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Saturday, April 20, 2024

राज्यों में राज्य सरकारें अल्पसंख्यक दर्जा निर्धारित कर सकती हैं: 8 राज्यों में हिन्दुओं को अल्पसंख्यक दर्जा देने की याचिका पर केंद्र सरकार का एफिडेविट

केंद्र सरकार ने अपने नेता एवं वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर उच्चतम न्यायालय में कहा कि जिस भी राज्य में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं, वहां पर वह यह राज्यों पर निर्भर है कि वह अल्पसंख्यकों का निर्धारण कर सकें। सरकार की तरफ से दायर किए गए एफिडेविट में कहा गया कि अल्पसंख्यकों का निर्धारण राज्य सरकार में पूरी जनसँख्या के सन्दर्भ में निर्धारित होता है।

आठ राज्यों में हिन्दुओं को मिले अल्पसंख्यकों का दर्जा

उच्चतम न्यायालय में वकील अश्विनी उपाध्याय ने यह याचिका दायर कर रखी है कि आठ राज्यों में जहाँ पर हिन्दू अल्पसंख्यक हैं, वहां पर उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए क्योंकि अल्पसंख्यकों के नाम पर बनाई जा रही केंद्र और राज्य की योजनाओं में इन राज्यों में उन समुदायों को फायदा मिलता है जो वहां पर बहुसंख्यक हैं। उन्होंने कहा था कि लक्षद्वीप (हिन्दू जनसँख्या 2.5%), मिजोरम (2.75%), नागालैंड (8.75%), मेघालय (11.53%), जम्मू और कश्मीर (28.44%), अरुणाचल प्रदेश (29%), तथा पंजाब (38.40%) में जहाँ जहाँ हिन्दू अल्पसंख्यक हैं, वहां वहां पर उन्हें केंद्र और राज्य सरकार की उन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है, जो अल्पसंख्यकों के लिए बनाई गयी हैं, और उनका लाभ वह समुदाय लेता है, जो पहले से ही बहुसंख्यक है। उन्होंने कहा था कि इन राज्यों में वह अपने स्वयं के शैक्षणिक संस्थान भी नहीं खोल सकते हैं और न ही उनका सचालन कर सकते हैं।

इस पर केंद्र सरकार की ओर से दायर एफिडेविट में कहा गया कि राज्यों के पास भी अपने अल्पसंख्यक घोषित करने की शक्ति है। केंद्र सरकार की ओर से यह कहा गया कि महाराष्ट्र सरकार ने यहूदियों को वर्ष 2016 में अल्पसंख्यक घोषित किया था। इसके साथ की कर्नाटक सरकार ने भी उर्दू, तेलुगु, मलयालम, तमिल,मराठी , तुलु आदि को भाषाई अल्पसंख्यक घोषित कर रखा है।

लाइव लॉ के अनुसार उस एफिडेविट में लिखा है कि “यह प्रस्तुत किया जाता है कि वह मामले जैसे कि यहूदी धर्म, बहाइस्म और हिन्दू धर्म, जो लद्दाख,मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश में अल्पसंख्यक हैं, वह अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित कर सकते हैं, एवं उनका संचालन कर सकते हैं। तथा अल्पसंख्यकों का निर्धारण करने वाले दिशानिर्देश भी सम्बंधित राज्य सरकारों ही बनाए जा सकते हैं।”

केंद्र सरकार ने अनुरोध किया कि याचिका खारिज कर दी जाए

परन्तु यह देखना बहुत ही हैरान करने वाला है कि जहाँ एक ओर केंद्र सरकार की ओर से यह एफिडेविट प्रस्तुत किया गया कि केंद्र भी किसी भी समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित कर सकती है, यदि वह देखती है कि राज्य में उस समुदाय की जनसँख्या कम है और साथ ही राज्य यदि ऐसा करने में विफल हुआ है, तो वहीं दूसरी ओर उसने उच्चतम न्यायालय से अश्विनी उपाध्याय की याचिका यह कहते हुए खारिज करने का अनुरोध भी किया कि यह याचिका न ही जनता के हित में है और न ही राष्ट्र के हित में।

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षा आयोग पर भी याचिका में उठाए गए हैं प्रश्न

अश्विनी उपाध्याय ने शीर्ष न्यायालय से यह भी अनुरोध किया है कि वह राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992 तथा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षा आयोग अधिनियम 2004 को भी खारिज करें क्योंकि यह नागरिकों की समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।

इस याचिका में विशेष रूप से राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षा आयोग अधिनियम की धारा 2 (fएफ) की वैधता को चुनौती दी गयी है, जिसके अनुसार पांच धार्मिक समुदायों अर्थात मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध एवं पारसी धार्मिक समुदायों तक ही अल्पसंख्यकों के अधिकार सीमित कर दिए गए हैं।

केंद्र सरकार द्वारा दायर किए गए एफिडेविट में कहा गया है कि अल्पसंख्यकों के लिए जो योजनाएं चलाई जाती हैं, वह बिना किसी कारण के या यूं ही संचालित नहीं की जाती हैं, तथा अल्पसंख्यकों में हर किसी को इनका लाभ नहीं मिलता है। केंद्र सरकार के अनुसार मात्र उन्हीं लोगों को इन योजनाओं का लाभ मिलता है, जिन्हें वास्तव में आवश्यकता होती है।

केंद्र सरकार ने कहा कि यह प्रस्तुत किया जाता है कि धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक होने का यह अर्थ नहीं है कि सरकार की योजनाओं के लिए वह पात्र हो गया है। ये सभी योजनाएं आर्थिक रूप से कमजोर एवं सामाजिक रूप से निर्बल अल्पसंख्यकों के लिए हैं।”

इस प्रकार सरकार ने इस तर्क का उत्तर प्रस्तुत किया है कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992 उचित नहीं है।

केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से आग्रह किया कि वह याचिकाकर्ता की ऐसी समस्त याचिकाओं को खारिज कर चुका है, जो उसने पहले भी इन्हीं मांगों को लेकर दायर की हैं। अत: इस बार भी यह याचिका खारिज कर दी जाए।

इस मामले की सुनवाई अब 28 मार्च 2022 को जस्टिस संजय किशन कौल की सिंगल बेंच करेगी।

यह देखना रोचक होगा कि उच्चतम न्यायालय की ओर से क्या निर्णय आता है, क्या केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा को यह नोटिस जारी किया जाएगा कि वह राज्यों के आधार पर अल्पसंख्यकों का निर्धारण करें या फिर केंद्र सरकार के एफिडेविट के अनुरोध पर अश्विनी उपाध्याय की याचिका खारिज की जाती है!

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