अमेरिका में उच्चतम न्यायालय ने एक बहुत ही स्तब्ध करने वाला निर्णय देते हुए गर्भपात के उस अधिकार को समाप्त कर दिया है, जो उसने ही वर्ष 1973 में “रो वर्सेस (बनाम) वेड” निर्णय के माध्यम से दिया था। अमेरिका में एकदम से ही गर्भपात के क्लीनिक इस निर्णय के बाद बंद होने आरम्भ हो गए। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि गर्भपात को लेकर कानूनी अधिकार का निर्धारण अब राज्य अपने अनुसार कर सकते हैं।
परन्तु बीबीसी के अनुसार 13 राज्य पहले ही ऐसे क़ानून पारित कर चुके हैं, जो गर्भपात को अवैध बताते हैं। और यह सभी क़ानून अमेरिका के उच्चतम न्यायालय के इस निर्णय के बाद लागू हो जाएंगे।
बीबीसी के अनुसार
- “केंटकी, लुइज़ियाना, अर्कांसस, साउथ डकोटा, मिज़ूरी, ओकलाहोमा और अलाबामा में ये नया क़ानून पहले ही लागू हो चुका है
- मिसिसिपी और नॉर्थ डकोटा में प्रतिबंध वहां के अटॉर्नी जनरल की मंज़ूरी मिलने के साथ ही लागू हो जाएंगे
- इडाहो, टेनेसी और टेक्सस में अगले 30 दिनों में ये प्रतिबंध लागू हो जाएंगे”
अमेरिका में यह निर्णय आते ही हडकंप मच गया है और जैसे ही उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया, वैसे ही कई क्लीनिकों में रोगियों के लिए दरवाजे बंद होने लगे और कर्मी महिलाओं को यह बताने के लिए कॉल करने लगे कि न्यायालय ने क्या निर्णय दिया है और अब गर्भपात नहीं किया जा सकता है।
बीबीसी ने एक हेल्थकेयर आर्गेनाइजेशन प्लांटेड पेरेंटहुड की ओर जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार कहा कि लगभग 36 मिलियन (3।6 करोड़) महिलाओं से उनके राज्य में गर्भपात का अधिकार छिन जाएगा।
इस निर्णय पर जहाँ गर्भपात विरोधी कार्यकर्त्ता प्रसन्नता व्यक्त कर रहे हैं, तो वहीं बड़ी संख्या में इस निर्णय का विरोध भी हो रहा है।
पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ट्वीट करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पचास वर्ष पीछे ही कदम नहीं बढ़ाया है, बल्कि इसने करोड़ों अमेरिकियों कीस्वतंत्रता पर भी प्रहार किया है!
वहीं राष्ट्रपति जो बिडेन ने इसे न्यायालय और देश के लिए काला दिन बताया, और कहा कि इस निर्णय के कारण अमेरिकी महिलाओं का जीवन और स्वास्थ्य खतरे में आ गया है।
इस निर्णय का विरोध करते हुए हाउस ऑफ रेप्रेज़ेनटेटिव की डेमोक्रेटिक स्पीकर नैंसी पेलोसी ने कहा कि “रिपब्लिकन पार्टी के नियंत्रण में आकर सुप्रीम कोर्ट ऐसे निर्णय ले रहा है, जो महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य निर्णयों के अधिकारों को छीन रहा है। आज महिलाओं के पास पहले से बहुत कम अधिकार हैं, और यह जो निर्णय है वह स्तब्ध कर देने वाला है, परन्तु कोई गलती न करे, महिलाओं और सभी अमेरिकी नागरिकों के अधिकार इस नवम्बर बैलेट में हैं!”
क्या था रो वर्सेस वेड का निर्णय
रो वर्सेस वेड का निर्णय अंतत: था क्या? यह निर्णय मैककॉर्वी नाम की महिला की याचिका पर आया था। वह जब तीसरी बार गर्भवती हुई थी, चूंकि उनके दो बच्चे पहले से ही थे तो उन्होंने गर्भपात का मार्ग चुना। परन्तु वह टेक्सास में रहती थीं, जहाँ पर गर्भपात प्रतिबंधित था। जब तक माँ के स्वास्थ्य को खतरा न हो, किसी भी प्रकार से गर्भपात नहीं कराया जा सकता था।
हालांकि उस समय उनका गर्भपात नहीं हो सका था, परन्तु बाद में दो वर्ष उपरान्त वर्ष 1973 में सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया था कि गर्भ का क्या करना है, यह निर्धारित करना महिला का अधिकार है।
इस निर्णय के अनुसार पहली तिमाही में महिला गर्भपात करा सकती है परन्तु दूसरी तिमाही में कुछ प्रतिबन्ध हैं, जिनके बाद ही गर्भपात का अधिकार है तो वहीं तीसरी तिमाही में पूर्णतया प्रतिबंधित है। और अब गर्भपात का अधिकार सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के उपरांत पूरी तरह से समाप्त हो गया है।
इसे लेकर अब सड़कों पर विरोध आरम्भ हो गया है। प्लांटेड पेरेंटहुड के अध्यक्ष एवं सीईओ ने सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हम न ही वापस जाएंगे और न ही झुकेंगे!
