शोध किया कि जब से भारतीय वैक्सीन आई थी, तब से वैक्सीन के विरोध में कितने लोगों ने क्या कदम उठाए। वह अपनी फेसबुक पोस्ट पर लिखते हैं कि

“जब से वैक्सीन आई बुद्धिजीवी वर्ग, गैर भाजपा राजनीतिक दल, NGOs गैंग ने मीडिया में बोलना शुरू कर दिया कि डेटा नहीं हैं,फर्जी हैं और हम नहीं लगवाएंगे। मीडिया ने भी भारतीय वैक्सीन के विरोध में एक आंदोलन छेड़ा हुआ हैं।

मैंने एक थिंक टैंक के लिए कुछ वेबसाइट के वैक्सीन विरोधी लेखों की सूची तैयार की जिसमे इंडियन एक्सप्रेस ने 182 , लोकसत्ता ने 172, नवभारत टाइम्स ने 236, hindustan times ने 123 , times of india ने 287, the wire ने 78, the print ने 59, scroll ने 122, newslundary ने 54, alt news ने 78, the hindu ने 128 लेख वैक्सीन के विरोध में लिखे हैं।

जबकि राजनीतिक दलों में 58 कांग्रेस पार्टी , 17 समाजवादी पार्टी, 27 शिवसेना, 13 DMK, 7 भाजपा, 12 TMC पार्टी के नेताओं ने वैक्सीन के विरोध में बोल हैं।

वही 265 बड़ी NGO के संस्थापक व कर्मचारियों ने वैक्सीन के विरोध में बोला हैं। वही 172 रिटायर्ड आईएएस, आईपीएस, जज और अन्य सरकारी अधिकारी ने भी वैक्सीन के विरोध में बोल हैं।

वही 342 कार्टून भी वैक्सीन के विरोध में कार्टूनिस्ट लोगों ने बनाये हैं।

जिसके बाद लोगों में एक भ्रम पैदा हो गया कि वैक्सीन नहीं लगाना हैं। और लोग आज मर रहे हैं तो यही आंदोलनकारी लोग चुपचाप जाकर वैक्सीन लगवा रहे हैं।“

सुमित कुमार यह गलत नहीं कह रहे हैं। कोरोना वैक्सीन को लेकर कांग्रेस के थिंक टैंक एवं वामपंथी लेखिकाओं के प्रिय एवं अपनी पत्नी की हत्या का आरोप झेल रहे काग्रेसी नेता शशि थरूर ने संदेह व्यक्त करते हुए कहा था कि कोविड-19 से बचाव के लिए तैयार कोवैक्सीन का अभी तीसरे चरण का ट्रायल नहीं हुआ है, अत: यह भारतीयों के लिए सुरक्षित नहीं है इसलिए इसे तब तक नहीं लेना चाहिए जब तक इसके पूरे ट्रायल नहीं हो जाते!- 3 जनवरी 2021

और इसके लिए उन्हें साथ मिला था जयराम रमेश का, जो भी कांग्रेसी हैं।

ऐसे ही वामपंथियों के प्रिय समाजवादी युवराज अखिलेश यादव ने वैक्सीन को भाजपा की वैक्सीन बताते हुए जनता को भड़काया था और खुद वैक्सीन लगवा आए थे।

कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ में भी को-वैक्सीन पर संदेह व्यक्त करते हुए टीका कार्यक्रम रोक दिया गया था:

सतीश आचार्य ने कई भड़काऊ कार्टून वैक्सीन के मुद्दे पर बनाए, पर अंत में उन्होंने खुद वैक्सीन लगवाई और जब लोगों ने उनके दोगले रवैये पर आपत्ति जताई तो उन्होंने कहा कि उन्होंने वैक्सीन के राजनीतिकरण पर कार्टून बनाए थे।

इस दोहरे रवैये के बाद आते हैं, दूसरी बात पर कि आखिर भारत की वैक्सीन को नीचा दिखाकर एक विदेशी वैक्सीन को लाने की इतनी जल्दी भारत के विपक्षी नेताओं और कुछ कथित सोशल मीडिया इन्फ़्लुएन्सर्स को है? राहुल गांधी बार बार को-वैक्सीन को नीचा दिखाने के लिए ट्वीट कर रहे हैं, और बार बार इसी प्रयास में हैं कि किसी तरह से विदेशी वैक्सीन को अनुमति मिल जाए!

अपने ही देश की उन्नति से इतनी घृणा क्यों है राहुल गांधी को और कांग्रेस को?  फाइजर के विषय में नेट पर खोजने पर कई सारे लेख प्राप्त होते हैं, मगर एक जो बहुत रोचक लेख प्राप्त होता है वह है, 24 फरवरी 2021 को विओन में प्रकाशित एक लेख, जिसमें लिखा है कि कैसे फाइजर ने वैक्सीन के बदले में अर्जेंटीना और ब्राजीन को धमकाने का काम किया?

