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Thursday, April 18, 2024

केवल भारतीय संस्कृति के मूल्यों से भरी शिक्षा ही बचा सकती है चाइल्ड पोर्नोग्राफी से: मद्रास उच्च न्यायालय

चाइल्ड पोर्नोग्राफी को लेकर मद्रास उच्च न्यायालय ने कल एक बेहद महत्वपूर्ण टिप्पणी की। जस्टिस जी आर स्वामीनाथन के बेंच ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी के विषय में एक व्यक्ति को अंतरिम जमानत देते हुए कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी की समस्या का हल तभी हो सकता है जब हम सभी सही मूल्यों का पालन करेंगे।

पी जी सैम नामक व्यक्ति को अपने सोशल मीडिया खातों से और ईमेल से चाइल्ड पोर्नोग्राफिक सामग्री भेजने और डाउनलोड करने के आरोप में हिरासत में लिया गया था। मद्रास उच्च न्यायालय ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी का जो खतरा है, उससे केवल और केवल तभी बचा जा सकता है जब हम नैतिक शिक्षा के माध्यम से सही मूल्य बच्चे में डालेंगे।

जस्टिस जी आर स्वामीनाथन ने यह कहा कि हालांकि व्यक्तिगत रूप से पोर्नोग्राफी देखना अपराध नहीं है और यह नितांत व्यक्तिगत कृत्य है। परन्तु चाइल्ड पोर्नोग्राफी अवश्य ही दंड के दायरे में आता है, यह आपकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता नहीं है।

भारत सरकार के आईटीअधिनियम की धारा 67 बी के अनुसार यदि कोई व्यक्ति चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखते हुए पाया जाता है, या फिर वह ऐसी कोई भी सामग्री शेयर करता है, तो भी वह अपराधी है। और उसे पौक्सो के अंतर्गत दंड मिलता है।

जस्टिस स्वामीनाथन ने कहा कि “केवल व्यवस्था ही हर अपराधी को दंड देने में सक्षम नहीं है। इसलिए यह नैतिक शिक्षा के माध्यम से ही होगा। केवल भारतीय संस्कृति ही है, जो एक बाँध के रूप में कार्य कर सकती है। चाइल्ड पोर्नोग्राफी का जो खतरा है, उससे केवल और केवल तभी बचा जा सकता है जब हम नैतिक शिक्षा के माध्यम से सही मूल्य बच्चे में डालेंगे।”

जस्टिस स्वामीनाथन ने कहा कि ऐसे धमकी से नहीं चल सकता कि कोई बड़ा भाई हमें देख रहा है! उसके बाद न्यायालय ने कहा कि “बच्चों की व्याख्या में केवल व्यक्ति के अपने ही बच्चे नहीं आते है, बल्कि साथ ही सभी बच्चे आते हैं, जिसका अर्थ यह है कि हमें दूसरे बच्चों के प्रति भी संवेदनशील होना चाहिए।”

चाइल्ड पोर्नोग्राफी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के दायरे से बाहर है:

न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि हालांकि आप व्यक्तिगत जीवन में पोर्नोग्राफी देख सकते हैं, परन्तु चाइल्ड पोर्नोग्राफी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के दायरे में नहीं है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी को देखना भी अपराध है!

हालांकि न्यायालय ने आरोपी को जमानत यह कहते हुए दे दी कि आरोपी ने एक ही बार अपराध किया था और उसने पुलिस के साथ जांच में सहयोग किया।

चाइल्ड पोर्नोग्राफी को प्रतिबन्ध करने पर हुआ था बवाल

जब वर्ष 2015 में सरकार ने पोर्न को प्रतिबंधित करते हुए कुछ साइट्स ब्लाक की थीं, तो कई बुद्धिजीवी एवं प्रगतिशील लेखकों का एक बड़ा समूह इसे देखने की आज़ादी पर हमला बताते हुए सरकार के विरोध में उतर आया था। बार बार यह कहते हुए हमला किया गया था कि यह “फासीवादी” सरकार अब इस बात पर नियंत्रण करना चाहती है कि हम क्या देखें और क्या न देखें!

