कल भारत ने जहाँ 15 अगस्त के रूप में अंग्रेजों के जाने की सालगिरह का जश्न मनाया तो कल ही अर्थात श्रावण मास की सप्तमी को स्वतंत्र चेतना को दिशा देने वाले गोस्वामी गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्मदिन है। उनका जन्म ऐसे समय में हुआ था जब हिन्दू स्वयं पर हो रहे आक्रमणों के कारण अपने धर्म से भी जैसे विमुख होते जा रहे थे, वह निराशा के गर्त में डूबते जा रहे थे। जब मुगलों के आतंक से नित सामना हो रहा था और फिर ऐसे में उन्होंने मात्र रामचरित मानस लिखकर ही नहीं बल्कि अपनी तमाम रचनाओं से हिन्दुओं में चेतन का विस्तार किया।
उन्होंने प्रभु श्री राम के माध्यम से धर्म और आदर्श का संकेत दिया। उन्होंने लोक में व्याप्त असमानता को दूर करने के लिए प्रयास किये और सब कुछ उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से किया। गोस्वामी तुलसीदास जी ने प्रभु श्री राम के चरित्र के माध्यम से लोगों के हृदय को छुआ, उन्होंने जो सन्देश दिए वह लोक के हृदय में सहजता से प्रवेश कर गए, और उन्होंने मात्र रामचरित मानस के माध्यम से ही उस चेतना को पुन: प्रस्फुटित कर दिया, जो तलवारों के आगे निराश सी हो गयी थी।
उन्होंने जब रामचरित मानस लिखा तो भाखा अर्थात लोक की भाषा में लिखा, जिससे राम कथा लोगों के जीवन में आचरण की भांति प्रवेश कर जाए। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भक्ति की धारा बहाकर प्रभु श्री राम के माध्यम से जो आदर्श प्रस्तुत किया, उसने केवल मुगलों के खिलाफ ही हिन्दुओं को सशक्त नहीं किया बल्कि उस आदर्श ने ईसाई मिशनरीज़ को भी नाकों चने चबा दिया।
जब गोस्वामी तुलसीदास जी की रामचरित मानस को समझने के लिए उसका अंग्रेजी में अनुवाद कराया था, तो अनुवादक भी इस ग्रन्थ की विराटता से चकित रह गए। Growse द्वारा अनूदित द रामायण ऑफ गोस्वामी तुलसीदास (The Ramayana of Tulsidasa) में परिचय में लिखा है कि “मानस भारतीयों के दिलों में गहरे तक बसा हुआ है……………… गोस्वामी तुलसीदास मिल्टन की तरह एक कवि मात्र नहीं थे, वह एक कवि थे, संत थे, एक क़ानून निर्माता थे एवं वह मुक्तिदाता थे। जब देश मुस्लिम आतताइयों के अत्याचारों से पीड़ित था, और हिन्दुओं पर न जाने कैसे कैसे अत्याचार हो रहे थे, तो यह तुलसी ही थे, जो आशा एवं मुक्ति लाए थे (The Manasa has apparently gone too deep। ……………। Tulasi for them is not just a poet believing as did Milton, in his destiny as a poet and despising prose, he is a seer, a law giver, a liberator। When the country was plunged in that sinister, gloomy, and morbid atmosphere which the Muslim rule had from time to time unleashed, it was Tulasi, they feel who brought them hope and liberation)”
इसी प्रकार जे एम मैक्फी ने जब रामचरित मानस का अनुवाद किया तो उन्होंने इसे उत्तर भारत की बाइबिल कहा। “हमें यह स्वीकार करना होगा कि यह उत्तर भारत की बाइबिल है। और यह आपको हर गाँव में मिलेगी, इतना ही नहीं, जिस घर में यह पुस्तक होती है, उसके स्वामी का आदर पूरे गाँव में होता है, जब वह इसे पढता है। कवि बहुत चतुर थे जिन्होनें इस कविता को स्थानीय भाषा में लिखा” “We might speak of it with truth as the Bible of Northern India। A copy of it is to be found in almost every village। and the man who owns it earns the gratitude of his illiterate neighbors when he consents to read aloud from its pages। The poet was wiser than he knew, when he insisted on writing his book in the vernacular।”
सी एफ एंड्रूज़ अपनी पुस्तक द रेनेसां इन इंडिया, इट्स मिशनरी आस्पेक्ट में गोस्वामी तुलसीदास जी के विषय में लिखते हैं कि गोस्वामी तुलसीदास भारत में जन्मे अब तक के सर्वश्रेष्ठ लोक कवि हैं। और उसके बाद वह लिखते हैं कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने जो सन्देश दिए वह सीधे भारत के दिल में जाते हैं। उन्होंने अपनी लोकभाषा में रामकथा का सृजन किया और उनका रामचरित मानस को भारत के हज़ारों लाखों लोग पसंद करते हैं; इसका मंचन लगभग हर गाँव में किया जाता है।
यह पुस्तक दरअसल भारत में पुनर्जागरण और उसके मिशनरी पहलुओं के विषय में है, परन्तु इस पुस्तक में उन बाधाओं का भी उल्लेख है जिनके कारण मिशनरी ईसाई रिलिजन को सफलता पूर्वक नहीं फैला सकी हैं। और उन बाधाओं में से एक बाधा थी यह पुस्तक, अर्थात रामचरित मानस एवं गाँव-गाँव में होने वाला रामलीला का मंचन और अवतार की अवधारणा, जो गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस प्रभु श्री राम जी के माध्यम से प्रस्तुत की।
एंड्रूज़ ने गोस्वामी तुलसीदास जी को सबसे बड़ा लोक कवि तो माना ही है, साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने पीड़ाओं को संबल देने वाले के रूप में प्रभु श्री राम को बताया कि केवल प्रभु श्री राम की भक्ति के माध्यम से व्यक्ति समस्त कष्टों एवं समस्याओं से बच सकता है। वह लिखते हैं कि कवि की जो पुकार है, वह उनके हृदय से निकली हुई पुकार है। हालांकि वह इसमें लिखते हैं कि जो भी कवि ने लिखा है वह कल्पना है और ईसाई धर्म की भांति सत्य नहीं है, परन्तु फिर भी लोग विश्वास करते हैं।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने स्वतंत्रता के विषय में जो कहा है, वह तो जाकर भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में सबसे बड़ा वाक्य बना कि
“पराधीन सपनेहूँ सुख नाहीं!”
यही मूलमंत्र लेकर हिन्दू चेतना चली और यही कारण है कि सत्ता कोई भी रही हो, हिन्दू चेतना कभी गुलाम नहीं हुई।
कल का दिन दोनों को ही स्मरण करने का दिन था, गोस्वामी तुलसीदास जी हिन्दू स्वतंत्रता के महान लोकनायकों में से एक हैं।
क्या आप को यह लेख उपयोगी लगा? हम एक गैर-लाभ (non-profit) संस्था हैं। एक दान करें और हमारी पत्रकारिता के लिए अपना योगदान दें।
हिन्दुपोस्ट अब Telegram पर भी उपलब्ध है. हिन्दू समाज से सम्बंधित श्रेष्ठतम लेखों और समाचार समावेशन के लिए Telegram पर हिन्दुपोस्ट से जुड़ें .