इस लेख में फाइजर की ओर से मांगी गयी मांगें बताई गयी हैं कि कैसे अर्जेंटीना को फाइजर ने क़ानून तक बदलने के लिए बाध्य किया था। फाइजर ने यहाँ तक कहा कि अर्जेंटीना को अपने बैक जमा, सैन्य बेस और दूतावासों की इमारतों तक को दांव पर लगाना था।  वह न केवल लापरवाही के कारण हुई किसी भी घटना से मुक्त रहना चाहती थी बल्कि साथ ही एक छल पूर्ण बीमा चाहती थी, जो अर्जेंटीना ने नहीं माना।

ऐसा ही कुछ ब्राजील के साथ हुआ  था। जिसमे फाइजर की मांग थी कि ब्राजील अपनी स्वायत्तता तक फाइजर के पक्ष में दांव पर दे कि देश के क़ानून ब्राजील पर लागू नहीं होंगे। और यदि देरी होती है फाइजर जिम्मेदार नहीं होगी और साथ ही किसी भी साइड इफेक्ट होने पर फाइजर पर कोई जिम्मेदारी नहीं होगी।

ब्राजील की सरकार ने इसे स्वीकार नहीं किया और ब्राजील के साथ भी डील नहीं हुई।

और भारत में भी वह सुरक्षा को लेकर कोई भी जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं है।  फरवरी में फाइजर ने स्थानीय ट्रायल नियम को पूरा न करने पर अपना आवेदन वापस ले लिया था। भारत सरकार द्वारा वैक्सीन निर्माताओं के लिए जो नियत नियम हैं, फाइजर उसके लिए तैयार नहीं है।   इंडिया टुडे में प्रकाशित खबर के अनुसार फाइजर का कहना है कि उसने भारत सरकार को यह बताया है कि कोविड-19 की उसकी वैक्सीन को लेकर सुरक्षा को लेकर वह चिंतित न हों।  भारत सरकार संक्रमण काल में भी छोटे छोटे स्थानीय ट्रायल पर जोर दे रही है और फाइजर इस ट्रायल से बचना चाहती है।

अब प्रश्न यह उठता है कि देशों की अर्थव्यवस्था तक को अपनी मुट्ठी में करने वाली, स्थानीय ट्रायल न करनें वाली फाइजर की वैक्सीन को भारत में लाने के लिए कांग्रेस और विपक्ष के साथ साथ पत्रकार भी इतने लालायित क्यों हैं? क्या फाइजर की ओर से इन्हें दलाली के लिए लगाया गया है? क्या इनका आत्मगौरव इस हद तक मर गया है कि वह अब अपने देश की उस वैक्सीन को बनने ही नहीं देंगे जिस वैक्सीन का डंका आज पूरे विश्व में बज रहा है, तभी मुम्बई उच्च न्यायालय को महाराष्ट्र सरकार को यह आदेश देना पड़ा कि वह को-वैक्सीन के निर्माण में रोड़ा न अटकाएं और भारत बायोटेक को यह अनुमति दी कि वह पुणे में प्लांट का प्रयोग कर सकती है

इधर राहुल गांधी को-वैक्सीन के खिलाफ भड़का रहे हैं, कांग्रेस शासित प्रदेशों में सीओ-वैक्सीन के विरुद्ध षड्यंत्र हो रहे हैं, महाराष्ट्र में संयंत्र नहीं लगाने दिए जा रहे हैं और इन्हीं सब के बीच केवल फाइजर की तरफदारी करने के लिए एक लॉबी आगे आ गयी है।

और वह भी उस फाइजर के लिए जिसने देशों की संप्रभुता को अपनी वैक्सीन के बदले गिरवी रखना चाहा? गुलाम बनाना चाहा? क्या राहुल गांधी यही चाहते हैं?  क्या कांग्रेस अपने देश की वैक्सीन न प्रयोग करके केवल और केवल फाइजर के बहाने देश को बेचना चाहती है?

फाइजर के हाल के इतिहास को देखकर यह उत्तर तो कांग्रेस और राहुल गांधी को देने ही होंगे? कि क्या वह अपने देश को मात्र ऐसा देश बनाना चाहते हैं कि कोई भी वैक्सीन आए और लोगों पर बिना ट्रायल के लगा दी जाए? क्या वह लोगों को मारना चाहते हैं? क्या लाशों पर राजनीति करते हुए मन नहीं भरा है? पर उत्तर कौन देगा, यह भी एक प्रश्न है!

जबकि फाइजर वैक्सीन से कितनी मृत्यु हो चुकी हैं, इसका भी डेटा एकत्र करना चाहिए. पंजाब केसरी में कुछ दिन पहले एक खबर आई थी कि प्रसिद्ध संक्रामक रोग विशेषज्ञ और रटगर्स विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. राजेंद्र कपिला का 28 अप्रैल को कोविड संक्रमण से निधन हो गया।  और यह निधन उनका तब हुआ जब वह फाइजर की वैक्सीन लेने के बाद भारत आए थे.

नोर्वे में भी जनवरी में फाइजर की वैक्सीन के बाद बहुत मौतें हुई थीं. फाइजर की वैक्सीन के बाद हुई मौतों का एक आंकड़ा भी इन नेताओं द्वारा क्यों नहीं दिया जाता?

भारत में गिद्ध पत्रकार और लेखक और गिद्ध विपक्ष वास्तव में लाशों की प्रतीक्षा में है तभी फाइजर की ही वैक्सीन पर इतना जोर दिया जा रहा है!


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