इस पर सरकार ने स्पष्ट किया था कि रोक केवल और केवल चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर है। जबकि जिन लोगों ने यह शोर मचाया था उन्हें यह पता भी शायद नहीं था कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर वर्ष 2009 से ही प्रतिबन्ध लगा हुआ था। कोई भी व्यक्ति चाइल्ड पोर्नोग्राफी का प्रसारण नहीं कर सकता है और जो करेगा उसे पौक्सो अधिनियम के अंतर्गत दण्डित किया जाएगा। एवं उसके बाद वर्ष 2016 में उच्चतम न्यायालय ने तो यह तक निर्देश दिया था कि विदेशो से परोसी जा रही चाइल्ड पोर्नोग्राफी को भी रोका जाए! अर्थात ऐसा नहीं है कि केवल आप अपने देश के बच्चों को ही इस

नैतिक और भारतीय मूल्यों वाली शिक्षा से कैसे बचेंगे?

जस्टिस जी आर स्वामीनाथन ने यह निर्णय देकर एक ऐसी बहस को जन्म दे दिया है, जो देश के लिए और समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हो सकती है। यह सत्य है कि शिक्षा में नैतिक शिक्षा का समावेश होना ही चाहिए, प्रार्थना का समावेश होना चाहिए। बच्चों को यौन शिक्षा देकर ही क्या इस संकट का मुकाबला किया जा सकता है या फिर उन्हें यह नैतिकता के आधार पर बताया जाना चाहिए कि इस उम्र से पूर्व यौन सम्बन्ध नहीं बनाने चाहिए। और कैसे उन्हें अपनी शारीरिक भावनाओं को संयमित करना है!

परन्तु नैतिक शिक्षा केवल यौन शिक्षा तक सीमित नहीं है। नैतिक शिक्षा उससे कहीं अधिक है। वह जीवन में मूल्यों का विकास करने के विषय में है। पर वह मूल्य क्या हैं?

मूल्य और शिक्षा के बीच बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। मूल्य यदि आत्मा है तो शिक्षा शरीर है। और यह मूल्य कहाँ से प्राप्त होंगे? यह मूल्य कई माध्यमों से प्राप्त हो सकते हैं। जैसे हमारे धार्मिक महापुरुषों की जीवनी से, उनके जीवन मूल्यों से, उनके द्वारा किये गए कार्यों से, प्रार्थनाओं से, खेलकूद से, कई शैक्षणिक गतिविधियों से और महापुरुषों की जयंतियों से!

परन्तु हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कैसे शिक्षा को ही हमारे देश में हिन्दू धर्म को नीचा दिखाने के लिए प्रयोग किया गया, और चुपके से ग से गणेश के स्थान पर कांग्रेस के नेता “शंकर दयाल शर्मा” ने सेक्युलर मतों को साधने के लिए “ग से गधा” कर दिया।

जानबूझकर कुछ मन्त्रों को हटाया गया!

हिन्दू धर्म के जो मूल्य थे उन्हें कथित धर्मनिरपेक्षता के नाम पर धीरे धीरे अलग कर दिया गया, साम्प्रदायिक रंग दे दिया गया, और जानबूझकर राम और कृष्ण जैसे हमारे आदर्शों को पुस्तकों से दूर कर दिया गया। योग को भी मात्र व्यायाम बनाकर ही पाठ्यक्रमों में सम्मिलित करने पर बल दिया गया।

यह बात पूर्णतया सत्य है कि यौन शिक्षा से ही मात्र आप बच्चों को यौन शोषण से नहीं बचा सकते, परन्तु स्कूल के स्तर पर जब तक उन्हें नैतिक मूल्यों का ज्ञान नहीं दिया जाता, तब तक वह यह नहीं समझ पाएंगे कि बच्चे क्या हैं? बच्चे मात्र यौनाचारण का परिणाम न होकर एक पवित्र सम्बन्ध का परिणाम होते हैं।”

यह एक लम्बी बहस है, परन्तु जस्टिस जी आर स्वामीनाथन ने एक सार्थक अवलोकन प्रदान किया है, जिस पर आज पूरे समाज को ध्यान देना है। कि क्या वामपंथी जाल में फंसकर बच्चों को नैतिक मूल्यों से, हमारे राम और कृष्ण से दूर रखना है और उनका वैकल्पिक अध्ययन पढ़ाना है या फिर मूल ग्रंथों की ओर लौटकर  उन्हें वही मूल्य देने हैं, जिनकी कहानियां सुनकर शिवाजी ने मुगल सत्ता के खिलाफ हिन्दू राष्ट्र की नींव रख दी थी

फीचर्ड इमेज: बारएंडबेंच


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