कई लोगों को इस निर्णय का विरोध करने के कारण गिरफ्तार किया जा चुका है!
ईसाइयों की भूमिका पर पश्चिम का मीडिया मौन क्यों है?
इस निर्णय का स्वागत कट्टरपंथी ईसाई लोग कर रहे हैं। और यह अत्यंत मजेदार बात है कि बीबीसी जैसा मुख्यधारा का मीडिया भी इस पर बात नहीं कर रहा है कि अंतत: इस निर्णय के पीछे जो कारण है वह क्या है? क्या रिलीजियस पहलू है इन सबके पीछे या फिर और कुछ? और रिलीजियस बॉडीज ने अंतत: इस निर्णय का स्वागत किया है या नहीं?
जो मीडिया दिखा रहा है वह भी रिपब्लिकन या डेमोक्रेटिक बहस दिखा रहा है, वह कतई भी यह नहीं दिखा रहा है कि दरअसल मामला ईसाई रिलीजियस बॉडीज द्वारा किए जा रहे विरोध का है। अमेरिका में गर्भपात के विरोध में जो आन्दोलन हो रहे थे, वह ईसाई रिलीजियस बॉडीज द्वारा किये जा रहे हैं, और जो न्यायालय ने अभी निर्णय दिया है, उसका स्वागत भी फेथ लीडर्स ने किया है।
https://www.sltrib.com के अनुसार उटा के चर्च ऑफ जीसस क्राइस्ट ऑफ लैटर डे सेंटस ने गर्भपात पर अपना मत दोहराते हुए कहा कि गर्भपात पर उनके दृष्टिकोण में कोई भी परिवर्तन नहीं आया है।
कैथोलिक ड़ोससे ऑफ़ साल्ट लेक सिटी ने निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि वह न्यायालय के निर्णय के प्रति कृतज्ञ हैं, परन्तु वह गर्भवस्था से पहले, उसके दौरान और उसके बाद महिलाओं को समर्थन देने में समुदाय की भूमिका को भी मानते हैं।
रोमन कैथोलिक चर्च के अनुसार गर्भपात एक हत्या ही है और उनके अनुसार जीवन उसी समय से आरम्भ हो जाता है जब गर्भ धारण किया जाता है और अपनी प्राकृतिक मृत्यु के साथ समाप्त होता है। वहीं वेटिकन की एकेडमी फॉर लाइफ ने गर्भपात पर शुक्रवार आए को अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का स्वागत किया है और कहा है कि एक लोकतांत्रिक देश ने इतने बड़े विषय पर निर्णय बदला है, यह पूरे संसार को चुनौती भी देता है।
pbs जैसे पोर्टल्स भी संतुलित होकर रिपोर्टिंग कर रहे हैं। उनके अनुसार शुक्रवार को आए इस निर्णय का समर्थन मुख्य कैथोलिक बिशप कर रहे हैं, तो वहीं कुछ इसका विरोध भी कर रहे हैं!
फिर भी मीडिया का इस दृष्टिकोण से रिपोर्टिंग न करना अत्यंत हैरानी में भरता है क्योंकि यदि ऐसा कोई निर्णय भारत में आता और यदि किसी हिन्दू धर्म के किसी धर्म गुरु ने निर्णय का स्वागत किया होता, तो अभी तक हिन्दू धर्म को पिछड़ा घोषित कर दिया जाता एवं मूल विषय कहीं नेपथ्य में चला जाता तो वहीं हिन्दू धर्म की बुराई ही मुख्य रह जाता।
परन्तु वह इस विषय में वेटिकन की प्रशंसा भी मीडिया में स्थान नहीं बना पा रही है और इसे रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक ही बनाया जा रहा है!