हिन्दू संस्कृति और धर्म को कई बार बहुत छोटी छोटी बातें इतना आघात दे जाती हैं, जो बड़े बड़े हादसे नहीं दे पाते हैं। और ऐसी ही छोटी छोटी बातें हैं कुछ ऐसे शब्द, जो कहने के लिए छोटे हैं, पर पूरा का पूरा विमर्श बदल देते हैं, अनुवाद में खेल कर जाते हैं। आज ऐसे ही शब्दों की श्रृंखला में एक शब्द पढ़ते हैं, और वह है हिंदी में “दास” और अंग्रेजी में slave और उर्दू में गुलाम!
एक और शब्द है जो अनुवाद का शिकार हुआ है वह है दास! दास का हिन्दू परिप्रेक्ष्य में जो स्थान है, वह slave से पूर्णतया भिन्न है। रामचरित मानस में बालकाण्ड में कहा गया है
“जेहि बिधि नाथ होइ हित मोरा। करहु सो बेगि दास मैं तोरा।।
निज माया बल देखि बिसाला। हियँ हँसि बोले दीनदयाला।।“
अत: दास का अर्थ यहाँ पर भक्ति भाव से समर्पण कर देना है, किसी जबरन अनुबंध की स्लेवरी नहीं है। इसी प्रकार स्वामी का अर्थ भी मास्टर नहीं है! इसमें समर्पण है, दासत्व का अर्थ slavery नहीं है, यद्यपि अंग्रेजी अनुवाद में उसे slave ही लिया गया है।
The Ramayana of Tulasidasa में इसका अनुवाद किया गया है “
Make haste to accomplish my success; for I am your slave,”
जब इसका अनुवाद किया गया था तो उसे slave नहीं लिया जाना चाहिए परन्तु इस शब्द को दास ही लिया जाना चाहिए था। जब हम slavery के इतिहास में जाते हैं तो इसका मूल हमें पश्चिम से मिलता है। और यह ऐतिहासिक तथ्य है।
इंटरकोर्स बिटवीन इंडिया एंड वेस्टर्न वर्ल्ड (INTERCOURSE BETWEEN INDIA AND THE WESTERN WORLD) में एच.जी. रव्लिंसन (H. G. RAWLINSON) जो दक्कन कॉलेज, पुणे में अंग्रेजी के प्रोफ़ेसर थे, वह मौर्य काल के समय मेग्स्थ्नीज़ की इंडिका के हवाले से लिखते हैं:
One feature of Hindu society struck Megasthenes with admiration. Slavery, a universal custom in the Graeco-Roman world, was unknown.
अर्थात भारतीय समाज की एक खूबी ने मेगस्थनीज़ को बहुत प्रभावित किया कि भारतीय समाज में वह स्लेवरी नहीं थी जो ग्रीस और रोमन समाज का एक जरूरी हिस्सा थी।
slave का अर्थ है बंधक बन जाना, जबरन गुलामी करना! मालिक के इशारे पर नाचना,
जबकि हिन्दू भक्ति के परिप्रेक्ष्य में दास का अर्थ ह्रदय से भक्तिभाव से समर्पण है जैसे हनुमानचालीसा में तुलसीदास लिखते हैं
राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुवर के दासा
प्रभु के दास भक्तिभाव के साथ हो जाते हैं, दंड या बलात किसी कारण प्रभु का दास नहीं हुआ जाता। यहाँ पर जो भक्तिभाव वाला दास शब्द है, क्या उसमें गुलाम या slave प्रयोग हो सकता है? क्या रघुवर के दासा में कभी भी उस स्लेवरी का अंश भर भी प्राप्त होता है जिसमें बांधकर अंग्रेजों ने न जाने कितनी सभ्यताएँ नष्ट कर दीं? अश्वेतों को स्लेव बनाकर उन्हें उनके जीने के अधिकार तक से वंचित कर दिया?
जब तुलसीदास, या सूरदास ने अपने नाम के आगे दास लगाया तो इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि वह slave थे, अपितु वह ह्रदय से सेवा भाव से समर्पित थे। slave में सेवा भाव नहीं है, और गुलाम किसलिए इस्तेमाल होते थे, उसे सभी जानते हैं। परन्तु प्रभु के सम्बन्ध में दास शब्द का अर्थ और slave का अर्थ भिन्न है।
इस बात को सदा ध्यान रखना होगा कि हर शब्द का एक इतिहास है तथा दास, slave और गुलाम तीनों ही भिन्नार्थी हैं, वह देखने में समान लग सकते हैं, यह समानार्थी नहीं हैं!
सूरदास के मुख पर जो वात्सल्य दिख रहा है, क्या वह किसी slave में दिख सकता है? कालिदास के भीतर जो विद्वता है, जो स्वतंत्रता है, क्या वह किसी slave जैसे शब्द से उभर कर आएगी?
क्या तलवार के बल पर अपने से भिन्न विचारों वालों को अपना गुलाम बनाने वाले कभी इस बात को कभी समझ पाएंगे कि क्यों हनुमान जी को रघुवर का दास होने का आशीर्वाद दिया जा रहा है। जैसे ही रघुवर का दासा का अर्थ Slave of Rama या राम का गुलाम होगा, अर्थ बदल जाएगा। जैसे पति और पत्नी के अर्द्धनारीश्वर का अर्थ जोरू का गुलाम होने पर बदल जाता है। क्या प्रभु का दास होने पर खरीदे हुए गुलाम वाली भावना आती है या फिर सहज ही सब कुछ समर्पित कर देने की?
अत: हर शब्द का एक इतिहास है, एक परम्परा है और विशेषकर हिन्दू धर्मग्रंथों के विषय में हर कथन को बहुत सोच समझकर ही संदर्भित किया जाना चाहिए।
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